छे. भगवान थवानी पूरेपूरी ताकात तमारामां भरी छे. तेनी श्रद्धा करीने तेनुं सेवन करो तो परमात्मदशा
प्रगट थाय. जेम मोरना ईंडामां ज सुंदर रंगबेरंगी मोर थवानी ताकात छे, तेथी तेमांथी मोर थाय छे, ते मोर
थवानी ताकात ईंडानी उपरना फोतरामांथी के ढेलनी पांखमांथी आवी नथी. तेम दरेक आत्मामां परमात्मा
थवानी ताकात छे, तेनो विश्वास करीने तेमां एकाग्र थतां तेमांथी ज परमात्मदशा प्रगटी जाय छे. ते
परमात्मदशा कोई बहारना कारणोथी के रागथी थती नथी. पूर्णस्वभाव तरफ ढळतां सम्यक् मतिश्रुतज्ञानरूपी
कळामांथी केवळज्ञानरूपी संपूर्ण कळा खीली जाय छे. आत्मानी कळा आ जातनी छे. ए सिवाय बहारनी
कळामां डहापण चलावे ते आत्मानी कळा नथी. अखंड स्वभाव तरफ ढळनारा मति–श्रुतज्ञान पण पूर्णज्ञान
जेवा ज छे, केमके ते पण अपूर्णतानो निषेध करीने पूर्ण स्वभावना आश्रये ज कार्य करे छे. जे ज्ञान
अपूर्णतानो निषेध करीने–एटले के व्यवहारनो ज निषेध करीने–पूर्ण स्वभावनो आदर अने आश्रय करे छे
ते ज्ञान पूर्णताने पामे छे.
अने मुक्ति पामे छे, तेमां तेने कोई बीजानी मदद छे ज नहि. जेम बेटरीमां पावर भर्यो होय छे तेथी चांप
दाबीने ते पावर साथे जोडाण करतां प्रकाश प्रगट थाय छे, तेम आत्मामां परिपूर्ण चैतन्य पावर भर्यो छे, तेनी
श्रद्धारूपी चांप दाबीने तेमां एकाग्र थतां चैतन्य प्रकाश खीले छे. भगवानना श्रीमुखथी मुनिवरो, अर्जिकाओ,
श्रावक–श्राविका, देव–देवी तेम ज तिर्यंचो आदिनी बार सभामां आवो उपदेश नीकळ्यो. अने अनेक जीवो ते
समजीने आत्मस्वभावना महिमा तरफ वळतां अपूर्व धर्म पाम्या. अरिहंत भगवानने द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे
शुद्ध थई गया छे, त्रणकाळ त्रण लोकनुं ज्ञान एक समयमां वर्ते छे, चार अघाति कर्मनो संयोग बाकी छे तेनी
पण त्रणकाळनी अवस्थानुं ज्ञान वर्ते छे, अने राग–द्वेष–मोहनो संपूर्ण क्षय थई गयो छे. अहो! आवा अरिहंत
भगवानना द्रव्य–गुण–पर्यायने जे जीव जाणे तेने केवळज्ञान थया विना रहे नहि. आत्माना सर्वज्ञपदने जे
समजे तेने अल्पकाळे परमात्मदशा थाय ज.
भगवाननी वात लीधी छे, एटले तेमां तीर्थंकरोनी मुख्य वात छे. तीर्थंकर भगवंतो अप्रतिहत पुरुषार्थवाळा
होय छे. तेमणे पोते जे विधिए केवळज्ञान लीधुं ते ज विधिए अन्य मोक्षार्थीओने उपदेश कर्यो. तेमने मारा
भावे अने द्रव्ये त्रिकाळ नमस्कार हो. अहाहा, अहीं कुंदकुंदाचार्य भगवान पोते अरिहंतोने नमस्कार करे छे.
कुंदकुंदाचार्यदेव पोते छे–सातमे गुणस्थाने आत्मानी चारित्रदशामां वर्तता हतां, तेओ महान संत हता.
ते चारित्र विशेष स्मरणमां आवे छे. जुओ, चारित्रदशा अने साधुपद केवुं होय? गणधरदेव पण ए पवित्र
पदने नमस्कार करे छे. छठ्ठा गुणस्थाने विकल्प ऊठतां गणधरदेव पण नमस्कार मंत्र बोले छे, तेमां कहे छे के
णमो लोए सव्व सिद्धाणं।