तेमनो “ एवो अभेद निरक्षरी ध्वनि छूटयो. सामान्य जीवोनी भाषामां क्रम अने भेद पडे छे, तेम
भगवाननी वाणीमां नथी होतुं. भगवाननी वाणी अभेद, एक समयमां पूरुं रहस्य कहेनारी होय छे. आमां
सूक्ष्म न्याय रहेलो छे.
उपाधि भावो छे त्यां वाणी पण भेदवाळी आवे छे. अभेद चैतन्यनी स्थिरता द्वारा ते चैतन्यमां भेद पाडनारा
उपाधिभावोनो नाश थतां, अखंड केवळज्ञानदशा वडे आत्मा प्रत्यक्ष जणायो, अने त्यारे वाणी पण सहजपणे
अभेद थई गई.
जाणवानो क्रम टळी गयो, त्यां वाणीमां पण कथननो क्रम टळी गयो. त्यां कांई ज्ञानने कारणे तेवी वाणी नथी
नीकळती, तेम ज जड वाणीने कांई खबर नथी के भगवानने केवळज्ञान थयुं माटे हुं अभेदपणे परिणमुं. छतां
पण ज्ञानने अने वाणीने एवो ज संबंध छे के ज्ञान पूरुं थाय त्यां वाणी पण अभेद थई जाय. जीवने
केवळज्ञान थयुं होय अने वाणी भेदवाळी होय–एम कदी बने नहि. भगवाननी दिव्य वाणी निरक्षरी होवा छतां
सांभळनार जीवोने तो ते साक्षरीपणे श्रवणमां आवे छे अने सौ पोतपोतानी भाषामां, पोतानी योग्यता
अनुसार समजी जाय छे. भगवाननुं शरीर स्तब्ध–स्थिर होय छे, होठ अने मोढुं बंध होय छे, ने “ एवो
दिव्यध्वनि सर्वांगेथी छूटे छे. ते एकाक्षरी होवा छतां श्रोताजनोनी पात्रता अनुसार साक्षरीपणे समजाय छे,
एवो तेनो स्वभाव छे.
मारो नथी’ एवुं अपूर्व आत्मभान तो हतुं पण हजी अस्थिरता हती. पूर्वे त्रीजा भवे दर्शनविशुद्धिपूर्वक एवो
विकल्प थयो के अहो, हुं परिपूर्ण थाउं, अने निमित्तथी कहीए तो ‘जगतना जीवो आत्माने समजीने आ धर्म
पामे’–एवो धर्मवृद्धिनो विकल्प ऊठ्यो. तेना निमित्ते तीर्थंकर नामकर्मना जड रजकणो बंधाया. पछी ज्यारे ते
विकल्प तूटीने अभेद स्वभाव प्रगट थयो त्यारे “ एवी अभेदवाणी धर्मसभामां छूटी. पूर्वे भगवानने
धर्मवृद्धिना विकल्पथी बंधायेली ते वाणी जगतना जीवोने धर्मवृद्धिनुं ज कारण छे. भगवाननी ते वाणीने कोण
समज्यो कहेवाय? भगवान पोते आत्माना अभेद स्वभावनी द्रष्टि अने स्थिरता करीने भगवान थया छे.
अने उपदेशमां पण अभेद आत्म स्वभावनी द्रष्टि अने स्थिरता करवानुं ज भगवान बतावे छे, भगवाननी
वाणी परिपूर्ण रागरहितपणुं ज बतावे छे, रागनो एक अंश पण आदरणीय नथी.–आम जे समजे ते जीव
भगवाननी वाणीने समज्यो छे. जे कोई जीव पाछो पडवानी के पुरुषार्थना शिथीलपणानी वात काढे, अथवा
रागथी धर्ममाने के निमित्त वगेरे परनो आश्रय माने ते जीव भगवाननी वाणीने समज्यो नथी. भगवाननी
वाणीमां परिपूर्ण स्वाश्रयनो ज उपदेश छे. पहेलांं द्रष्टिथी