Atmadharma magazine - Ank 075
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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पोष: २४७६ : ५१:
तप नथी. तप तो आत्माना ध्यानमां लीन थतां सहेजे ईच्छा तूटी जाय तेनुं नाम छे. अंतरनी दशाने भगवान
दर्शन–ज्ञान–चारित्र ने तप कहे छे.
(९) पहेलां सम्यग्दर्शन अने पछी सम्यक्चारित्र
पहेलांं तो सत्समागमे आत्मानी ओळखाण करीने सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान प्रगट करे, अने पछी
तेमां विशेष एकाग्र थतां पांच ईन्द्रियोना विषयोनी ईच्छा सहेजे ऊडी जाय तेनुं नाम त्याग छे. सम्यग्दर्शन
थतां ज रागनी मीठास तो ऊडी जाय छे एटले विषयोमां सुखबुद्धि रहेती नथी. अविरति सम्यग्द्रष्टिने राग
थाय अने बाह्यमां स्त्री आदि संयोग होय पण तेने तेमां क्यांय सुखबुद्धिपूर्वकनो राग होतो नथी, मात्र
आसकितनो राग होय छे. पछी आत्मामां विशेषपणे ठरतां आसकितनो राग पण रहेतो नथी, ने बाह्यमां पण
स्त्री आदि कांई परिग्रह होतो नथी. आवी दशाने चारित्र कहेवाय छे. जे जीव विषयोमां सुख मानतो होय, तथा
पुण्यमां अने तेना फळमां जेने मीठास होय ते तो मिथ्याद्रष्टि छे. आत्मामां आनंद नथी एम जे मानतो होय ते
ज विषयोमां ने विकारमां सुख माने छे. धर्मी जीवने तो सुखस्वरूपी आत्मानुं भान छे, पछी तेमां ठरतां राग
छूटी जतां ‘बाह्य स्त्री आदिने छोडी’ एम कहेवामां आवे छे. खरेखर ‘हुं राणीओने छोडुं’ एम ज्ञानीनो
अभिप्राय होतो नथी. राग हतो त्यारे राणीनुं निमित्तपणुं हतुं, पण स्वरूपनी चारित्रदशा वडे पोताना
उपादानमांथी राग टळी गयो एटले राणीनुं निमित्तपणुं पण छूटी गयुं, तेथी ‘राणीओने छोडी’ एम कहेवाय
छे. आ समज्या वगर अने आवी दशा प्रगट कर्या वगर कोई जीव परमात्मा थई शके नहीं.
(१०) अह, धन्य त दश!
अहो, भगवाने आवा भानपूर्वक चारित्रदशा लीधी अने वीतरागी ध्यानमां ठर्या. अहा, धन्य ते दशा!
एह परम पद प्राप्तिनुं कर्युं ध्यान में,
गजा वगर ने हाल मनोरथ रूप जो;
तोपण निश्चय राजचंद्र मनने रह्यो,
प्रभु आज्ञाए थाशुं तेज स्वरूप जो...
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे?
क्यारे थईशुं बाह्यांतर निर्ग्रंथ जो;
सर्व संबंधनुं बंधन तीक्षण छेदीने,
विचरशुं कव महत् पुरुषने पंथ जो...
अहो, अंतरना भान सहितनी निर्ग्रंथता! श्रीमद्राजचंद्रजीने आत्मानुं भान छे ते गृहस्थपणामां आ
भावना करे छे. श्रीमदे १९प२नी सालमां २८ वर्षनी उमरे आ भावना करी छे. आवी भावना भाव्या वगर अने
तेवी साक्षात् दशा प्रगट कर्या वगर कोई पण जीवने कल्याण थतुं नथी. चारित्रदशा वगर एकला सम्यग्दर्शनथी
मोक्ष थई जतो नथी. २८ मूळगुण ते संतोनो सनातन मार्ग छे. आमां ए धन्य अवसर एटले आत्मानी
वीतरागी दशानो स्वकाळ क्यारे आवशे! तेनी ऊग्र भावना करी छे, दरेक जीवोए आत्मानुं भान करीने ए
भावना करवा जेवी छे. एवी भावनाथी आत्मानी रागरहित दशा थईने केवळज्ञान थाय, ते ज कल्याण छे.
आजनो वखत महा वैराग्य भावनानो छे. वीछीयामां
[केवळज्ञान कल्याणिक प्रसंगना तेमज प्रतिष्ठा थई ते दिवसना खास व्याख्यानो माटे आवतो अंक जुओ.]
त्रण भट पस्तक.
आत्मधर्मना ग्राहकोने त्रण भेट पुस्तको क्यारे मळशे ते संबंधी अनेक पत्रो मळे छे, ते संबंधी खुलासो
नीचे मुजब छे.
(१) भेदविज्ञानसार–रूबरू लई जवा गोठवण करे तेने आपीए छीए.
(२) चिद्दविलास–छपाय छे. ते तैयार थयेथी ग्राहकोने मोकलाशे.
(३) सम्यग्दर्शन– बधा ग्राहकोने जान्युआरीनी १ली तारीखथी टपालथी आंकडियाथी मोकलाशे.
व्यवस्थापक:
आत्मधर्म–सोनगढ