भगवाने मोक्षमार्ग कह्यो छे, अने पराश्रयने बंधमार्ग कह्यो छे.–आम समजीने जे जीव पोताना आत्मामां
स्वाश्रय प्रगट करे छे ते ज खरेखर भगवानना उपदेशने समज्यो छे. अने तेने ज भगवाननी वाणी निमित्त
कहेवाय छे. समजनार जीव समजे छे तो पोतानी पात्रताथी ज, कांई भगवाननी वाणी तेने समजावी देती
नथी. पण निमित्त तरीके भगवाननी वाणी केवी छे तेनी आ वात छे. जेवो भगवाननी वाणीनो आशय छे
लेती आवे छे, ते जीवोने धर्ममां आगळ वधवानुं ज निमित्त छे. पूर्वे पूर्णताना विकल्पथी बंधायेली ते वाणी
श्रोताओने परिपूर्णता तरफ लई जवामां ज निमित्त छे. भगवाननुं सम्यग्दर्शन ते भवमां अप्रतिहत होय छे
अने अप्रतिहत स्वरूप स्थिरता वडे केवळज्ञान प्रगट करे छे; ईन्द्रो आवीने दिव्य समवसरणनी रचना करे छे,
बार सभा भराय छे, अने पूर्वे पूर्णताना–धर्मवृद्धिना–विकल्पथी बंधायेलो दिव्यध्वनि सहजपणे छूटे छे. ते
वाणी शुं कहे छे?
पूर्ण स्वतंत्र छो, कर्म वगेरे कोई पण पदार्थ आत्माने रोकतां नथी. आत्माने समजीने ठरवानो बधो अवसर
मळी गयो छे. जे जीवे खरेखर पोताना उपादानमां स्वभाव तरफनी द्रष्टि अने स्थिरतानी वृद्धिने स्वीकारी छे,
तेणे ज निमित्त तरीके अमारी वाणीने स्वीकारी छे. स्वभावनी वृद्धिने स्वीकारी ते तेनुं उपादान छे अने वाणी
तेनी निमित्त छे–आवो उपादान–निमित्तनो मेळ छे.–आवुं भगवानना उपदेशनुं रहस्य छे.
पूर्णता तरफ लई जवामां ज निमित्त छे. आत्मानो पूर्ण स्वभाव समजीने तेनो आश्रय करवानुं ज भगवाननी
वाणी बतावे छे, अने ए रीते स्वभाव तरफ ढळवामां ज भगवाननी वाणीनुं निमित्तपणुं छे. ‘तुं हमणां नहि
आत्मा पोताना स्वभावना आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र पामीने ठरे एवुं ज ए दिव्यवाणीनुं निमित्तपणुं
छे. ए सिवाय बीजुं ऊंधुंं समजे ते जीव भगवाननी वाणीने, संतोना हृदयने के बार अंगना रहस्यने समज्यो
नथी. खरेखर तेणे भगवाननी वाणी सांभळी ज नथी.
जीवथी अनंतगणा छे, धर्मद्रव्य एक छे, अधर्मद्रव्य एक छे, काळद्रव्य असंख्यात छे ने आकाशद्रव्य सर्वव्यापक
एक छे. तेमां जीवद्रव्य ज्ञानसहित चेतन छे. ने बीजा पांचे द्रव्यो ज्ञान वगरना जड छे. ए चेतन अने जड
बधा य द्रव्यो पोताना स्वभावथी परिपूर्ण अने स्वाधीन छे. दरेक द्रव्यमां पोतपोताना अनंतगुणो छे अने
एकेक समयमां ते दरेक द्रव्यमां नवी नवी अवस्था थया करे छे; कोई बीजो तेनो कर्ता नथी. आत्मानी अवस्था
अवस्थानी द्रष्टि छोडीने त्रिकाळी परिपूर्ण स्वभावनी द्रष्टि करवामां पोते स्वाधीन छे.–आवुं रहस्य भगवाननी
वाणीमां आव्युं छे.
पंथ सर्वे अरिहंतोए पोते अनुभवीने जगतने दर्शाव्यो छे–
ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे. ८०.
जीव मोहने करी दूर, आत्मस्वरूप सम्यक् पामीने
जो रागद्वेष परिहरे तो पामतो शुद्धात्मने.