अमुक प्रकारे आहार करे छे ने अमुक प्रकारनो त्याग छे–एम बहारनी क्रिया उपरथी धर्मी जीवना धर्मनुं माप थतुं
नथी, पण अंतरमां आत्मस्वभावनी श्रद्धा अने एकाग्रता करीने केटलो राग तोडयो ते उपरथी धर्मीनुं माप थाय छे.
अज्ञानीओ कहे छे के ‘आत्मामां अनतशक्ति छे अने आत्मा स्वतंत्र छे–एम जो तमे मानो छो तो छ महिनाना
उपवास करी नांखो ने?’ पण ज्ञानी कहे छे के भाई! आत्मानी शक्तिनुं माप बहारनी क्रियाथी नथी. कोण आहार
ल्ये? ने कोण तेने छोडे? चैतन्यमूर्ति अरूपी आत्मा छे ते जड आहारने लेवा–मूकवानी क्रिया करी शकतो नथी.
ते भावनुं कारण पण धर्मी जीव पोताने मानता नथी. स्वभावद्रष्टिथी आत्मा विकारनुं कारण छे ज नहीं. अने
निमित्तथी पण आत्मा शरीर–मन–वाणीनुं कारण नथी.
आत्मानी बहार न होय; एटले बहारनी शरीर–मन–वाणीनी क्रिया तो आत्मा व्यवहारे पण करतो नथी. बहु तो
आत्मा पोताना पर्यायमां ते तरफनो राग करे, तेने जाणवो ते व्यवहार छे. त्रिकाळी स्वभावमां राग नथी ने पर्यायमां
आ क्षणिक राग थाय छे–एम ते रागने जाणवो ते असद्भुतव्यवहार छे. अने त्रिकाळी रागरहित स्वभावने जाणवो
ते निश्चय छे. निश्चयने जाण्या विना व्यवहारनुं पण साचुं ज्ञान थाय नहीं. त्रिकाळी स्वभाव रागरहित छे तेने जाणे
नहि अने क्षणिक रागने ज पोतानुं स्वरूप मानी ल्ये तेने तो व्यवहारनुं पण साचुं ज्ञान नथी.
ईच्छा न होवा छतां वाणी छूटे छे अने घणा जीवोने ईच्छा होवा छतां ते ईच्छा अनुसार वाणी नीकळती नथी,
केम के वाणी आत्माना कारणे थती नथी पण जडना कारणे थाय छे. आ प्रमाणे जडथी हुं भिन्न छुं–एम
भेदज्ञान करवुं ते धर्म छे.
त्यां अज्ञानी जीव कहे छे के “ए तो निश्चयनी वात छे, निश्चयथी आत्मा शरीरादिनुं न करी शके पण व्यवहारथी
करे” निश्चय शुं अने व्यवहार शुं? तेनुं अज्ञानीने भान नथी तेथी ते एम माने छे के व्यवहारथी आत्मा बोले, ने
व्यवहारथी आत्मा शरीरने चलावे. ‘निश्चयथी न करे ने व्यवहारथी करे’ एम अज्ञानी माने छे एटले तेने कदी बे
नयोनो विरोध टळतो नथी; ने बे नयोनो विरोध टाळीने तेने स्वभावमां ढळवानुं रहेतुं नथी, एटले के तेने अधर्म
टळीने धर्म थतो नथी. निश्चय अने व्यवहारनो परस्पर विरोध छे, ते विरोध कई रीते टळे? निश्चय जे कहे छे ते
वस्तुस्वरूप छे अने व्यवहार कहे छे ते प्रमाणे वस्तुस्वरूप नथी पण उपचारथी कह्युं छे–एम समजे तो बे नयोनो
तो तेने बे नयोनो विरोध मटतो नथी एटले के मिथ्यात्व टळतुं नथी. निश्चय कहे छे के आत्मा शरीरादिनुं कांई ज
करतो नथी;–ए तो यथार्थ वस्तु स्वरूप ज छे; अने व्यवहार कहे छे के आत्मा शरीरादिनी क्रिया करे छे;–ए यथार्थ
वस्तुस्वरूप नथी पण उपचारनुं कथन छे, एनो अर्थ एम छे के खरेखर आत्मा शरीरादिनुं करे नहि.
भगवान! तारो अपार महिमा छे, तारा महिमाने भूलीने बहारना पदार्थोनो महिमा करी करीने तुं