Atmadharma magazine - Ank 074
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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श्री मोक्षअधिकार गा. २९८–२९९ उपर पू. गुरुदेवश्रीनुं
प्रवचन वीर सं. २४७१ मागसर वद ३
: ३२: आत्मधर्म: ७४
मोक्षनो उपाय
आ मोक्ष अधिकार छे; मोक्ष एटले आत्मानी परम पवित्र दशा अहीं आचार्यदेव आत्मानी परम शुद्ध
मोक्षदशाना उपायने घणो नजीक लावीने वर्णवे छे. शरीर–मन–वाणी–धन के देव–गुरु–शास्त्रथी आत्मानुं हित
थाय ए मान्यता तो दूर करी दीधी, अंतरमां दया भक्ति वगेरे पुण्य भावथी मुक्ति थाय–एवी मान्यताने पण
मोक्षमार्गमांथी दूर ज करी. अने हवे तो ‘हुं चेतनावडे आत्माने चेतुं छुं’ एवा भेदना विकल्पने पण दूर करीने
चेतनाना अभेद अनुभवनी वात आवी छे; ए ज मोक्षनो उपाय छे. पहेलांं अज्ञानदशामां पर लक्ष करीने
विकारने ज अनुभवतो हतो, हवे चेतना लक्षण वडे आत्माने जाणीने शुद्ध चेतना तरफ वळे छे, भेदना
विकल्पने तोडीने चेतना अभेद स्वभावमां ढळे छे अर्थात् स्वभावमां अभेद थतां भेदनो विकल्प तूटी जाय छे.
(२) चेतना ते ज आत्मानुं लक्षण छे. चेतना दर्शन–ज्ञानमय छे. पुण्य–पाप आत्माना चेतन
स्वभावथी जुदा छे. आत्मा ज्ञाता द्रष्टा छे. परनी सामे जोया करवुं एनुं नाम ज्ञाता–द्रष्टापणुं नथी पण
पोताना ज्ञायक दर्शक स्वभावने ओळखीने तेमां स्थिर रहेवुं ते ज ज्ञाता–द्रष्टापणुं छे. आपणे ज्ञाता–द्रष्टा रहीने
परना काम करवां–ए मान्यता मिथ्याद्रष्टिनी छे; केम के आत्मा परनुं करी शकतो ज नथी. ज्ञान–दर्शन लक्षण वडे
पोताना स्वभावने जाणीने तेमां ठरवुं ते मोक्षनो निकट उपाय छे. निकट उपाय केम कह्यो? –केमके सम्यग्दर्शन
ज्ञान ते पण मोक्षनो उपाय छे. परंतु सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वक स्थिरता ते मोक्षनो साक्षात उपाय छे. तेथी तेने
निकट उपाय कह्यो. सम्यग्दर्शन–ज्ञान पछी पण स्वरूपमां स्थिरता वगर मोक्ष थतो नथी.
(३) भगवान शुद्ध आत्माने कई रीते ग्रहण करवो? अर्थात् आत्माना स्वभाव तरफ ढळीने तेनो
अनुभव कई रीते करवो? तेनी रीत आचार्यदेव बतावे छे. ज्ञान–दर्शनरूप चेतना ते ज हुं छुं–एम आत्माने
अनुभववो. जो के ‘हुं आवो छुं’ एम भेदना विकल्प वडे आत्मानो अनुभव थतो नथी पण कथनमां भेद
आव्या विना रहेतो नथी.
(४) चेतना कोने कहेवी? भगवाननी भक्तिमां जे झमकार वागे तेमां चेतना नथी अने भक्तिनो शुभ
विकल्प ऊठ्यो ते पण चेतनानुं स्वरूप नथी. स्वरूप तो जाणवा–देखवारूप ज छे. देखवामां सामान्य ‘छे’ एटलुं
ज आवे छे पण तेमां भेद पडता नथी, ज्ञानमां बधुं भेदीने जणाय छे. आवा ज्ञान–दर्शनमय चेतना ते ज
आत्मा छे एम ओळखीने आत्मामां अभेद थवुं ते मोक्षनो उपाय छे. भाई, तुं चेतनार छे, जाणवुं–देखवुं ए ज
तारुं स्वरूप छे अने ए ज स्वरूप चारित्ररूप परमानंद मुक्त दशानो उपाय छे.
(प) सम्यग्द्रष्टि विचारे छे के हुं देखनारा आत्मामां लीन थाउं छुं; बाह्य तरफ ढळता पुण्य–पापना बंध
भावोथी जुदुं मारुं स्वरूप जाणीने ते बंध भावने छेदीने मारा द्रष्टा स्वरूपमां हुं अभेद थाउं छुं. बंध भावने
छेदवा अने स्वरूपमां ढळवुं ए बंने कांई जुदा जुदा नथी, स्वरूपमां ढळ्‌यो एटले बंधभाव छेदाई गया. अहीं
आचार्य भगवान कहे छे के भेदना विकल्प तोडीने अभेद अनुभववडे ज आत्मानुं ग्रहण थाय छे. ‘हुं द्रष्टा छुं,
ज्ञाता छुं’ एवा अंतरंग भेदना विकल्प वडे पण आत्मानुं ग्रहण थतुं नथी, तो पछी पुण्य–पापनी वृत्तिथी के
बाह्य क्रियाथी आत्मानुं ग्रहण (आत्मानो अनुभव) केम थाय? अने धर्मी जीव तेनुं कर्तृत्व केम माने? नज
माने. पहेलांं आवुं भान करवुं जोईए. आवा भान वगर साचुं चारित्र होय नहि ने साचा चारित्र वगर मोक्ष
थाय नहि. आत्माने ओळखीने तेनुं ग्रहण करवुं ते ज मोक्षनो उपाय छे.
बहारनी क्रियाथी के पुण्यभावनी प्रवृत्ति करतां करतां आत्माने बंध भावथी निवृत्ति थती नथी, पण
मारा देखनार स्वभावमां हुं मारी प्रवृत्ति करीने, तेमां लीन थईने, बंध भावथी निवृत्ति करुं छुं. आ रीते
देखनार आत्मामां लीन थवुं ते ज ज्ञाननुं चारित्र छे, अने ते ज धर्म छे.