Atmadharma magazine - Ank 074
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४७६ : ३०: अ
हालमां अनेकांतना नामे मुख्यपणे विद्वानो अने उपदेशकोमां घणा गोटा चाले छे; अनेकांत तो वस्तुना
स्वरूपनो निश्चय करनार छे तेने बदले जेने जेम ठीक पडे तेम अनेकांतना नामे अने धर्मना नामे ऊंधा कथनो
कर्या करे छे. माटे मुमुक्षु जीवोए सत्समागमे बधां पडखां बराबर विचारी, परीक्षा करीने, सत्य–असत्यनो
यथार्थ निर्णय करवो. अने आ लेखमां जणावेल (१) वस्तुस्वरूप (२) आत्मानो सर्वज्ञ स्वभाव (३)
क्रमबद्धपर्याय (४) जैनधर्म अने (प) अनेकांतवाद–आ पांचे खास जरूरी विषयोनो अवश्य निर्णय करवो केम
के एना निश्चय विना कदी आत्मकल्याण थतुं नथी.
× × ×
आ कळिकाळमां धर्मना नामे, वेषने नामे, देशनी सेवाना नामे, त्यागना नामे–वगेरे अनेक प्रकारे जुठ्ठी
मान्यताओ पोषाय छे, ए जाणीतुं छे. आत्मार्थी जीवो ते पाखंडोथी बचे, धर्मना नामे चालता पाखंडो बंध
थाय, अने जगतना पदार्थोनुं तथा आत्माना धर्मनुं साचुं स्वरूप शुं छे ते लोको जाणे, अने तेओ धर्मनुं स्वरूप
पामे–ए ज आ ‘आत्मधर्म’ मासिकनो हेतु छे; तेथी यथार्थ वस्तुस्वरूप बतावनार लेखो ज तेमां आपवामां
आवे छे. तेमां कोई पण व्यक्तिनी निंदा के अंगत टीका बिलकुल करवामां आवती नथी. मात्र सत्य स्वरूप शुं छे
अने असत्य शुं छे तेनुं विवेचन कारणो सहित युक्ति अने आगम वगेरेना आधारे आपवामां आवे छे.
आत्मधर्म ए कोई लौकिक छापुं नथी, तेम ज धर्मना नामे चाली रहेलां अन्य छापाओ करतां पण जुदी
जातनुं छे. तेमां जे कांई पीरसवामां आवे छे ते सततत्त्वना नमुनारूप होय छे. आ पत्रमां जे कांई छपाय छे ते
जो के पू गुरुदेवश्रीना मुखथी निरंतर जे व्याख्यानो थाय छे तेनो अंशमात्र ज छे, तो पण तेटलामां ‘गागरमां
सागर’ नी जेम घणुं तत्त्व भरेलुं होय छे. माटे अन्य छापांओनी जेम आ पत्रने नहि वांचता, तेना दरेक
वाक्यना भाव समजीने वांचवानी खास भलामण छे.
पोताने सुधारक मानता केटलाक भाईओ पोते देशसेवा करी रह्या छे–एम माने छे अने ए देशसेवाने
ज धर्म मानीने धर्मना नाम तरफ सूग धरावे छे, तेओ पण आ पत्रनो थोडो वखत काळजीपूर्वक अने
तूलनाशक्तिथी वांचीने अभ्यास करे तो तेमनी धर्म प्रत्येनी सूग टळी जईने परम सत्य धर्मनी रुचि थया
विना रहे नहीं. माटे तेवा भाईओने आ पत्रनो अभ्यास करवानी नम्र सूचना छे.
कोई पण जीव गमे तेने माटे गमे तेवो अभिप्राय धराववा स्वतंत्र छे. केटलाक नास्तिक जेवा लोको
सतधर्मने हंबग (Humbug) माने छे, तेमने पण आत्मधर्ममां आवता वस्तुस्वरूपनो अभ्यास करवानी खास
सूचना छे. वस्तुस्वरूपना यथार्थ ज्ञान विना कदी पण कोई जीव सुखी थाय नहीं. जैनधर्म ए कोई वाडो के
कल्पित मत नथी, पण वस्तुनुं स्वरूप जेम छे तेम ते बतावे छे एटले जैनधर्म वस्तुस्वभाव छे. वस्तुस्वरूपना
अभ्यास वगर कोई सुखी थवा मागतुं होय, तो ते अशक्य छे.
वर्तमान केळवणी केटलाक जुवानोना मगजमां एवा प्रकारनी धून पेदा करे छे के ‘अमे घणा डाह्या
छीए. अने जेओए तेमना जेवी केळवणी न लीधी होय तेओ मूर्ख छे एम तेओ माने छे. वळी तेओ माने छे
के धर्मनो अभ्यास तो नवरा वृद्ध लोको माटे छे; अने आपणुं काम तो जगतमां आगळ वधीने धननी प्राप्ति शी
रीते थाय, अने आपणा देशनी धनसंपत्ति शी रीते वधे–तेना उपायो करवानुं छे, –एम मानीने ते संबंधी वातो
अने चर्चाओ कर्या करे छे. एटले धर्म तो जाणे के नकामी वस्तु होय अने तेना वगर ज सुखी थई शकातुं होय–
एम तेमने लागे छे. तेमनी ए मान्यता अने विचारो केटला जुठ्ठा अने अहंकार भरेला छे ते आ पत्र बतावे
छे. धर्मनो अभ्यास मात्र नवरा के वृद्धनुं कार्य नथी पण धर्म तो दरेके दरेक जीवनुं कर्तव्य छे. जे कोई जीव सुखी
थवा मांगता होय ते दरेकनुं–पछी भले ते वृद्ध हो के बाळक हो, पुरुष हो के स्त्री हो, भणेल हो के अभण हो,
करोडपति हो के निर्धन हो ते दरेकनुं ए ज कर्तव्य छे, एम आ पत्र सचोट रीते साबित करे छे अने साथे साथे
ए पण बराबर समजावे छे के धर्म ए आत्मानी चीज छे, तेथी तेनी शरूआत पण आत्मामांथी ज थाय छे.
कोई बाह्यक्रियाओ वडे तेनी शरूआत थती नथी माटे सर्वे युवको पण आ मासिक