Atmadharma magazine - Ank 074
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 23

background image
मागशर: २४७६ : ३७:
(श्रोता: जी हा, साहेब! समजाय छे तो खरुं. पण आमां ध्यान बहु ज राखवुं पडे छे!)
(२१) कये ठेकाणे ध्यान राख्या वगर समजाय? पैसा पेदा थवानी, के सगपण वगेरेनी जे वात पोताने
गोठे छे तेमां केवुं ध्यान राखे छे? तो स्वभाव समजवा माटे तो अपूर्व एकाग्रता जोईए ज. वकीलातनुं ज्ञान
तेमां ध्यान राख्या वगर थतुं नथी, रसोई केम थाय तेनुं ज्ञान तेमां ध्यान राख्या वगर थतुं नथी तेम आत्मानी
समजण पण ध्यान वगर थती नथी. ध्यान राखवुं एटले के ज्ञानने ते तरफ एकाग्र करवुं. जो स्वभाव तरफ
ज्ञानने एकाग्र करे तो जरूर समजाय.
(२२) जेटली देखवानी निर्मळ अवस्था थाय तेनी एकता आत्मामां छे, पण जे पुण्यनी वृत्ति ऊठे–
गुण–गुणी भेदनी शुभ वृत्ति ऊठे तेनी एकता आत्मामां नथी. पुण्य–पाप रहित जेटली स्वभावदशा छे ते ज
मुक्तिमां जईने मळे छे, पुण्य पापना भावो तो बीजी ज क्षणे छूटी जाय छे. आ रीते, परथी तो जुदो पाडयो
अने पोतामां पणु भंगभेदनो आश्रय छोडावीने अभेद अनुभवमां लावे छे. आ प्रमाणे ठेठ मुक्तिनी नजीक
लाव्या. अभेदनो अनुभव ते ज मोक्षनो उपाय छे. हे जीव! बधा पराश्रय भाव अने भेदभंगने पडता मूकीने
अभेद स्वभाव तरफ वळ. अज्ञानी जीव पण परनुं कार्य तो करी शकतो नथी. तो पछी ज्ञानी तो ते विकल्प पण
केम करे? पर लक्षे थता विकल्पथी पण खसीने निर्विकल्प स्वभाव तरफ ढळवुं ते ज मुक्तिनो उपाय छे. हुं
देखता माटे ज देखुं छुं’ एटले के देखनारनी पर्याय देखवारूप स्वभावमां ज टकी रहे ए माटे हुं द्रष्टापणे देखुं ज
छुं. चेतनानुं सळंगपणुं छे ते स्वभावनी एकतामां जाय छे.
(२३) जुओ, आ अंतरनी सूक्ष्म वात छे. आत्मानो मोक्ष केम थाय तेनी आवात छे. आत्मा ने परथी
तथा पुण्य–पापथी छूटो ओळखीने स्वभावनो अनुभव केम करवो तेनी आ वात छे. स्वरूपमां ढळीने एकदम
मोक्ष लेवानी आ वात छे. हुं द्रष्टास्वरूपे देखुं ज छुं, देखताने ज देखुं छुं, देखतामां–देखतावडे–देखता माटे ज देखुं
छुं–ईत्यादि छ कारक संबंधी विकल्पो वच्चे आवी जाय छे परंतु ते विकल्पमां अटक्या वगर, चेतनाने स्वभाव
तरफ लंबावीने–एकाग्र करीने–चेतन मात्र भावमां स्थिर थईने हुं मने देखुं छुं–आवो अभेद अनुभव करवानी
आ जाहेरात छे, आचार्य भगवान अभेद स्वरुपनो अनुभव करवा माटे मोक्षार्थी जीवोने आमंत्रण करे छे.
(२४) हुं देखुं छुं–मने देखुं छुं–ईत्यादि छ कारक भेदना विकल्प होवा छतां ते छए कारकमां देखनारो तो
एक ज कायम सळंग छे, देखनार छ भेदरूप थई जतो नथी. अहीं निमित्तथी देखुं छुं के रागथी देखुं छुं के
ईन्द्रियोथी देखुं छुं –एवी तो वात ज नथी, केमके ए बधानुं लक्ष छोडीने हवे स्वभाव तरफ वळे छे, ने स्वभाव
तरफ वळतां वळतां विकल्प ऊठे छे तेनो निषेध करे छे.
हवे छ कारक भेदना जे विकल्प ऊठे छे तेनो निषेध करे छे. –“हुं नथी देखतो, नथी देखतो थको देखतो,
नथी देखता वडे देखतो, नथी देखता माटे देखतो, नथी देखतामांथी देखतो, नथी देखतामां देखतो के नथी
देखताने देखतो. परंतु सर्व विशुद्ध दर्शनमात्र भाव छुं.” आ रीते धर्मी आत्मानो अनुभव करे छे अने ते ज
मोक्षनो उपाय छे.
(२प) अहीं “हुं नथी देखतो” ईत्यादि प्रकारो कह्या छे तेमां कांई देखवापणानो नकार कर्यो नथी परंतु
‘हुं’ अने ‘देखनार’ एवा जे गुणगुणी भेद पडे छे तेनो नकार कर्यो छे. अनुभव वखते आत्मामांथी द्रष्टा
शक्ति चाली जती नथी परंतु ‘हुं द्रष्टा छुं’ एवो विकल्प होतो नथी. अहीं द्रष्टा शक्ति संबंधी विकल्प तोडीने
अभेदमां ठरवा माटे आ वात लीधी छे. भेदनो नकार करवामां पण विकल्प छे. ‘मारामां भेद नथी’ एम
भेदनो नकार करवामां पण निषेधनो विकल्प छे. माटे खरेखर ‘भेदनो निषेध करुं’ के ‘विकल्प टाळुं एवा लक्षे
भेदनो विकल्प टळतो नथी, पण अभेदना अनुभवमां ठरतां ज भेदनो विकल्प टळी जाय छे. परंतु समजाववुं
कई रीते? कथनमां तो भेद पड्या विना रहे नहि. अनुभव वखते विकल्प न होय पण ज्यारे अनुभवनुं वर्णन
करवा बेसे त्यारे तो (छद्मस्थने) विकल्प होय छे ने कथनमां भेद आवे छे. जो समजनार पोते आशयने
समजीने अभेदने लक्षमां लई ल्ये तो ज ते वस्तुने अनुभवी शके.
(२६) धर्मात्मा जीव अथवा तो धर्मी थवानी तैयारीवाळो जीव भावना करे छे के हुं एक अखंड
चेतनार स्वभाव छुं. ‘हुं’ अने ‘देखनार’ एवा बे भेद मारामां केवा? आमां चेतनाने विशेष लंबावीने
स्वभाव साथे एकता करीने विकल्प तोडवाना पुरुषार्थनी उग्रता छे.