थाय छे ते पोतानो दोष छे, ते क्षणिक दोषने जाणे नहि अने आत्माने एकांत शुद्ध माने ते पण एकांतवादी
अज्ञानी छे. क्षणिक अवस्थामां विकार छे, अने त्रिकाळस्वरूप ते विकाररहित निर्मळ छे एम बंने पडखां जाणीने
सम्यग्ज्ञान प्रगट करवुं जोईए. आत्मामां ज्ञानस्वभाव भर्यो छे. पचास वर्ष पहेलांंनी वात जाणवा माटे ज्ञानने
सामर्थ्य छे. अने ते ज्ञान आगळ लंबाय तो आ भव, पूर्वभव अने अनंतकाळनुं ज्ञान करे एवी आत्मानी
ताकात छे. चोपडामां तो पाना फेरववा पडे, पण ज्ञानमां पानां फेरववा पडतां नथी. ज्ञाननो स्वभाव एक
समयमां त्रणकाळ त्रणलोकने जाणवानी ताकातवाळो छे. वळी ज्ञानमां घणुं जाणतां भार लागतो नथी.
त्रिकाळस्वभावमांथी ज्ञाननो प्रवाह आवे छे. अज्ञानीओ ने अनंतकाळथी चैतन्यना सामर्थ्यनो महिमा आव्यो
नथी, चैतन्य सामर्थ्यनो महिमा जाणे तेने सम्यग्ज्ञान थया विना रहे नहि, अने एक सेकंड पण एवुं सम्यग्ज्ञान
प्रगट करे तेने जन्ममरणनो नाश थया विना रहे नहि. धर्म अंतरनी अपूर्व चीज छे, ए बहारथी ओळखाय तेवी
चीज नथी. आवा आत्मानुं भान थया पछी धर्मीजीव स्त्री–पुत्रना संयोग वच्चे होय, पण जेम मडदा उपर
शणगार कर्यो होय तेथी कांई मडदुं राजी थतुं नथी, तेम धर्मी जीवने बहारना संयोगनी अने रागनी अंतरमां
ओळखाण वगर त्यागी थाय ने शुभभाव करीने तेनो अहंकार करे ते अधर्मी छे, ते संसारमां रखडे छे.
अंतरमां विकाररहित कायमी ज्ञानस्वभाव छे ते स्वभावमां तारुं सुख छे. आत्मा अतिशय चैतन्यनो भंडार
छे, कालनो पापी पण आजे धर्म पामी जाय छे; शास्त्रोमां एवा घणा दाखला छे के राजाओ जंगलमां शिकार
करवा गया त्यां मुनिनो भेटो थतां आत्मभान पामीने धर्मी थई गया छे. अनंतकाळमां दरेक जीवे महान पापो
कर्यां छे, पण साचुं समजवा मांगे तो एक क्षणमां सत्य समजीने धर्म पामी शके छे. धर्मी जीवोए अंदरमां
चैतन्यनी क्रिया करी छे, अज्ञानी तेनी बहारनी क्रियानी अने पुण्यनी नकल करीने धर्म माने छे. पण अंतरमां
जाय छे. तेथी आचार्यदेव कहे छे के अतिशय चैतन्य तेजथी भरेलो आत्मा जयवंत वर्तो. हे आत्माओ! एनी
तमे ओळखाण करो, ते तमारी रक्षा करशे. चैतन्यशक्तिमां केवळज्ञान भर्युं छे, तेनो विश्वास करो. आ
मनुष्यपणुं पामीने ए ज करवा जेवुं छे.
जैन सिद्धांत प्रवेशिका