आवे छे. पूर्वे अनंत तीर्थंकरो थई गया छे. ते तीर्थंकरदेव मति–श्रुत–अवधि एवा त्रण ज्ञान सहित ज जन्मे छे;
अने केटलाक क्षायिकसम्यग्दर्शन सहित जन्मे छे. माताना पेटमां आव्या त्यारे पण अंतरमां ज्ञानमूर्ति आत्मानुं
भान छे. शरीर–मन–वाणीनो एक रजकण पण मारो नथी, अने जे क्षणिक शुभाशुभ विकार थाय छे ते कोई
परना कारणे थता नथी, पण मारा पुरुषार्थनी हीनताथी थाय छे. ते शुभाशुभ विकार मारा स्वभावमांथी
आवता नथी, ने ते मारुं स्वरूप नथी. हुं अखंड आनंदनो सागर छुं. –आवा भान सहित भगवाननो आत्मा
स्वर्ग के नरकमांथी आवे छे. श्री ऋषभदेव भगवान पूर्व भवे सर्वार्थसिद्धिना देव हता, त्यांथी त्रण ज्ञान सहित
मरुदेवी मातानी कूंखे आव्या हता.
द्वेषरूप रातप–ए त्रणेथी छूटो, चैतन्यबिंब सहजानंद शांतरसनी मूर्ति छे. जेम टोपराना मीठा अने सफेद
गोटामां जे रातप छे ते खरेखर काचली तरफनो भाग छे, तेम आत्मा आनंद अने चैतन्यनो गोळो छे तेमां जे
विकारी लागणीओ थाय छे ते परना आश्रये थाय छे, ते खरेखर चैतन्यनी जात नथी. –आवुं भेदज्ञान
भगवानने मुनि थया पहेलांं हतुं. अनंता तीर्थंकरो आवा भेदज्ञान सहित ज मातानी कूंखे आवे छे. हुं
तीर्थंकरपणे अवतर्यो छुं–एवो विकल्प, तेम ज मने त्रण ज्ञान छे एवो जे भेदभाव, ते रहित अंतरमां अभेद
निर्विकल्प आनंदनो कंद चैतन्यस्वभाव छे, तेनुं भगवानने भान हतुं. अने एना प्रतापे ज ते तीर्थंकर थया छे.
आ प्रमाणे अंतरनी ओळखाण करवी जोईए.
पोतानुं मानतो न हतो; माताना पेटमां हता त्यारे पण ‘आ माताना पेटमां हुं रह्यो छुं, आ मारी माता छे,
आ मारा पिता छे, आ ईन्द्रो मारी सेवा करे छे’ आवो विकल्प पण रुचिथी न हतो. आवा भानसहित श्री
ऋषभदेव भगवाननो जन्म थयो. ‘सिद्ध समान सदा पद मेरो’ –हुं सिद्ध छुं, त्रिकाळ अखंड आनंदस्वरूप छुं–
आवा आत्मभान सहित गर्भमां आव्या, एवा भानसहित जनम्या अने एवा भानसहित ऊछर्या.
तेओ अनित्य–अशरण वगेरे बार भावनाओनुं चिंतवन करवा लाग्या.
विकारी परिणामो थाय छे ते पण अनित्य छे, पहेली क्षणे थईने बीजी क्षणे ते नाश पामी जाय छे, मारो
चिदानंद आत्मा ध्रुव छे ते कायम एवो ने एवो टकी रहे छे ... ध्रुवरूप आत्मा ए ज मने शरण छे, ए सिवाय
बीजुं कोई शरण नथी. आत्माने पोता सिवाय अन्य कोई तीर्थंकरो–गणधरो–मुनिओ–ईन्द्रो के चक्रवर्तीओ
शरणभूत नथी, एक पोतानो ध्रुवस्वभाव छे ते