Atmadharma magazine - Ank 074
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४७६ : २७:
जे अरिहंत भगवानने द्रव्यपणे, गुणपणे अने पर्यायपणे जाणे छे, ते (पोताना) आत्माने जाणे छे अने
तेनो मोह अवश्य लय पामे छे. जो सर्वज्ञता नक्की न थाय तो आत्मानो परिपूर्ण ज्ञानस्वभाव ज नक्की न थाय.
आत्मानो परिपूर्ण ज्ञानस्वभाव ज जो जीव नक्की न करे तो तेने आत्मानी साची श्रद्धा पण शी रीते थाय? अने
तेना वगर मिथ्यात्व पण टळे नहीं, ने मिथ्यात्व टळ्‌या विना राग–द्वेष टळी शके नहीं. माटे दरेक जिज्ञासु जीवोए
प्रथम ज आत्मानी संपूर्ण सर्वज्ञ शक्तिनो यथार्थ निर्णय अवश्य करवो जोईए. सर्वज्ञनो यथार्थ निर्णय करतां
जगतना मोटा भागना विद्वानो अने त्यागीओ पण ‘सर्वज्ञ’ नुं स्वरूप समजवामां जे भ्रमणा करी रह्या छे तेनुं
अयथार्थपणुं जणाया विना रहेशे नहीं.
वळी कोई एम कहे छे के ‘कीडी–मंकोडा वगेरेने जाणवानुं भगवानने शुं प्रयोजन छे? माटे भगवान तेने
जाणे नहीं’ ए पण स्थूळ अज्ञान ज छे. आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे, ते ज्यां पूर्ण प्रगटी ने सर्वज्ञदशा थई गई,
त्यां ते ज्ञानमां शुं न जणाय? बधुं ज जणाय छे. जो पूरा ज्ञेयोने न जाणे तो पूरुं ज्ञान ज सिद्ध थतुं नथी.
जगतना बधा पदार्थोनो प्रमेय स्वभाव छे, तेथी पूरुं ज्ञान प्रगटी जता बधांय पदार्थो स्वयमेव ते ज्ञानमां
जणाय छे, तेथी ‘आ ज्ञेयोने जाणवुं प्रयोजनभूत छे ने आ अप्रयोजनभूत छे’ एवुं तेमने छे ज नहीं.
आत्मानो ज्ञानस्वभाव पूरो खीली गयो त्यां तेमां कीडीमंकोडा वगेरे बधुंय स्वयमेव जणाय छे. जगतना ज्ञेय
पदार्थो होय ते पूरा ज्ञानमां न जणाय–ए केम बनी शके?
कोई लखे छे के– ‘महावीर की सर्वज्ञ और सर्वदशी के रूपमें प्रसिद्धि थी। वे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी थे या
नहीं यह इस समय की चर्चाका विषय नहीं है, पर वे विशिष्ट तत्त्व विचारक थे’ आ कथन महावीर भगवाननी
सर्वज्ञताने आडकतरी रीते उडावनारुं छे. सर्वज्ञदेवने तो बधुं ज जेम छे तेम ज्ञानमां जणाई गयुं छे, तेथी तेमने कोई
विशिष्ट तत्त्वविचार होतो नथी. ‘विचारक’ तो अल्पज्ञ होई शके. जेने हजी कांईक जाणवुं बाकी होय ते ज विचारक
होई शके. विचार ते श्रुतज्ञाननो प्रकार छे; भगवानने विशिष्ट तत्त्वविचारक कहेवा ते तो भगवाननी सर्वज्ञतानो
नकार करीने तेमने अल्पज्ञ मानवा बराबर छे. ए मान्यता तद्न मिथ्यात्व छे. भगवान तो सर्वज्ञ छे, तेमने कांई
नवुं जाणवानुं के नवो निर्णय करवानुं बाकी रह्युं नथी. तेथी तेमने विचार करवानुं रह्युं ज नथी.
आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे, अने विश्वना बधा ज पदार्थो ज्ञेयो छे. आ रीते वस्तुस्वरूप ज एवुं छे के ते
पूरा ज्ञानमां बधुं ज जणाय छे. सर्वे पदार्थो ज्ञेयो छे, तेने जाणनार पूर्णज्ञान पण अवश्य होय ज छे. ते
आत्मानुं ज सर्वज्ञस्वरूप अथवा तो ज्ञायकस्वरूप छे.
आ रीते (१) वस्तुना यथार्थ स्वरूपने अने (२) सर्वज्ञताने अविनाभावपणुं छे एटले के जे वस्तुना
यथार्थ स्वरूपने जाणे छे ते आत्मानी सर्वज्ञताने पण जरूर जाणे छे. जे सर्वज्ञताने नथी मानतो ते
वस्तुस्वरूपने पण मानतो नथी.
× × × × ×
३. स्वभाव तरफना ज्ञान अने पुरुषार्थ सहित क्रमबद्धपर्यायनी मान्यता
प्रवचनसारनी ८० मी गाथामां भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के जे जीव अर्हंत भगवानने
द्रव्यगुण–पर्यायपणे जाणे छे ते पोताना आत्माने जाणे छे अने तेनो मोह अवश्य लय पामे छे.’ अर्हंत
भगवान एक समयमां जगतना बधा पदार्थोनुं स्वरूप संपूर्णपणे जाणे छे; तेमनुं ज्ञान सत्य अने संपूर्ण
होवाथी सर्व वस्तुना स्वरूपने जेम छे तेम जाणे छे. त्रणकाळमां जे समये जे पर्याय थवाना छे तेने ते ज प्रमाणे
निश्चितपणे जाणे छे; केमके जेवा ज्ञेयो होय तेवा तेने परिपूर्ण जाणी लेवानो ज्ञाननो स्वभाव छे. जो ज्ञेय होय
तेनाथी विपरीतपणे जाणे तो ज्ञान विपरीत ठरे अने जो सर्वज्ञेयोने न जाणे तो ज्ञान अपूर्ण होय.
वस्तुनुं स्वरूप ज एवुं छे के तेना पर्यायो क्रमबद्ध थाय छे. जेटला त्रणकाळना समयो छे तेटला ज
वस्तुना पर्यायो छे, एटले कोई समयनो पर्याय आडो अवळो थतो ज नथी. जे समये जे पर्याय थवा योग्य
होय त्यारे ते ज थाय छे. छए द्रव्योमां जे परिणामो थाय छे ते सर्वे पोतपोताना अवसरमां स्वरूपथी उत्पन्न
अने पूर्वरूपथी विनष्ट छे. द्रव्यने विषे पोतपोताना अवसरोमां प्रकाशता समस्त परिणामोमां पछी पछीना
अवसरोए पछी पछीना परिणामो प्रगट थाय