Atmadharma magazine - Ank 076
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २००६ : आत्मधर्म : ७३ :
() र्ज्ञ त् . : भगवाननो उपदेश आ ज
छे के हे भव्य जीवो! तमे तमारा ज्ञानमां सर्वज्ञनो निर्णय करो. तमारा आत्मामां पण सर्वज्ञ स्वभाव भर्यो
छे. भगवान थवानी पूरेपूरी ताकात तमारामां भरी छे. तेनी श्रद्धा करीने तेनुं सेवन करो तो परमात्मदशा
प्रगट थाय. जेम मोरना ईंडामां ज सुंदर रंगबेरंगी मोर थवानी ताकात छे, तेथी तेमांथी मोर थाय छे, ते मोर
थवानी ताकात ईंडानी उपरना फोतरामांथी के ढेलनी पांखमांथी आवी नथी. तेम दरेक आत्मामां परमात्मा
थवानी ताकात छे, तेनो विश्वास करीने तेमां एकाग्र थतां तेमांथी ज परमात्मदशा प्रगटी जाय छे. ते
परमात्मदशा कोई बहारना कारणोथी के रागथी थती नथी. पूर्णस्वभाव तरफ ढळतां सम्यक् मतिश्रुतज्ञानरूपी
कळामांथी केवळज्ञानरूपी संपूर्ण कळा खीली जाय छे. आत्मानी कळा आ जातनी छे. ए सिवाय बहारनी
कळामां डहापण चलावे ते आत्मानी कळा नथी. अखंड स्वभाव तरफ ढळनारा मति–श्रुतज्ञान पण पूर्णज्ञान
जेवा ज छे, केमके ते पण अपूर्णतानो निषेध करीने पूर्ण स्वभावना आश्रये ज कार्य करे छे. जे ज्ञान
अपूर्णतानो निषेध करीने–एटले के व्यवहारनो ज निषेध करीने–पूर्ण स्वभावनो आदर अने आश्रय करे छे
ते ज्ञान पूर्णताने पामे छे.
‘तमे आत्मानो धर्म नहि करी शको, तमारे कोईक बीजानी मदद जोईशे’–एम भगवाने पराश्रय
बताव्यो नथी. भगवाने तो स्वाश्रय बताव्यो छे के आत्मानी अंदर पूर्ण सामर्थ्य छे, पोताना ज आश्रये ते धर्म
अने मुक्ति पामे छे, तेमां तेने कोई बीजानी मदद छे ज नहि. जेम बेटरीमां पावर भर्यो होय छे तेथी चांप
दाबीने ते पावर साथे जोडाण करतां प्रकाश प्रगट थाय छे, तेम आत्मामां परिपूर्ण चैतन्य पावर भर्यो छे, तेनी
श्रद्धारूपी चांप दाबीने तेमां एकाग्र थतां चैतन्य प्रकाश खीले छे. भगवानना श्रीमुखथी मुनिवरो, अर्जिकाओ,
श्रावक–श्राविका, देव–देवी तेम ज तिर्यंचो आदिनी बार सभामां आवो उपदेश नीकळ्‌यो. अने अनेक जीवो ते
समजीने आत्मस्वभावना महिमा तरफ वळतां अपूर्व धर्म पाम्या. अरिहंत भगवानने द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे
शुद्ध थई गया छे, त्रणकाळ त्रण लोकनुं ज्ञान एक समयमां वर्ते छे, चार अघाति कर्मनो संयोग बाकी छे तेनी
पण त्रणकाळनी अवस्थानुं ज्ञान वर्ते छे, अने राग–द्वेष–मोहनो संपूर्ण क्षय थई गयो छे. अहो! आवा अरिहंत
भगवानना द्रव्य–गुण–पर्यायने जे जीव जाणे तेने केवळज्ञान थया विना रहे नहि. आत्माना सर्वज्ञपदने जे
समजे तेने अल्पकाळे परमात्मदशा थाय ज.
() ि स् : ८२ मी गाथामां कुंदकुंद प्रभुए कह्युं के 'उपदेश पण एम ज करी निर्वृत थया;
नमुं तेमने.’ भगवाने पोते सर्वज्ञपद प्राप्त कर्या पछी उपदेश पण एवो ज कर्यो;–एम अहीं उपदेशवाळा
भगवाननी वात लीधी छे, एटले तेमां तीर्थंकरोनी मुख्य वात छे. तीर्थंकर भगवंतो अप्रतिहत पुरुषार्थवाळा
होय छे. तेमणे पोते जे विधिए केवळज्ञान लीधुं ते ज विधिए अन्य मोक्षार्थीओने उपदेश कर्यो. तेमने मारा
भावे अने द्रव्ये त्रिकाळ नमस्कार हो. अहाहा, अहीं कुंदकुंदाचार्य भगवान पोते अरिहंतोने नमस्कार करे छे.
कुंदकुंदाचार्यदेव पोते छे–सातमे गुणस्थाने आत्मानी चारित्रदशामां वर्तता हतां, तेओ महान संत हता.
() स् ि : पहेलांं श्री सर्वज्ञ अरिहंत भगवंतोने वाणीमां याद कर्यां,
हवे श्री संतोने याद करीए छीए. आजे सवारमां भगवानना चारित्रनो दीक्षा कल्याणक प्रसंग थयो हतो, तेथी
ते चारित्र विशेष स्मरणमां आवे छे. जुओ, चारित्रदशा अने साधुपद केवुं होय? गणधरदेव पण ए पवित्र
पदने नमस्कार करे छे. छठ्ठा गुणस्थाने विकल्प ऊठतां गणधरदेव पण नमस्कार मंत्र बोले छे, तेमां कहे छे के
‘णमो लोए सव्व साहूणं’–ए रीते जेना चरणमां श्री गणधरदेवनो नमस्कार पहोंचे छे एवुं साधुपद होय छे.
परमागम श्री षट्खंडागममां मंगलाचरण तरीके नमस्कार–मंत्र छे, तेनी धवला टीकामां श्री वीरसेन
स्वामी जणावे छे के –‘णमो लोए सव्व साहूणं’ ए पदमां जे ‘लोए सव्व’ एवा शब्द छे ते अंतदिपक होवाथी
उपरना चारे पदमां पण तेनो अर्थ लई लेवो. ते आ प्रमाणे–
णमो लोए सव्व अरहंताणं।
णमो लोए सव्व सिद्धाणं।