Atmadharma magazine - Ank 076
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: ७२ : आत्मधर्म : महा : २००६ :
अर्हंत सौ कर्मोतणो करी नाश ए ज विधि वडे,
उपदेश पण एम ज करी, निर्वृत थया, नमुं तेमने.
स्वाश्रये परिपूर्ण केवळज्ञान प्रगट कर्या पछी श्री भगवाननी वाणी नीकळी के–अरिहंत भगवानना
आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायमां राग नथी, अपूर्णता नथी, निमित्तनुं अवलंबन नथी, तेमने परिपूर्ण ज्ञान
खीली गयुं छे; जे जीव एवा अरिहंत भगवाननां द्रव्य–गुण–पर्यायने जाणे ते खरेखर पोताना आत्माने जाणे
छे, ने तेनो मोह अवश्य क्षय पामे छे. पछी शुद्धात्मस्वरूपने पामीने तेना ज आश्रये राग–द्वेषनो क्षय करीने
केवळज्ञान पामे छे. ए ज विधिथी बधाय अरिहंत भगवंतोए कर्मनो क्षय कर्यो छे अने ए ज उपदेश कर्यो छे
तेमने नमस्कार हो! अद्भूत रचना छे. ८० मी गाथामां तो क्षायिक सम्यग्दर्शननी वात छे. श्री सीमंधर
भगवान पासे गया त्यारे कुंदकुंदाचार्यदेवे क्षायिक सम्यग्दर्शननी वात मुख्यपणे सांभळी हती. भगवाननी
वाणीमां तो बधुं एक साथे ज आवे छे पण श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे भगवाननी वाणीमांथी क्षायिक सम्यग्दर्शन
नीतारी लीधुं हतुं. तेम ज पोताना आत्मामां आ पंचमकाळे क्षयोपशम सम्यक्त्व होवा छतां. अप्रतिहत
सम्यग्दर्शननुं जोर हतुं, तेनो आ गाथामां भणकार छे.
जेणे अरिहंत भगवानने जाण्यां तेणे पोताना आत्मानो पण तेवो स्वभाव जाण्यो एटले तेने
स्वभावना आश्रयनी प्रतीत खीली गई अर्थात् सम्यग्दर्शन प्रगट थयुं, ने मोहनो क्षय थयो. श्री
आचार्यभगवाने तो अहीं मोहना क्षयनी एटले क्षायिक सम्यग्दर्शननी वात करी छे, तेमां ऊंडुं रहस्य छे. जे
सम्यग्दर्शनमां वच्चे भंग पड्या विना क्षायिक सम्यग्दर्शन थवानुं छे ते सम्यग्दर्शन पण क्षायिक–सम्यग्दर्शननी
समान छे हुं जे सम्यग्दर्शनथी ऊपड्यो छुं तेमां पाछो पड्या वगर अप्रतिहत भावे केवळज्ञान लेवानो छुं–एम
ते भगवानना आत्मामांथी ध्वनि ऊठ्यो छे.
अहा जुओ तो खरा गाथा!–
जो जाणदि अरहंतं दव्वत्त गुणत्त पज्जयतेहिं।
सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं।।
८०।।
आमां केवळी भगवानना अंतरनुं रहस्य भरी दीधुं छे. अरिहंत परमात्मामां पूर्णता छे, तेमनामां
जराय राग–द्वेष नथी माटे मारामां पण नथी, तेमने अपूर्णता नथी माटे मारामां पण नथी. आ प्रमाणे,
पर्यायमां राग–द्वेष अने अपूर्णता होवा छतां तेनो निषेध करीने, पूर्ण स्वभावनी द्रष्टिमां अपूर्णतानो नाश
करवानी द्रष्टि थई गई एटले सम्यग्दर्शन थई गयुं. पछी ए ज पूर्ण स्वभावमां लीनता वडे मोहनो क्षय करीने
आत्मा पोते परमात्मा थाय छे. ए प्रमाणे कहीने पछी ८२मी गाथामां आचार्य भगवान कहे छे के–
सव्वे वि य अरहंता तेण विधाणेण खविद कम्मंसा।
किच्चा तधोवदेसं णिव्वादा ते णमो तेसिं।।
८२।।
जुओ तो खरा, कुंदकुंद भगवाननां वचन क्यांथी आव्या छे!! आवुं एक वचन तो कोई लावो.’ सव्वे
वि य अरहंता– ‘बधाय अरिहंतोए आम कर्यु’ एम कहेवामां पोतानी प्रतीतनुं बेहद जोर छे. अने खविद
कम्मंसा–कर्मोनो क्षय कर्यो,–एम क्षपकनी ज वात लीधी छे. आत्माना ज्ञानद्वारा स्वभावनो आश्रय करीने ज
सर्वे अरिहंतदेवोए कर्मना अंशोने क्षपावी नाख्यां छे, अने पछी ते भगवंतोए उपदेश पण एवो ज कर्यो छे.
माटे ते एक ज मोक्षमार्ग छे. बधाय अरिहंतो आ ज मार्गे मोक्ष पाम्या छे, अने समवसरणमां दिव्य ध्वनिवडे
जगतने आ ज मार्गे उपदेश्यो छे.–एम कहीने, स्वभावना उल्लासथी आचार्यदेव कहे छे के
णमो तेसिं– अहो,
ते भगवंतोने नमस्कार हो.
जे भगवानना श्रीमुखे आव्युं अने जेने आचार्यदेवे अंतरमां झील्युं ते ज अहीं कहेवाय छे. आ विधिथी
ज सम्यग्दर्शन अने केवळज्ञान पमाय छे, बीजी कोई विधि नथी. सम्यग्दर्शन अने सम्यक्चारित्र बंनेमां
आचार्यदेवे क्षायकभावनी ज वात करी छे. जेणे पोताना ज्ञानमां सर्वज्ञनो निर्णय कर्यो ते जीव रागनो के
अपूर्णदशानो आश्रय न करे; केमके भगवान सर्वज्ञदेवने अपूर्णता के राग नथी, तेथी आ आत्माने पण राग के
अपूर्णता तेनो स्वभाव नथी. सर्वज्ञभगवान एक समयमां पूरुं जाणे छे, तेम मारो पण पूरुं जाणवानो स्वभाव
छे. आ प्रमाणे, सर्वज्ञने जाणनार जीव, पोतानी अवस्थामां अधूरुं ज्ञान होवा छतां ते मारुं स्वरूप नथी. पण
पूरुं ज्ञान ते ज मारुं स्वरूप छे–एम पोताना पूरा स्वभावनो आश्रय करीने तेनी प्रतीति करे छे.