Atmadharma magazine - Ank 073
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक: २००६ आत्मधर्म : ११ :
महावीर भगवाने नंदराजाना भवमां एवी वाणी बांधी के भविष्यमां पात्र जीवोने लाभ आपे, भव
पारनुं निमित्त थाय, बीजा जीवोने तरवानुं सर्वोत्कृष्ट निमित्त थाय, एवी तीर्थंकर प्रकृति बांधी. अने ज्यारे
तीर्थंकर देवना भवमां ध्वनि छूटशे त्यारे अनेक जीवोने तरवानुं ते निमित्त थशे.
गर्भ – कल्याणिक (अषाड सुद ६)
महावीर भगवानना जीवे नंदराजाना भवमां चारित्र पाळ्‌युं अने पछी अनुक्रमे आयुष्य पूरुं करी त्यांथी
दसमा स्वर्गमां उत्पन्न थया. त्यां दसमा स्वर्गमां ते देवपणे भगवाननुं आयुष्य छ महिना बाकी रहे छे त्यारे
छ महिना अगाउथी बीजा देवोने खबर पडे छे के आ भरतक्षेत्रमां छ महिना पछी त्रिशलाराणीनी कूखे, दसमां
स्वर्गमांथी भगवान चोवीसमा तीर्थंकर आवशे. एटले ते देवो छ महिना अगाउथी माता पासे आवीने
मातानी सेवा करे छे. देवो माता पासे आवीने कहे छे के धन्य माता. रत्नकूखधारिणी! तारी कूखे छ महिना
पछी जगतना तारनार, घणा जीवोनो उद्धार करनार, त्रिलोकनाथ तीर्थंकर आववानां छे. छ महिना पहेलांं देवो
माता–पिताने घेर रत्नना वरसाद वरसावे छे. अहीं ए रत्ननी किंमत नथी, रत्न ते तो धूळ छे; ज्यां दाणा
पाके तेनी पाछळ राडां तो होय छे. तीर्थंकर भगवान दाणानो पाक साथे लेता आवे छे अने पुण्य ते तो राडां
छे. ज्यां सो कळशी अनाज पाके त्यां सो भरोटां खड तो साथे थाय ज, परंतु ते खडनी किंमत नथी पण
दाणानी किंमत छे. खेडूत राडां माटे वावतो नथी पण दाणा माटे वावे छे. एम मोक्षमार्गना दाणाना लोथ ज्यां
पाके छे त्यां तेनी साथे शुभ परिणामथी तीर्थंकरपद, चक्रवर्तीपद वगेरे राडां तो सहेजे पाके छे, राडांनी ईच्छाथी
राडां पाकतां नथी पण सहेजे पाके छे.
जेने पूर्ण परमानंद प्रगट थई गयो छे एवा परमात्मा फरीने अवतार लेता नथी, परंतु जगतना
जीवोमांथी एक जीव उन्नतिक्रमे चडतां चडतां जगत्गुरु तीर्थंकर थाय छे. जगतना जीवोनी एवी लायकात
तैयार थाय छे त्यारे एवुं उत्कृष्ट निमित्त पण तैयार थाय छे.
जन्म – कल्याणिक (चैत्रसुद १३)
महावीर भगवान गर्भमां आव्या पछी अनुक्रमे तेमनो सवा नव महिने जन्म थाय छे; सुधर्म ईन्द्र आदि
देवो आवीने भगवाननो जन्म कल्याणिक महोत्सव करे छे. सुधर्म ईन्द्र साथे तेमनी सची–ईन्द्राणी पण आवे छे
अने माता पासे जईने कहे छे–हे रत्नकूखधारिणी माता, त्रण लोकना नाथने जन्म देनारी जनेता! तने धन्य छे.
एम कही भगवानने लईने सुधर्म ईन्द्रने आपे छे. सुधर्म ईन्द्र भगवानने हजार नेत्रो करीने नीरखे छे,
भगवानने मेरु पर्वत पर लई जईने जन्माभिषेक करावे छे; त्यां अठाई महोत्सव करे छे. ए रीते ईन्द्रो परम
भक्तिपूर्वक भगवाननो जन्मकल्याणिक महोत्सव करे छे. कल्याणिक महोत्सवनुं वर्णन शास्त्रमां घणुं आवे छे.
दीक्षा कल्याणिक (कारतक वद १०)
जन्म थया पछी महावीर भगवान त्रीस वरस सुधी गृहस्थाश्रममां रह्या, त्यार पछी पोते दीक्षित थाय
छे. देवो आवीने दीक्षाकल्याणिक महोत्सव करे छे, प्रभु पोते दीक्षित थईने बार वरस सुधी स्वरूप रमणता
करतां विचरे छे, ईच्छा निरोधपणे स्वरूपरमणतामां काळ जाय छे.
केवळज्ञान कल्याणिक (वैशाख सुद १०)
त्यारपछी वैशाख सुद दसमने दिवसे श्रीमहावीर भगवानने केवळज्ञान थाय छे. केवळज्ञानमां त्रण काळ
त्रणलोकने हस्तामळनी पेठे जाणे छे. स्व–पर पदार्थना अनंता भावो केवळज्ञानमां जणाय छे. तीर्थंकर देवने
केवळज्ञान थया पछी तुरत दिव्यध्वनि छूटे ज, बीजा सामान्य केवळीने माटे एवो नियम नहि पण तीर्थंकर
भगवानने तो नियमपणे छूटे ज; परंतु, महावीर भगवानने केवळज्ञान थयुं, समवसरण रचाणुं, बार सभा
भराणी, पण ध्वनि न छूटी. ईन्द्रने विचार आव्यो के भगवाननी ध्वनि केम छूटती नथी? ईन्द्रे अवधिज्ञाननो
उपयोग मूकीने जोयुं तो जणायुं के सभामां उत्कृष्ट पात्र जीव नथी; गौतम ते पात्र छे तेम जणातां ईंद्र
ब्राह्मणनुं रूप लई गौतम पासे गया अने गौतम चार वेदमां प्रवीण हता, तेमने चर्चानो बहु शोख हतो तेथी
श्री गौतमस्वामी महावीर भगवान पासे जवा नीकळ्‌या. गौतमस्वामी ज्यां मानस्थंभ पासे आव्या त्यां तेमनुं
मान गळी गयुं, वीर प्रभुनां दर्शन करी धर्म पाम्या अने मुनिपणुं लीधुं. भगवाननी वाणी झीली शके एवा
सर्वोत्कृष्ट पात्र गौतम स्वामीना आववाथी