महावीर भगवाननो जन्म कल्याणिक दिवस चैत्र सुद तेरसनो थयो हतो. तेमने
७२ वर्ष पूरा थया अने निर्वाण पाम्या. ते निर्वाण कल्याणिकनो आजे दिवस छे.
शास्त्रनी आजे कारतक वद अमास छे. अने अत्यारे अहींनी चालु आसो वद
अमास छे. मारवाडमां अत्यारे शास्त्र प्रमाणे कारतक वद अमास चाले छे.
पीपरने पीसतां पीसतां तीखी तीखी थती जाय छे तेम आत्मामां परमानंद भर्यो छे ते प्रयासवडे बहार आवे
छे. तेम महावीर भगवानना आत्मामां परमानंद भर्यो हतो ते पोते अनुक्रमे प्रगट करे छे; मन, वाणी, देहथी
छूटुं तत्त्व आनंदमूर्ति छुं तेम भान करे छे.
न प्रगटे एटले के मोक्षदशा न प्रगटे.
चैतन्यमूर्ति ज्ञान ज्योत निराळो हीरो पऽयो छे, एवा चैतन्यस्वरूपने जेने प्राप्त करवुं छे ते सत्समागमे
चैतन्यमूर्ति आत्मानी बराबर ओळखाण करीने श्रद्धा करी ते स्वरूपमां स्थिर थई मोक्षदशा प्रगट करे छे. ए
रीते चैतन्यमूर्ति हीराने श्रद्धा, ज्ञान अने चारित्र द्वारा जुदो करी ले छे.
रमता हता; त्यां ते भवमां तेमणे तीर्थंकर नामकर्म बांध्युं हतुं. एक पुण्यनो रजकण के एक शुभभावनो अंश
ऊठे ते मारुं स्वरूप नथी, ते मारुं कर्तव्य नथी, एवा भानमां स्वरूपनी रमणतामां रमता हता. एवी दशानी
भूमिकामां शुभ विकल्प आवे छे के अरेरे! जीवोने आवा स्वरूपनुं भान नथी. स्वरूप–रमणतामांथी बहार
आवतां एवो विकल्प ऊठ्यो के अहा, आवो चैतन्यस्वभाव! ते बधा जीवो केम पामे! ‘सर्व जीव करुं
शासनरसी, एसी भाव दया मन उलसी.’ बधा जीवो आवो स्वभाव पामी जाय–तेवो विकल्प आव्यो, परंतु
वास्तविक रीते तेनो अर्थ एम छे के अहा! आवो मारो चैतन्यस्वभाव पूरो क्यारे थाय! हुं पूरो क्यारे थाउं!
तेवी भावनानुं जोर छे अने बहारथी एम विकल्प आवे छे के अहा! आवो स्वभाव बधा जीवो केम पामे!
तेवा उत्कृष्ट शुभ भावथी तीर्थंकर नाम कर्म बंधायुं.
बंधाय छे. आ राग मारुं कर्तव्य नथी –एम भान हतुं अने स्वरूपमां रमता हता, एवी भूमिकामां तीर्थंकर
प्रकृति बंधाई छे. रागने लाभरूप माने ते भूमिकामां तीर्थंकर प्रकृति बंधाय नहि; परंतु राग मने लाभरूप नथी,
रागनो हुं कर्ता नथी, एवा भाननी भूमिकामां तीर्थंकर प्रकृति बंधाय छे.