आत्मानो परिपूर्ण ज्ञानस्वभाव ज जो जीव नक्की न करे तो तेने आत्मानी साची श्रद्धा पण शी रीते थाय? अने
तेना वगर मिथ्यात्व पण टळे नहीं, ने मिथ्यात्व टळ्या विना राग–द्वेष टळी शके नहीं. माटे दरेक जिज्ञासु जीवोए
प्रथम ज आत्मानी संपूर्ण सर्वज्ञ शक्तिनो यथार्थ निर्णय अवश्य करवो जोईए. सर्वज्ञनो यथार्थ निर्णय करतां
जगतना मोटा भागना विद्वानो अने त्यागीओ पण ‘सर्वज्ञ’ नुं स्वरूप समजवामां जे भ्रमणा करी रह्या छे तेनुं
अयथार्थपणुं जणाया विना रहेशे नहीं.
त्यां ते ज्ञानमां शुं न जणाय? बधुं ज जणाय छे. जो पूरा ज्ञेयोने न जाणे तो पूरुं ज्ञान ज सिद्ध थतुं नथी.
जगतना बधा पदार्थोनो प्रमेय स्वभाव छे, तेथी पूरुं ज्ञान प्रगटी जता बधांय पदार्थो स्वयमेव ते ज्ञानमां
जणाय छे, तेथी ‘आ ज्ञेयोने जाणवुं प्रयोजनभूत छे ने आ अप्रयोजनभूत छे’ एवुं तेमने छे ज नहीं.
आत्मानो ज्ञानस्वभाव पूरो खीली गयो त्यां तेमां कीडीमंकोडा वगेरे बधुंय स्वयमेव जणाय छे. जगतना ज्ञेय
पदार्थो होय ते पूरा ज्ञानमां न जणाय–ए केम बनी शके?
विशिष्ट तत्त्वविचार होतो नथी. ‘विचारक’ तो अल्पज्ञ होई शके. जेने हजी कांईक जाणवुं बाकी होय ते ज विचारक
होई शके. विचार ते श्रुतज्ञाननो प्रकार छे; भगवानने विशिष्ट तत्त्वविचारक कहेवा ते तो भगवाननी सर्वज्ञतानो
नकार करीने तेमने अल्पज्ञ मानवा बराबर छे. ए मान्यता तद्न मिथ्यात्व छे. भगवान तो सर्वज्ञ छे, तेमने कांई
नवुं जाणवानुं के नवो निर्णय करवानुं बाकी रह्युं नथी. तेथी तेमने विचार करवानुं रह्युं ज नथी.
आत्मानुं ज सर्वज्ञस्वरूप अथवा तो ज्ञायकस्वरूप छे.
वस्तुस्वरूपने पण मानतो नथी.
प्रवचनसारनी ८० मी गाथामां भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के जे जीव अर्हंत भगवानने
भगवान एक समयमां जगतना बधा पदार्थोनुं स्वरूप संपूर्णपणे जाणे छे; तेमनुं ज्ञान सत्य अने संपूर्ण
होवाथी सर्व वस्तुना स्वरूपने जेम छे तेम जाणे छे. त्रणकाळमां जे समये जे पर्याय थवाना छे तेने ते ज प्रमाणे
निश्चितपणे जाणे छे; केमके जेवा ज्ञेयो होय तेवा तेने परिपूर्ण जाणी लेवानो ज्ञाननो स्वभाव छे. जो ज्ञेय होय
तेनाथी विपरीतपणे जाणे तो ज्ञान विपरीत ठरे अने जो सर्वज्ञेयोने न जाणे तो ज्ञान अपूर्ण होय.
होय त्यारे ते ज थाय छे. छए द्रव्योमां जे परिणामो थाय छे ते सर्वे पोतपोताना अवसरमां स्वरूपथी उत्पन्न
अने पूर्वरूपथी विनष्ट छे. द्रव्यने विषे पोतपोताना अवसरोमां प्रकाशता समस्त परिणामोमां पछी पछीना
अवसरोए पछी पछीना परिणामो प्रगट थाय