Atmadharma magazine - Ank 073
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : कारतक: २००६
वीतरागने कांई राग आवे? चोथी भूमिकावाळाने पुण्य–पापना भाव थाय छे खरा, पण ते समजे छे के मारा
पुरुषार्थनी नबळाईने लईने आ भावो थाय छे, पण ते मारो स्वभाव नथी. पोतानो स्वभाव न मान्यो तेथी
ते शुभाशुभभावने पोतानुं कर्तव्य न मान्युं, कर्तव्य तो पोताना स्वरूपमां ठरी जवुं ते ज तेणे मान्युं छे. तेथी
तेनो पुरुषार्थ पण ते ज जातनो थाय छे, अने ज्यारे ज्यारे ते अव्रती सम्यग्द्रष्टि स्वरूपमां ठरी जाय छे त्यारे
ते सिद्ध जेवो अंशे अनुभव करे छे.
महावीर भगवान समवसरणमां दिव्यध्वनिद्वारा कही गया छे के–पंचम आराना छेडा सुधी एकावतारी
जीवो थवाना छे. केवळज्ञानी परमात्माने जेवी स्वभावनी प्रतीति छे तेवी ज प्रतीति चोथा गुणस्थानवाळाने होय
छे. जेवुं एकावतारीपणुं पंचम आराना शरूआतना चौद पूर्वधारी मुनिओने हतुं तेवुं ज एकावतारीपणुं पंचम
आराना छेडाना जीवोने पण थशे. ते जीवो पण आत्मानुं भान करीने स्थिरताना जोरनी भावनाथी एक भवे
मुक्ति लेशे. ए रीते बंनेना मुक्तिना फळमां कांई फेर नथी. शरूआत अने छेडो बंने सरखां थई गयां; ज्ञाननी
न्यूनाधिकता छे छतां पण मुक्तिना फळमां कांई फेर नथी, श्रद्धा अने मुक्तिना फळमां बंनेमां कांई आंतरो नथी.
२१ हजार वर्षो सुधी लाखो करोडोमां कोई कोई जीवो आत्मभान करीने आ शासनमां एकावतारी थया करशे,
तेम भगवान महावीरदेव कही गया छे. समकीति जीव अने केवळज्ञानी बंने श्रद्धामां सरखां, अने प्रभु पछीनां
संतमुनि अने छेडा सुधीना समकीति जीव एकावतारीपणुं पामे ते मुक्तिना फळमां बंने सरखां. पहेली श्रद्धा अने
बीजो मुक्तिना फळनो छेडो–बंने सरखां थई गयां. शरूआत अने मुक्तिनुं फळ बंने सरखां थई गयां.
महावीर भगवान आजे मोक्ष पधार्या, महावीर भगवाननी वाणी परंपराए हजी सुधी चाली आवे छे.
आजे वाणी कहेवाय छे ते वाणी पण ए ज छे. जगतने बेसे के न बेसे, पण एम ज छे.
साधु, अर्जिका, श्रावक अने श्राविका पंचम आराने छेडे
पण आत्मानुं भान करी एकावतारीपणुं प्राप्त करशे, तो पछी
अत्यारे केम न थई शके? नानी बालिका पण आत्मभान करी
शके; बधानो आत्मा त्रण लोकनो नाथ छे, एमां कांई फेर नथी.
शरीरमां फेर छे. ते बालिका पण, आ जेवुं परथी निराळुं
आत्मानुं स्वरूप कहेवाय छे तेवी श्रद्धा करी शके छे. पंचम
आराना छेडे आत्मभान करी शके छे, तो अत्यारे तो जरूर करी
शकाय एम छे.
अत्यारे आत्मभान करी शकाय छे परंतु पूर्ण वीतरागता करी शकाती नथी, कारण के पूर्वे पोते वीर्य
ऊंधुंं नाखेलुं छे, ते वीर्यने अत्यारे सवळुं करतां घणो पुरुषार्थ जोईए, तेटलो पुरुषार्थ अत्यारे पोते करी शकतो
नथी एटले अत्यारे पूर्ण वीतरागता थई शकती नथी. तेमां पोताना पुरुषार्थनी नबळाईनुं कारण छे; ऊंधुंं
वीर्य पूर्वे पोते ज नांख्युं छे, तेथी सवळुं करतां वार लागे छे माटे पोतानुं ज कारण छे.
आत्मामां अखंडानंद स्वभाव भर्यो छे. जेम दिवासळीने घसीने फडाक भडको करे छे तेम चैतन्यमूर्ति
आत्मामां अनंत स्वभाव भर्यो छे; तेवा आत्मानी श्रद्धा करे के हुं अखंड पूर्णानंद स्वरूप छुं–एम श्रद्धानो
भडको कर्यो एटले तेमांथी केवळज्ञाननो आखो भडको अवश्य प्रगट थशे. पोताना सच्चिदानंद स्वरूपनुं भान
करीने समजे के मारा पुरुषार्थनी खामीए एक बे भव छे. पोतानी खामी समजे छे तेथी पुरुषार्थ जगाडी जरूर
केवळज्ञान प्रगट करशे.
साचुं श्रवण करी, साची प्रतीति करे, अने तेमां जे शुभ परिणाम थाय, एटले के तत्त्वनी सन्मुखतामां
जे शुभ विकल्प थाय, अने ते विकल्पथी जे पुण्य बंधाय ते पुण्यना थोक उल्लसे, तेवा पुण्यना थोक बीजे क्यांय
न बंधाय. तेवा पुण्यनी पण तत्त्व श्रद्धावाळाने ईच्छा नथी. ते श्रद्धाना जोरे पुण्यने तोडी केवळज्ञान अवश्य
लेवानो.
आ वात न समजाय तेम न मानवुं, तेमज एम पण न मानवुं के अमुक जीवे गया काळमां घणां पाप