Atmadharma magazine - Ank 074
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४७६ : ३१:
पासेथी देशनालब्धि मळी नथी पण पूर्वे ज्ञानी पासेथी मळी छे. जे जीवोने पूर्वे आत्मज्ञानी पासेथी देशनालब्धि
प्राप्त थई न होय अने तेना संस्कार न होय तेवा जीवो कदी पण द्रव्यलिंगीना उपदेशथी सम्यग्द्रष्टि थई शके ज
नहीं. आम वस्तुस्थिति होवा छतां अज्ञानीना उपदेशथी पण जेओ देशनालब्धि अने सम्यग्दर्शन थवानुं माने
छे तेओ धर्मना सत्य निमित्तनो निषेध करनारा छे. धर्ममां सत्पुरुषनो उपदेश ज निमित्तरूप होय–एवो जे
व्यवहार तेनुं पण ज्ञान तेमने ऊंधुंं छे. माटे मुमुक्षुओए, धर्ममां निमित्तरूप ज्ञानी पुरुषोनो ज उपदेश होय–
एम बराबर समजीने सत्समागमे स्वभाव समजवानो प्रयत्न करवो.
× × ×
आ आत्मधर्म मासिक जेम बने तेम वधु विकसित थाय अने तेना ग्राहकोनी संख्या वधे–एवा हेतुने
लक्षमां लईने आ वर्षथी श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टे आत्मधर्मनुं आर्थिक सुकान संभाळी लीधुं छे. आ वर्षे
आत्मधर्मना ग्राहकोने खास लाभो नीचे मुजब मळशे.
(१) कागळ ऊंची जातना आवशे.
(२) अंकनी पृष्ट संख्या १६ ने बदले २० रहेशे.
(३) अधिक मास होवाथी १२ ने बदले १३ अंक मळशे.
(४) लगभग चार रूपियानी किंमतना त्रण सुंदर पुस्तको (१. भेदविज्ञानसार, २. सम्यग्दर्शन अने
चिद्दविलास–गुजराती) भेट तरीके मळशे.
–छतां लवाजम मात्र ३ रूा. ज छे. आत्मधर्मना सर्वे धर्मप्रेमी पाठको आत्मधर्मने पोतानुं ज जाणीने
तेनो खूबखूब प्रचार करे एवी आग्रहभरी विनंति छे. हाल आत्मधर्मना अंदाज १प०० ग्राहको छे, अने आ
वर्ष दरमियान तेना २प०० ग्राहको थई जाय तेवी अमारी उमेद छे.
छेवटे, आत्मधर्ममां आवतां अध्यात्म–झरणां जेमना पावन ज्ञानसमुद्रमांथी निरंतर वहे छे–एवा
परमकृपाळु पू. गुरुदेवश्रीना चरणारविंदमां नमस्कार करीने, तेओश्रीनी कल्याणकारिणी वाणी जयवंत वर्तो
एवी भावना साथे, आ लेख समाप्त करु छुं.
–संपादक
त्त्त् ख्
आ तो पोताना आत्माने समजवानी
ज वात छे, बीजी कोई वातनी मुख्यता करता
नथी, केम के बधा तत्त्वोमां एक शुद्ध
आत्मतत्त्व ज उपादेय छे. आत्मतत्त्वनी वात
पोताना घरनी छे केमके पोते ज आत्मतत्त्व छे;
तेने ओळखवाथी ज धर्म थाय छे. भले ओछी
बुद्धि होय पण जो पोताना स्वभावनो महिमा
करीने समजवा मागे तो जरूर समजाय, एवुं
वस्तु स्वरूप छे.
नियमसार उपरना प्रवचनोमांथी.
सत्य स्वरूप
पोतानो शुद्धात्मा कई रीते जणाय?
बहारनी क्रियाना शुभरागथी आत्मा समजाय
नहि पण अंतरमां ज्ञाननी क्रियाथी समजाय.
साचा ज्ञान वडे आत्मा ओळखाय. साचा ज्ञान
सिवाय बीजो कोई उपाय करवाथी आत्मा
समजाय नहि. जेवुं सत्य स्वरूप छे तेवुं पोताना
ज्ञानमां स्वीकारवाथी सत् प्रगटे पण स्वरूपने
बीजी रीते मानवाथी सत् प्रगटे नहि. अज्ञानी
जीवो असत्यने सत्य मानीने तेनुं सेवन करे
तेथी कांई तेमने सत्य धर्म प्रगटे नहि अने जे
सत्य स्वरूप छे ते विपरीत थई जाय नहि.
नियमसार गा. ३८ उपरना प्रवचनोमांथी.
पू. गुरुदेवश्रीनो विहार
परम पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी कारतक वद १३ शुक्रवारना सोनगढथी विहार करी बोटाद,
राणपुर वढवाण थई राजकोट पधारवाना छे. आथी अतिथिगृहनुं रसोडुं बंध रहेशे तो कोई अतिथिए
महाराजश्री विहारमां होय त्यां सुधी सोनगढ जवुं नहि. तेमज पुस्तक वेचाण विभाग पण बंध रहेशे. तो छ
मास सुधी टपालथी पुस्तको मंगाववा नहि के पुस्तक मंगाववा पैसा सोनगढ मोकलवा नहि.