Atmadharma magazine - Ank 074
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: ३८: आत्मधर्म: ७४
आ ज धर्मनो उपाय छे. हे जीव! “माराथी आ न थाय” एम ना न पाडीश. हा ज पाडजे. स्वभावना हकारथी
उपड्यो तो आ समजाशे, अस्तिना जोरे ज आवी दशा प्रगटी जशे. पण ना पाडीश तो नास्तिमांथी आ दशा
कदी आवशे नहि. माटे पहेलेथी पराणे हा पाडवी. ‘पराणे हा पाडवी’ एटले के अंतरमां हा पाडीने समजवानो
पुरुषार्थ करवो. जो पहेलेथी ज ना पाडशे तो तेनो पुरुषार्थ आघो नहि चाले.
(२७) विकल्प होवा छतां धर्मी जीव विचारे छे के आ विकल्पमां अटकतो भाव मारूं स्वरूप नथी, हुं तो
सळंग द्रष्टा–ज्ञाता स्वरूप ज छुं. द्रष्टा–ज्ञाता सिवाय बीजुं मारुं कर्म नथी. हुं कर्ता अने द्रष्टा–ज्ञातापणानी क्रिया
ते मारुं कर्म एवा बे भेदनो विकल्प पण मारा स्वरूपमां नथी. मारा एक स्वभावमां बे प्रकार नथी.
पहेलांं ‘हुं देखुं ज छुं’ एम हकारथी वात लीधी ने पछी ‘हुं नथी देखतो’ एम भेदना नकारथी वात
लीधी, ए बंनेमां रागनो विकल्प छे. स्वरूपमां एकाग्रता वखते विकल्प होतो नथी. अहीं भेदना नकारनो
विकल्प वर्ततो होवा छतां ते नकारना विकल्प पाछळ जे अस्ति स्वभाव छे ते ज्ञानमां अभेदपणे आवे छे अने
ते अभेद तरफ वलणना जोरे ज भेदनो विकल्प तूटी जवानो छे.
(२८) अहीं, कोई जड कर्मो आत्माने अनुभव करतां रोके छे–एम नथी कह्युं, पण भेदनो विकल्प आडो
आवे छे–एम कह्युं छे. अज्ञानीओ माने छे के व्यवहार मददगार छे पण अहीं तो कहे छे के भेदना विकल्परूप
व्यवहार वच्चे आवे छे ते अभेद स्वभावना अनुभवने रोके छे. पोताना स्वरूपनी अनुभूतिमां वच्चे जे
विकल्प आडो आवी पडे छे तेने अभेदना लक्षे छोडी देवानी वात करीने अभेदमां स्थिरता करवानुं बतावे छे.
(२९) अनुभवमां कारकभेदना विकल्प नथी. एम नकारथी कह्युं, परंतु त्यां छे शुं? अनुभव करनार
केवो अनुभव करे छे? ते कहे छे. ‘सर्व विशुद्ध दर्शनमात्र एक निर्मळभाव छुं’ एवो निर्विकल्प अनुभव थाय
छे. आ अनुभव वखते ‘हुं सर्व विशुद्ध दर्शनमात्र छुं’ एवो विकल्प पण छूटी गयो छे. पहेलांं अव्यक्तपणे जे
वात प्रतीतमां लीधी छे तेने भावनामां व्यक्त करे छे–प्रगट अनुभव करे छे. आ भावना ते निर्मळ पर्यायरूप
छे. मोक्षमार्ग ते द्रव्य के गुण नथी पण निर्मळ पर्याय ज छे. विकल्प पर्याय फेरवीने अभेदमां ढळे छे. जे जीवे
सतनुं श्रवण करीने अभेद स्वभावने लक्षमां लीधो तथा ठेठ स्वभावना विकल्प सुधी आव्यो ते हवे स्वभावनो
प्रगट अनुभव कर्या वगर पाछो जाय... एम बने ज नहि. विकल्प करतां करतां आगळ वधतो नथी, पण
पहेलेथी ज जे अभेदना लक्षे उपड्यो छे ते विकल्प तोडीने अभेदने पहोंची वळे छे.
(३०) प्रश्न:– आ बधुं कोने संभळावो छो?
उत्तर:– आ जेनाथी थई शके तेम छे तेने कहेवाय छे. आ जीवनी वात छे. ते दरेक जीवथी थई शके तेवी
छे माटे कहेवाय छे; कांई जडनी सामे आ वात समजावाती नथी. चेतनमां बधुं ज समजवानी ताकत छे अने न
समजाय ए केम बने? हे जीव! भगवाने जे कह्युं छे ते बधुं ताराथी थई शके छे माटे ज कह्युं छे. तारामां जेटली
शक्ति जोई छे तेटलुं ज भगवाने कह्युं छे, ताराथी न थई शके एवुं कांई पण भगवाने कह्युं नथी. माटे ‘मने
नहि समजाय’ एम ना पाडवी ज नहि. तुं चेतन समजवानी शक्तिवाळो छे अने तने समजवानुं ज कह्युं छे,
पण कांई चेतनमांथी जड थई जवानुं तने कह्युं नथी, केम के ते ताराथी थई शकतुं नथी. पण समजण तो तारुं
स्वरूप ज छे अने ते ताराथी थई शके छे.
लोकोमां पण जेनाथी मणीका ऊपडी शके तेम होय तेने कहे छे के वखारेथी मणीकुं लई आव, पण कांई बे
वरसना बाळकने तेम कहेता नथी. तेमज जेने रांधतां आवडे तेवी बहेनने रसोई करवानुं कहे छे, कांई छ
महिनानी बाळकीने कोई रसोई करवानुं कहेतां नथी. केमके त्यां सामानी शक्ति जोईने ज काम बतावे छे. अरे
भाई! त्यां तो जोनारा अज्ञानी पण होय छे, परंतु अहीं तो त्रण लोकना नाथ, परम पिता चैतन्यमूर्ति सर्वज्ञ
भगवान तारी लायकात जोईने तने कहे छे के ‘तुं आत्मा छे, ज्ञान दर्शनमय छे, तारामां परिपूर्ण ज्ञान दर्शननी
ताकात छे, माटे ज्ञान–दर्शन सिवाय बधा परभावोने छोडी दे अने एकला ज्ञायक–दर्शक आत्मानी ज प्रतीत
करीने तेनो ज अनुभव कर. ए ज मुक्तिनो उपाय छे.’ भगवाने एवो उपदेश कर्यो अने जो तुं एम कहे के ए
माराथी केम थाय? तो तें सर्वज्ञने ज मान्या नथी अने तारा आत्माने पण मान्यो नथी.