लक्षण वडे पोताना आत्माने परथी अने पुण्य–पापथी जुदो जाणीने, पोताना स्वभावनुं सेवन करे छे अने
अज्ञानभावनुं अनतुं दुःख टाळीने पोते पोताना आत्माने सुखी करे छे, ते ज धर्म छे.
उत्तर:– नहि; प्रतिकूळ संयोग ए कांई दुःखनुं स्वरूप नथी. वळी लाकडी मारवी के न मारवानी क्रिया पण
रहे छे, तेना भावना कारणे आ जीवने दुःख थतुं नथी; अने शरीर उपर लाकडी पडवाना कारणे पण एने दुःख
थयुं नथी. तेने दुःख थाय तो तेनी पोतानी शरीर उपरनी ममताना कारणे ज थाय छे. माटे कोई कोईने दुःखी के
सुखी करी शकतुं नथी.
उत्तर:– एम पण नथी. केमके असाता कर्मनो उदय तो बाह्य संयोग आपे, पण ते संयोग वखत दुःखनी
पण मोहभावथी ज दुःख थाय छे. असाताना संयोग वखते पण जो पोते मोह वडे दुःखनी कल्पना न करे अने
आत्माने ओळखीने तेना अनुभवमां रहे तो दुःख थतुं नथी. बाह्य संयोगने फेरवी न शकाय पण संयोग
तरफना वेदनने फेरवी शकाय छे.
भरे छे. पण सिंहने गोळी लागे त्यां गोळी सामे जोतो नथी पण ते तो गोळी छोडनार उपर ज तराप मारे छे.
तेनो वांक काढे छे. पण अंदरनी ममता ज दुःखनुं कारण छे, ते ममताने तो जाणतो नथी, तेने टाळतो नथी,
अने कूतराना द्रष्टांतनी जेम शरीरना संयोगने ज दुःखनुं कारण मानीने तेने फेरववा मागे छे. अने जे ज्ञानी छे
ते तो पुरुषार्थमां सिंहवृत्ति जेवा छे, तेओ कोई पण संयोगने दुःखनुं कारण मानता नथी तेथी तेमने संयोग
फेरववानी बुद्धि होती नथी. पोताना दोषथी जे रागादि भावबंध छे ते ज दुःखनुं कारण छे एम जाणीने, अने ते
रागादिथी भिन्न पोताना चेतन स्वभावने ओळखीने, स्वभावना पुरुषार्थनी उग्रताना जोरे ते रागादिने छेदी
नांखवा मांगे छे. कोई परवस्तु आत्माने दुःखनुं कारण छे ज नहि. अने ए ज प्रमाणे देव–गुरु–शास्त्र वगेरे
कोई पण पर वस्तु आत्माने सुखनुं के धर्मनुं कारण पण नथी. पोताना चैतन्य स्वभावने जाणीने तेनुं ग्रहण
“वळी योग गुणनी पर्याय पण आत्मा प्रमाणे होवा छतां तेमां मध्य रूचक प्रदेश अकंप रहे छे ने बीजा