थाय, गुलांट खाय अने सवळो पडे तो क्षणमां केवळ पामे, एम सवळेथी ले ने! कालनो कठियारो आजे केवळज्ञान
पाम्यो अने देवोए आवीने महोत्सव कर्यो एवा दाखला अनंता काळमां अनंता बन्या छे. कालनो चोर आजे धर्मी
थई जाय, सवळो पडे तो क्षणमां केवळ पामे. माटे एम न समजवुं के कालनो पापी आजे धर्मी न थई शके.
आराधकपणुं एने हाथ छे; ते करशे त्यारे तेनाथी ज थशे. तुं तारुं आराधकपणुं कर. तारुं आराधकपणुं ताराथी छे.
गाया ते पोताना स्वरूपने प्रगट करवा माटे छे. तेवा स्वरूपने समजे तो अत्यारे पण एकावतारीपणुं प्रगट
करी शकाय छे.
कोईने एम थाय के आवुं झीणुं समजवामां शुं फायदो छे? तो तेने कहे छे के हे भाई! आत्मा पोते
पुण्य–पापनी स्थूळ वातो तो अनंतवार सांभळी छे, ने तेमां धर्म मान्यो छे, परंतु शरीरथी जुदो अने पुण्य–
पापथी पार पोतानो सूक्ष्म आत्मस्वभाव केवो छे ते कदी जाण्यो नथी, तेथी ज जीव संसारमां रखडे छे. ज्ञाननो
स्वभाव बधायने जाणवानो छे. रूपी पदार्थोने जाणनारो पोते अरूपी छे अने अरूपी पदार्थोने जाणनारो पण
पोते अरूपी छे. जो अरूपी आत्मस्वभावनो महिमा करीने होंशथी–रुचिथी समजवा मागे तो जरूर समजाय
तेवो ज आत्मस्वभाव छे. ‘न समजी शकाय’ एवो आत्मस्वभाव नथी. पोताना शुद्ध आत्मस्वभावने
समजवो
प्रत्ये केटली उदासीनता वर्तती होय! जेने पोताना आत्महितनी दरकार होय ते जीव जगतना लोकोथी पोताना
मान–अपमानने जुए नहि; जगतना लोको मने शुं कहेशे एनी दरकार तेने होय नहि. अहो, कोना मान ने
कोना अपमान? पोताना त्रिकाळ स्वभावनुं ज बहुमान करीने केवळज्ञान अने सिद्धदशा प्रगटे एना जेवुं मान
कयुं? अने स्वभावनो विरोध करीने नीच गतिमां जाय एना जेवुं अपमान कयुं? जे जीवना संबंधमां श्री
तीर्थंकरदेवना मुखथी के संतोना मुखथी एम आव्युं के ‘आ जीव भव्य छे, आ जीव पात्र छे, आ जीव
मोक्षगामी छे,’ तो एना जेवुं मान जगतमां बीजुं कोई नथी; अने जे जीवना संबंधमां एम आव्युं के ‘आ
जीव अपात्र छे, आ जीव अभव्य छे’ तो एना जेवुं अपमान त्रण जगतमां कोई नथी. भगवाननी
दिव्यवाणीमां जे जीवनो स्वीकार थयो तेने जगतना लोकोना माननी जरूर नथी; अने भगवाननी वाणीमां
जेनो नकार थयो ते जीवने जगतना अपमाननी शुं जरूर छे? अर्थात् जगतना लोको भले तेने मान आपता
होय पण परमार्थमां तो ते अपमानित ज छे. खरेखर कोई बीजो पोतानुं मान के अपमान करी शकतो नथी. जे
जीवे पोताना पवित्र स्वभावनो आदर करीने सम्यग्दर्शनादि पवित्र गुणो प्रगट कर्या ते जीवे पोतानुं साचुं
बहुमान कर्युं छे, ने भगवाननी वाणीमां पण तेनो स्वीकार छे. अने जे जीवे पोताना पवित्र स्वभावनो
अनादर करीने, क्षणिक मान–अपमानना विकारी भावोने पोतानुं स्वरूप मान्युं ते जीवे पोते ज पोतानुं
अपमान कर्युं छे, मिथ्यात्वने लीधे ते जीव अनंत संसारमां रखडे छे.