Atmadharma magazine - Ank 075
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 21

background image
पोष: २४७६ : ५३:
जाय छे ने विकारने ज आत्मा माने छे, ते आंधळानी जेम एकांतवादी छे. अने आत्मानी अवस्थामां विकार
थाय छे ते पोतानो दोष छे, ते क्षणिक दोषने जाणे नहि अने आत्माने एकांत शुद्ध माने ते पण एकांतवादी
अज्ञानी छे. क्षणिक अवस्थामां विकार छे, अने त्रिकाळस्वरूप ते विकाररहित निर्मळ छे एम बंने पडखां जाणीने
सम्यग्ज्ञान प्रगट करवुं जोईए. आत्मामां ज्ञानस्वभाव भर्यो छे. पचास वर्ष पहेलांंनी वात जाणवा माटे ज्ञानने
वार लागती नथी, जेम कालनी वात याद करे तेम पचास वर्ष पहेलांंनी वातने पण याद करे छे. एवुं ज्ञाननुं
सामर्थ्य छे. अने ते ज्ञान आगळ लंबाय तो आ भव, पूर्वभव अने अनंतकाळनुं ज्ञान करे एवी आत्मानी
ताकात छे. चोपडामां तो पाना फेरववा पडे, पण ज्ञानमां पानां फेरववा पडतां नथी. ज्ञाननो स्वभाव एक
समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने जाणवानी ताकातवाळो छे. वळी ज्ञानमां घणुं जाणतां भार लागतो नथी.
त्रिकाळस्वभावमांथी ज्ञाननो प्रवाह आवे छे. अज्ञानीओ ने अनंतकाळथी चैतन्यना सामर्थ्यनो महिमा आव्यो
नथी, चैतन्य सामर्थ्यनो महिमा जाणे तेने सम्यग्ज्ञान थया विना रहे नहि, अने एक सेकंड पण एवुं सम्यग्ज्ञान
प्रगट करे तेने जन्ममरणनो नाश थया विना रहे नहि. धर्म अंतरनी अपूर्व चीज छे, ए बहारथी ओळखाय तेवी
चीज नथी. आवा आत्मानुं भान थया पछी धर्मीजीव स्त्री–पुत्रना संयोग वच्चे होय, पण जेम मडदा उपर
शणगार कर्यो होय तेथी कांई मडदुं राजी थतुं नथी, तेम धर्मी जीवने बहारना संयोगनी अने रागनी अंतरमां
प्रीति नथी, तेने परनो अंहकार अंतरमांथी ऊडी गयो छे. गृहस्थपणामां होवा छतां ते धर्मी छे, अने आत्मानी
ओळखाण वगर त्यागी थाय ने शुभभाव करीने तेनो अहंकार करे ते अधर्मी छे, ते संसारमां रखडे छे.
‘भाई, तुं चैतन्य छो, तारामां सुख भर्युं छे, पण ते भूलीने तने बहारमां सुखनी कल्पना थई गई छे.
भाई, तारुं सुख बहारमां न होय, बहारना लक्षे क्षणिक शुभ–अशुभ विकार थाय तेमांय तारुं सुख न होय.
अंतरमां विकाररहित कायमी ज्ञानस्वभाव छे ते स्वभावमां तारुं सुख छे. आत्मा अतिशय चैतन्यनो भंडार
छे, कालनो पापी पण आजे धर्म पामी जाय छे; शास्त्रोमां एवा घणा दाखला छे के राजाओ जंगलमां शिकार
करवा गया त्यां मुनिनो भेटो थतां आत्मभान पामीने धर्मी थई गया छे. अनंतकाळमां दरेक जीवे महान पापो
कर्यां छे, पण साचुं समजवा मांगे तो एक क्षणमां सत्य समजीने धर्म पामी शके छे. धर्मी जीवोए अंदरमां
चैतन्यनी क्रिया करी छे, अज्ञानी तेनी बहारनी क्रियानी अने पुण्यनी नकल करीने धर्म माने छे. पण अंतरमां
देहथी अने पुण्यथी भिन्न शुं तत्त्व छे, तेनी ओळखाण करीने तेमां एकाग्रतानी क्रियाथी ज्ञानी मुक्ति पाम्या छे.
आचार्य देव कहे छे के आत्मा अतिशय चैतन्यरूपी तेजथी भरेलो छे, ते तमारी रक्षा करो. एटले के
ज्यारे तेने ओळखीने अनादिनुं अज्ञान टाळवा मांगे त्यारे टळी शके छे. अनादिनुं अज्ञान एक क्षणमां टळी
जाय छे. तेथी आचार्यदेव कहे छे के अतिशय चैतन्य तेजथी भरेलो आत्मा जयवंत वर्तो. हे आत्माओ! एनी
तमे ओळखाण करो, ते तमारी रक्षा करशे. चैतन्यशक्तिमां केवळज्ञान भर्युं छे, तेनो विश्वास करो. आ
मनुष्यपणुं पामीने ए ज करवा जेवुं छे.
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टना प्रकाशनो
समयसार प्रवचनो भाग १, ३, ४ कीं. रूा. ३ा
समयसार प्रवचन भा. २ १ाा
मोक्षमार्ग प्रकाशक (आ. ३) ४)
आत्मसिद्धि प्रवचन (आ. ३) ३ाा
मोक्षमार्ग प्रकाशकना किरणो ०ााा
नियमसार प्रवचन भाग १ १ाा
प्रवचनसार २ाा
जैन सिद्धांत प्रवेशिका
०ाा
सत्तास्वरूप ने अनुभव प्रकाश १ा
पंचाध्यायी भा. १ ३ाा
द्रव्य संग्रह ०ा
प्राप्तिस्थान
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ: सौराष्ट्र