तीर्थंकर देवना भवमां ध्वनि छूटशे त्यारे अनेक जीवोने तरवानुं ते निमित्त थशे.
छ महिना अगाउथी बीजा देवोने खबर पडे छे के आ भरतक्षेत्रमां छ महिना पछी त्रिशलाराणीनी कूखे, दसमां
स्वर्गमांथी भगवान चोवीसमा तीर्थंकर आवशे. एटले ते देवो छ महिना अगाउथी माता पासे आवीने
मातानी सेवा करे छे. देवो माता पासे आवीने कहे छे के धन्य माता. रत्नकूखधारिणी! तारी कूखे छ महिना
पछी जगतना तारनार, घणा जीवोनो उद्धार करनार, त्रिलोकनाथ तीर्थंकर आववानां छे. छ महिना पहेलांं देवो
माता–पिताने घेर रत्नना वरसाद वरसावे छे. अहीं ए रत्ननी किंमत नथी, रत्न ते तो धूळ छे; ज्यां दाणा
पाके तेनी पाछळ राडां तो होय छे. तीर्थंकर भगवान दाणानो पाक साथे लेता आवे छे अने पुण्य ते तो राडां
छे. ज्यां सो कळशी अनाज पाके त्यां सो भरोटां खड तो साथे थाय ज, परंतु ते खडनी किंमत नथी पण
दाणानी किंमत छे. खेडूत राडां माटे वावतो नथी पण दाणा माटे वावे छे. एम मोक्षमार्गना दाणाना लोथ ज्यां
पाके छे त्यां तेनी साथे शुभ परिणामथी तीर्थंकरपद, चक्रवर्तीपद वगेरे राडां तो सहेजे पाके छे, राडांनी ईच्छाथी
राडां पाकतां नथी पण सहेजे पाके छे.
अने माता पासे जईने कहे छे–हे रत्नकूखधारिणी माता, त्रण लोकना नाथने जन्म देनारी जनेता! तने धन्य छे.
एम कही भगवानने लईने सुधर्म ईन्द्रने आपे छे. सुधर्म ईन्द्र भगवानने हजार नेत्रो करीने नीरखे छे,
भगवानने मेरु पर्वत पर लई जईने जन्माभिषेक करावे छे; त्यां अठाई महोत्सव करे छे. ए रीते ईन्द्रो परम
भक्तिपूर्वक भगवाननो जन्मकल्याणिक महोत्सव करे छे. कल्याणिक महोत्सवनुं वर्णन शास्त्रमां घणुं आवे छे.
करतां विचरे छे, ईच्छा निरोधपणे स्वरूपरमणतामां काळ जाय छे.
केवळज्ञान थया पछी तुरत दिव्यध्वनि छूटे ज, बीजा सामान्य केवळीने माटे एवो नियम नहि पण तीर्थंकर
भगवानने तो नियमपणे छूटे ज; परंतु, महावीर भगवानने केवळज्ञान थयुं, समवसरण रचाणुं, बार सभा
भराणी, पण ध्वनि न छूटी. ईन्द्रने विचार आव्यो के भगवाननी ध्वनि केम छूटती नथी? ईन्द्रे अवधिज्ञाननो
उपयोग मूकीने जोयुं तो जणायुं के सभामां उत्कृष्ट पात्र जीव नथी; गौतम ते पात्र छे तेम जणातां ईंद्र
ब्राह्मणनुं रूप लई गौतम पासे गया अने गौतम चार वेदमां प्रवीण हता, तेमने चर्चानो बहु शोख हतो तेथी
मान गळी गयुं, वीर प्रभुनां दर्शन करी धर्म पाम्या अने मुनिपणुं लीधुं. भगवाननी वाणी झीली शके एवा
सर्वोत्कृष्ट पात्र गौतम स्वामीना आववाथी