: कारतक : २००६ आत्मधर्म : १३:
आत्मा मुक्त थयो तेथी तेमनो निर्वाण कल्याणिक महोत्सव पण ऊजवे छे.
भगवान मोक्ष पधार्या त्यारे पावापुरीमां ईन्द्रो अने देवोए आवी महोत्सव करेलो; पावापुरीमां दीवा
वगेरेथी मोटो मांगलिक महोत्सव करेलो तेथी आजना दिवसने दीपोत्सवी कहेवाय छे–दिवाळी कहेवाय छे.
अत्यारे लोको चोपडापूजन वगेरे करी संसार अर्थे दिवाळी ऊजवे छे, परंतु खरेखर तो आजनो दिवस
आत्माना पूर्णानंद स्वभावने प्रगट करवानी भावनानो छे. जेवो भगवाननो आत्मा छे तेवो ज मारो आत्मा
छे एम विचारी स्वभावनुं भान करी विभाव परिणामने स्वरूप स्थिरतावडे तोडुं–एम वीर्य उपाडवानो
आजनो दिवस छे.
जगतना जीवो मरे त्यारे शोक थाय छे अने भगवाननी मुक्तिना महोत्सव होय छे; कारण के ते मरण
नथी पण जीवन छे, सहजानंद स्वरूपमां बिराजी रहेवानुं आत्मानुं जीवन छे. माटे तेना महोत्सव होय छे.
पूर्णानंद, सहजानंद स्वभावमां रहेवुं तेनुं नाम मुक्ति छे.
महावीर भगवान पछी गौतमस्वामी, सुधर्मस्वामी अने जंबुस्वामी ते त्रण पेढी केवळज्ञान रह्युं. अने
त्यार पछी एकावतारी थया, अत्यारे पण एकावतारी छे. अने हजु पांचमा आराना छेडा सुधी एकावतारी
जीवो थवाना छे. आ पांचमो आरो एकवीस हजार वरसनो छे, तेमांथी हजु तो अढी हजार वरस गया अने
साडा अढार हजार वरस बाकी रह्या छे. ते एकवीस हजार वरस पूरा थशे त्यारे एटले के पांचमा आराना छेडे
चार जीवो एकावतारी थशे. –साधु, अर्जिका, श्रावक अने श्राविका ते चार जीवो एक देवनो भव करी त्यार पछी
मनुष्य थई त्यांथी मुक्त थशे.
जंबुस्वामी पछी पण संत–मुनिओने चौदपूर्वनुं ज्ञान हतुं, तोपण ते एकावतारी थया अने पांचमां
आराना छेडे चौदपूर्वनुं ज्ञान नहि होय पण अल्पज्ञान रहेशे, छतां ते एकावतारी थशे, बंनेना
एकावतारीपणामां कांई फेर नथी.
श्री महावीर परमात्माए वाणीद्वारा जे स्वरूप कह्युं ते गणधरोए झील्युं अने ते वाणी आचार्यपरंपराए
अत्यार सुधी चाली आवे छे. आ भरतक्षेत्रमां कुंदकुंदाचार्य परम गुरुदेवे शास्त्रनी स्थापना करी छे, श्रुतनी
प्रतिष्ठा करी अपूर्व उपकार कर्यो छे. ते वात जेम छे तेम लोकोने बेसवी कठण पडे तेम छे. श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे आ
समयसारशास्त्र सर्वोत्कृष्ट योगथी समजाव्युं छे, आ शास्त्रमां केवळज्ञान भर्युं छे.
लोको कहेशे के आ तो नाने मोढे मोटी वात छे. परंतु बाळक अग्निने अडे के मोटा अग्निने अडे, पण ते
बंनने ऊनापणाना अनुभवमां कांई फेर नथी. अग्निनो स्वभाव छ महिनाना छोकराए जे जाण्यो ते ज
स्वभाव पंडिते–बेरिस्टरे अने विज्ञानीए जाण्यो छे. बंने एम जाणे छे के अग्निने अडवाथी ऊनुं लागे; ते
अग्निना ऊनापणा संबंधीना बंनेना ज्ञानमां कांई फेर नथी. बाळक पण ऊनुं लागवाथी फरीने अग्निने
अडवा न जाय तेम मोटा पण अग्निने अडवा न जाय. मोटा एम कथन करे के अग्नि प्रकाशवाळी छे, अग्नि
ऊनी छे, वगेरे कथन करे, अने बाळक विशेष कथन न करी शके, ए रीते कथनमां फेर पडे, पण बाळकना
अनुभवमां अने मोटाना अनुभवमां कांई फेर न पडे.
तेम त्रिलोकनाथ तीर्थंकरदेव त्रणकाळ त्रणलोकना विज्ञानना पंडित छे, तेमणे जेवुं वस्तुनुं स्वरूप जाण्युं
छे तेवुं ज अविरति बाळक जाणे छे. वस्तुनुं स्वरूप जेवुं केवळज्ञानीए जाण्युं छे तेवुं ज अविरति बाळके जाण्युं
छे. केवळी अने चोथा गुणस्थाननी प्रतीतिमां कांई फेर नथी. स्वभावनी प्रतीति जेवी केवळज्ञानीने छे तेवी ज
स्वभावनी प्रतीति चोथा गुणस्थानवाळा गृहस्थाश्रममां राज्य करता होय–लडाईमां ऊभा होय तेवा अव्रती
समकीतिने पण होय छे. स्वभावनी प्रतीतिमां बंनेमां कांई फेर नथी. एक पण रागनो अंश ते मारुं स्वरूप
नथी तेवी प्रतीति चोथा गुणस्थानवाळा समकीतिने होवा छतां, ते दयामां, दानमां, पूजामां, भक्तिमां जोडाय
खरा; अने शुभभावमां जोडाय छतां ते अव्रती समकीतिनी, केवळज्ञानीनी अने सिद्धनी स्वभावनी प्रतीति एक
ज सरखी छे, ते प्रतीतिमां जरापण फेर नथी; परंतु ज्ञान अने चारित्रमां फेर छे.
नीचली दशावाळो वीतराग नथी तेथी तेने राग आवे छे. राग तो नीचली भूमिकामां ज होय ने?