अनादिकाळनो छे, अनादिकाळमां एणे बधुं कर्युं छे पण आत्मानुं स्वरूप शुं तेनुं ज्ञान एक सेकंड पण कर्युं
नथी. आत्माना भान वगर पुण्य करीने अनंतवार स्वर्गनो देव थयो, ने पाप करीने नारकी थयो. मनुष्य
देव थयो छे. आत्मानुं स्वरूप सिद्ध जेवुं छे, तेनी साची समजण अनंतकाळमां एक सेकंड पण करी नथी, ते
समजण ज अपूर्व छे. जेम लाखो मण घासने बाळवा माटे लाख मण अग्निनी जरूर न पडे पण एक तणखो
ज बस छे, तेम अनंतकाळना अज्ञानने टाळवा माटे एक सेकंडनुं सम्यग्ज्ञान बस छे. एवुं सेकंडनुं सम्यग्ज्ञान
प्रगट करे त्यां अनंतकाळनुं अज्ञान टळी जाय छे. एक सेकंड पण शरीरथी भिन्न आत्मानुं सम्यग्ज्ञान थाय
तो मुक्ति थया विना रहे नहि. आत्माना भान विना जेटलुं करवामां आवे ते बधुं एकडा वगरना मींडा
समान छे. आत्मस्वभावनुं भान नथी अने तप–व्रतादि वडे धर्मीपणुं माने छे ते मूर्ख छे, ने चार गतिना
परिभ्रमणमां रखडे छे.
राजा ज मानी ले तो ते मूर्ख छे. तेम आत्मा ब्रह्मस्वरूप ज्ञानमूर्ति छे, जुदा जुदा शरीर अने रागादि भावो ते
जुदा जुदा वेष छे, ते तेनुं मूळस्वरूप नथी, मूळस्वरूप तो ज्ञानमूर्ति छे; तेने बदले जे क्षणिक रागादि जेटलो ने
शरीरवाळो ज पोताने माने छे ते अज्ञानी छे. आत्मामां जे शरीर, कुटुंब, लक्ष्मी, पुण्य–पाप थाय ते बधा
क्षणिक भेख छे, ते भेषरहित मूळस्वरूप कायमी ज्ञानस्वरूप छे. भाई, तारा मूळस्वरूपनी तने अनादिकाळथी
खबर नथी अने क्षणिक भेखने तुं पोतानुं स्वरूप माने छे. पोताना मूळस्वरूपनी खबर नथी तेथी बहारनी
वस्तुओमां ममकार करे छे, ते अधर्म छे. आत्माना भान वगर दया, दान वगेरे भाव करे तेमां पाप नथी पण
पुण्य छे, ने तेनाथी स्वर्ग मळे छे. ते दान–दयादि शुभभावने धर्म माने तो अज्ञान छे अने ते दया–दानना शुभ
परिणामने पाप माने तो ते पण अज्ञान छे. आत्मानो स्वभाव पुण्य–पापरहित ज्ञानस्वरूप छे–तेनुं भान करे
जीव थयो ने भिखारी पण अनंतवार थयो छे, पण ते तो पुण्य–पापनुं फळ छे, पुण्य–पाप ते दोष छे, ते
दोषरहित आत्मानुं स्वरूप शुं छे ते जेणे जाण्युं नथी अने पोताने धर्मी माने छे ते जीव मूर्ख छे–जड छे. जेम
सोनानी लगडी उपर जुदा जुदा चित्रवाळा लूगडां वींटया होय पण अंदरनुं सोनुं तो सरखुं ज छे. तेम स्त्री–
पुरुष, बाळक–वृद्ध, माणस, हाथी, देव वगेरे देखाय छे ते तो शरीरना प्रकारो छे, अंदरनी शक्तिथी तो बधानो
आत्मा परिपूर्ण भगवान जेवो छे. दरेक आत्मा ज्ञानमूर्ति छे. एनुं भान करे तो धर्म थाय छे. अत्यारे पूर्व
दिशामां महाविदेह क्षेत्रमां श्री सीमंधर परमात्मा अरिहंतपदे बिराजे छे, तेमने केवळज्ञान वर्ते छे, वाणी द्वारा