Atmadharma magazine - Ank 073
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक: २००६ आत्मधर्म : १९ :
वेदन वडे तोडीने अकषाय दशा वधारवी ते व्रतनुं प्रयोजन छे.
[१०४] ज्ञानाने व्रतादिना रागनी भावना होती नथी :– अंखड ज्ञायक स्वभावनी स्थिरता वडे विकल्प
तोडी नांखवा तेनुं नाम परमार्थ व्रतादि छे; सम्यग्द्रष्टिने व्रतादिनां विकल्पनी अभिलाषा होती नथी.
सम्यग्द्रष्टिने एवी मान्यता नथी के हुं व्रतादिना विकल्प करुं तो अकषाय भाव प्रगटे, परंतु स्वरूपनी लीनताथी
अकषायदशा प्रगटे छे. आवी भावना होवा छतां व्रतादिनो शुभविकल्प ऊठे छे; पण तेनी भावना नथी;
स्वरूपनी शांतिमां आगळ वधवानी भावना छे त्यां व्रतादिनो विकल्प थई जाय छे, तेने व्यवहार कहेवाय छे. ते
व्यवहारनय वच्चे आव्या विना रहेतो नथी, पण ज्ञानीने तेनो खेद छे. ज्यां व्रतादिना शुभविकल्पनी पण होंश
नथी तो पछी विषय भोग वगेरेनी अशुभ लागणीनी होंश तो ज्ञानीने होय ज केम?
स्थिरता प्रगट्या पहेलांं जे व्रतादिनो विकल्प ऊठ्यो छे ते पण स्थिरतानुं कारण नथी; पण अभेद
स्वभावना आश्रये ते विकल्प तोडीने स्थिरता प्रगटे छे. अने स्थिरता प्रगट्या पछी पण जे विकल्प ऊठे छे
तेनुं प्रयोजन स्थिरताने टकावी राखवानुं छे. परमार्थे तो शुद्धस्वभावना आश्रये ज स्थिरता टकी रहे छे. पण
द्रष्टिपूर्वकनो जे शुभ विकल्प छे ते अशुभथी बचावे छे ए अपेक्षाए तेने पण स्थिरतानुं कारण उपचारथी कह्युं
छे, सम्यग्दर्शननुं स्वरूप पण ओळख्युं न होय ते व्रतादिने क्यांथी ओळखे? चोथा–पांचमा गुणस्थाननो अने
मुनिदशानो मार्ग पण जेणे यथार्थ जाण्यो न होय तेने तेवी दशा क्यांथी होय?
[१०५] अंतरात्मदशानी शरूआत अने पंचम गुणस्थान :– चोथा गुणस्थानथी अंतरात्मदशा शरू थाय
छे. चोथा गुणस्थान पछी स्वरूपनी विशेष लीनता वडे पंचमगुणस्थान प्रगटतां अप्रत्याख्यान पछी कषाय
चोकडीनो अभाव थयो छे तेथी त्यां विशेष स्वसंवेदन ज्ञान छे. छतां त्यां मुनिदशा जेटली आत्मशांति नथी.
[१०६] छठ्ठुं गुणस्थान :– छठ्ठा गुणस्थाने महाव्रतादिनी वृत्ति ऊठे छे तेथी त्यां पण सरागसंयम छे; त्यां
त्रण कषाय चोकडीनो अभाव थयो छे ने विशेष आत्मशांतिनुं वेदन प्रगट्युं छे. “अत्यारे सरागसंयम छे माटे
आपणे राग करवो जोईए” एम माननार तो मिथ्याद्रष्टि छे. घणी स्वरूपस्थिरता प्रगटी छे पण हजी
वीतरागसंयमदशा नथी अने सहेज विकल्प वर्ते छे तेनुं नाम सरागसंयम छे. सरागसंयममां जे रागनो भाग
छे तेनो मुनिने आदर नथी. चोथा–पांचमा गुणस्थान पछी, पहेलांं तो सातमुं गुणस्थान आवे छे अने पछी
छठ्ठुं आवे छे.
[१०७] सातमुं गुणस्थान :– सातमा गुणस्थाने वीतरागीस्वरूप स्थिरता प्रगटी होय छे, त्यां चैतन्य
गोळो छूटो अनुभवाय छे, विकल्प पण नथी. त्यां जो के आत्मानो शुद्धोपयोग प्रगट्यो छे पण हजी संपूर्ण
वीतरागता प्रगटी नथी तेथी उपयोग सहजे बळे छे, त्यां संजवलन कषाय बाकी छे. वंद्य–वंदकनो के आहार–
विहारनो विकल्प नथी, ‘हुं आत्मा छुं, के हुं मुनि छुं’ एवो विकल्प पण नथी, शुद्ध चैतन्यनो भिन्न अनुभव
ज वर्ते छे. छठ्ठुं गुणस्थान अल्पकाळ रहे छे, पछी तरत सातमुं आवे छे. वारंवार छठ्ठुं–सातमुं गुणस्थान
आव्या ज करे एवी मुनिदशा छे. घणा वर्षो छठ्ठुं गुणस्थान रहे पण सातमुं न आवे–एवुं मुनिदशानुं स्वरूप
ज नथी. ‘व्यवहारे छठ्ठुं गुणस्थान छे. पण सातमुं आवतुं नथी’ एम होय शके ज नहि. गुणस्थानमां निश्चय–
व्यवहार शुं? गुणस्थान पोते ज व्यवहार छे. व्यवहारथी छठ्ठुं गुणस्थान छे ने निश्चयथी चोथुं छे–एम बे
प्रकार गुणस्थानमां होय शके ज नहि.
[१०८] निश्चयथी अने व्यवहारथी जुदां गुणस्थान होय नहि. :– जेने साचा देव–गुरु–शास्त्रनी
यथार्थ श्रद्धा होय तेवा जीवने व्यवहारे सम्यग्दर्शन छे अथवा व्यवहारे व्रतादि छे एम कहेवाय, परंतु ज्यारे
गुणस्थाननी वात करवी होय त्यारे ‘व्यवहारथी चोथुं–पांचमुं गुणस्थान छे ते निश्चयथी पहेलुं छे’ –एम
कहेवाय नहि, केमके गुणस्थान तो करणानुयोगनो विषय छे, अने ते पोते ज व्यवहार छे; –ज्यां सातमा
गुणस्थानने योग्य निर्विकल्प अनुभवदशा वारंवार न आवती होय त्यां छठ्ठुं गुणस्थान के मुनिदशा होय ज न
शके. सातमा गुणस्थाने घणुं स्वसंवेदन ज्ञान वधी गयुं छे.
प्रकाशक :– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी मोटा आंकडिया, काठियावाड
मुद्रक :– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, सौराष्ट्र ता. १३–१०–४९