उपदेश पण एम ज करी, निर्वृत थया, नमुं तेमने.
खीली गयुं छे; जे जीव एवा अरिहंत भगवाननां द्रव्य–गुण–पर्यायने जाणे ते खरेखर पोताना आत्माने जाणे
छे, ने तेनो मोह अवश्य क्षय पामे छे. पछी शुद्धात्मस्वरूपने पामीने तेना ज आश्रये राग–द्वेषनो क्षय करीने
तेमने नमस्कार हो! अद्भूत रचना छे. ८० मी गाथामां तो क्षायिक सम्यग्दर्शननी वात छे. श्री सीमंधर
भगवान पासे गया त्यारे कुंदकुंदाचार्यदेवे क्षायिक सम्यग्दर्शननी वात मुख्यपणे सांभळी हती. भगवाननी
वाणीमां तो बधुं एक साथे ज आवे छे पण श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे भगवाननी वाणीमांथी क्षायिक सम्यग्दर्शन
नीतारी लीधुं हतुं. तेम ज पोताना आत्मामां आ पंचमकाळे क्षयोपशम सम्यक्त्व होवा छतां. अप्रतिहत
सम्यग्दर्शननुं जोर हतुं, तेनो आ गाथामां भणकार छे.
आचार्यभगवाने तो अहीं मोहना क्षयनी एटले क्षायिक सम्यग्दर्शननी वात करी छे, तेमां ऊंडुं रहस्य छे. जे
सम्यग्दर्शनमां वच्चे भंग पड्या विना क्षायिक सम्यग्दर्शन थवानुं छे ते सम्यग्दर्शन पण क्षायिक–सम्यग्दर्शननी
ते भगवानना आत्मामांथी ध्वनि ऊठ्यो छे.
सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं।।
करवानी द्रष्टि थई गई एटले सम्यग्दर्शन थई गयुं. पछी ए ज पूर्ण स्वभावमां लीनता वडे मोहनो क्षय करीने
आत्मा पोते परमात्मा थाय छे. ए प्रमाणे कहीने पछी ८२मी गाथामां आचार्य भगवान कहे छे के–
किच्चा तधोवदेसं णिव्वादा ते णमो तेसिं।।
माटे ते एक ज मोक्षमार्ग छे. बधाय अरिहंतो आ ज मार्गे मोक्ष पाम्या छे, अने समवसरणमां दिव्य ध्वनिवडे
जगतने आ ज मार्गे उपदेश्यो छे.–एम कहीने, स्वभावना उल्लासथी आचार्यदेव कहे छे के
आचार्यदेवे क्षायकभावनी ज वात करी छे. जेणे पोताना ज्ञानमां सर्वज्ञनो निर्णय कर्यो ते जीव रागनो के
अपूर्णदशानो आश्रय न करे; केमके भगवान सर्वज्ञदेवने अपूर्णता के राग नथी, तेथी आ आत्माने पण राग के
छे. आ प्रमाणे, सर्वज्ञने जाणनार जीव, पोतानी अवस्थामां अधूरुं ज्ञान होवा छतां ते मारुं स्वरूप नथी. पण
पूरुं ज्ञान ते ज मारुं स्वरूप छे–एम पोताना पूरा स्वभावनो आश्रय करीने तेनी प्रतीति करे छे.