Atmadharma magazine - Ank 075
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: ५२ : आत्मधर्म: ७५
मनुष्यपणुं
पामीने शुं करवा जेवुं छे?
[श्री फागण वद १० चोटीलामां पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन: पद्मनंदी गा. १२]

आत्मा जे स्वरूपे छे तेनुं साचुं ज्ञान जीवे एक सेकंडमात्र पण अनंतकाळमां कर्युं नथी, अनादिथी पुण्य–
पापनां ज आचरण करीने तेने ज पोतानुं स्वरूप मान्युं छे. पुण्य–पापरहित निर्मळ चैतन्यस्वरूपनुं भान नथी
अने नाटकीओ जेम भेखने पोतानुं स्वरूप माने तेम ते विकारने ज पोतानुं स्वरूप माने छे. पुण्य–पापरहित
निर्मळानंद आत्मस्वभाव भगवाने कह्यो छे तेने जाणे तो मुक्ति थया विना रहे नहि. आत्मामां पूरुं जाणवानी
ताकात छे. भगवान बधाना जाणनारा छे, पण कोईनुं कांई करनारा नथी, आत्मा पोताने भूलीने अनंतकाळथी
अवतारमां रखडे छे, ते अवतार केम टळे तेनी आ वात छे. जीवे पूर्वे आत्मस्वभावनी वात सांभळी छे पण
अंतरमां तेनी रुचि करी नथी. भाई, आत्मानी समजण तें अनंतकाळमां नथी करी, ते अपूर्व छे, मन–वाणी–
देह रहित ज्ञानमूर्ति स्वभाव छे, तेनी सत्समागमे ओळखाण कर. मनुष्यपणुं पामीने ए करवा जेवुं छे; आ
शरीर तो राख थई जशे, ने आत्मा बीजे चाल्यो जशे ते आत्मानुं स्वरूप शुं छे तेने जाण.
आ जगतमां अज्ञानीओ आत्माने जुदी जुदी रीते कल्पे छे. जेम आंधळा जीवो हाथीने जोता होय,
त्यां जेना हाथमां पग आव्यो ते कहे के हाथी थांभला जेवो छे, जेना हाथमां सूंढ आवी ते कहे के हाथी
सांबेला जेवो छे, जेना हाथमां कान आव्यो ते कहे के हाथी सूंपडा जेवो छे, जेना हाथमां पूछडुं आव्युं ते कहे के
हाथी सावरणी जेवो छे. एम ते आंधळाओ हाथीना एकेक अंगने ज आत्मा माने छे, केमके आखो हाथी
तेमणे जोयो नथी. तेम आत्माना परिपूर्ण स्वभावने नहि जाणनारा अज्ञानीओ एक पडखांने ज आत्मा
मानी ले छे. आत्मामां ज्ञान, दर्शन, सुख, स्वच्छता, प्रभुता वगेरे अनंत धर्मो छे; तेवा आत्माने जे
ओळखता नथी तेओ आत्माने एकांत नित्य के सर्वथा क्षणिक माने छे; कोई रागादिने आत्मा माने छे, पण
शरीर अने रागादिथी भिन्न परिपूर्ण आत्मा केवो छे तेने अनंतकाळमां एक सेकंड पण जाण्यो नथी. जो
आत्माना परिपूर्ण स्वभावने एक सेकंड पण जाणे तो सम्यग्ज्ञान थईने मुक्ति थया विना रहे नहि. माटे आ
मनुष्यपणामां ए ज करवा जेवुं छे.
भगवान सर्वज्ञदेव कहे छे के भाई, अमारा आत्मानी जे जात छे, तेवी ज तारी जात छे. मारो ने तारो
आत्मा जुदो छे पण जात एक ज छे. जेम घउंनी गुणीमां दरेक दाणा जुदा छे पण जात एक छे, तेम आ
जगतमां अनंत आत्मा छे ते दरेक जुदा छे, पण जात एक छे. दरेक आत्मामां सिद्ध भगवान जेवी परिपूर्ण
ताकात पडी छे. एने भूलीने अज्ञानी जीव परमां ने पुण्य–पापमां सुख माने छे. जेम आंधळो सूंढने ज हाथी
माने छे तेम अज्ञानी क्षणिक पुण्यनी लागणीमां ज सुख माने छे एटले के ते विकारने ज आत्मा माने छे, तेने
आत्माना आनंदनो स्वाद आवतो नथी, पण विकारनो स्वाद आवे छे. सम्यग्दर्शन थतां आत्माना आनंदनो
स्वाद आवे छे. जेम आंख उघडतां आखो हाथी जणाय छे, तेम ज्यां सत्समागमे भान कर्युं के आ पुण्य–पाप
तो मारा स्वभावनी ऊलटी दशा छे, तेमां दुःख छे, ते मारुं स्वरूप नथी; पुण्य–पापरहित मारा स्वभावमां सुख
छे–एम ओळखीने सम्यग्ज्ञान प्रगट करतां आत्मा जणाय छे. भाई! आवो मनुष्यभव पामीने साचा ज्ञानरूपी
दोरो तारा आत्मामां परोवी ले तो तारो आत्मा संसारमां खोवाय नहि. जेम सोयमां दोरो परोवे तो ते उकरडे
खोवाय नहि, तेम आत्माना सम्यग्ज्ञानरूपी दोरो परोवी ल्ये ते जीव आ जगतना अवतारमां रखडे नहि.
अज्ञानी जीव त्रिकाळ निर्मळ आत्मा छे तेने भूली