Atmadharma magazine - Ank 076
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: ७४ : आत्मधर्म : महा : २००६ :
णमो लोए सव्व आइरियाणं।
णमो लोए सव्व उवज्झायाणं।
णमो लोए सव्व साहूणं।।
ए रीते तेमां त्रणकाळना बधाय पंचपरमेष्ठीने नमस्कार कर्या छे. एक क्षण पहेलां साधु थया होय तेनो
पण तेमां समावेश थई जाय छे. गणधरदेव सीधी रीते कोई साधुने नमस्कार न करे, पण ज्यारे नमस्कार मंत्र
बोले त्यारे
‘णमो लोए सव्व साहूणं’ एम कहेतां तेमां लोकना सर्वे साधुने नमस्कार आवी जाय छे. हे संतो, हे
मुनिओ! बे घडीमां बार अंगनी रचना करनार हुं गणधर, ते तमने नमस्कार करुं छुं. –आवो विकल्प छठ्ठी
भूमिकाए होय छे. त्यारपछी वंद्यवंद्यकभावनो विकल्प होतो नथी.
केवळज्ञानना धणी श्री तीर्थंकर भगवान त्रण लोकना नाथ, चैतन्य बादशाह छे. अने चार ज्ञानना धणी
श्री गणधरदेव ते तेमना वजीर छे. तेओ बे घडीमां बार अंगनी रचना करवानुं सामर्थ्य धरावे छे. अहाहा!
आवा गणधरदेव पण जेने नमस्कार करे एवा साधुपदनो ने चारित्रदशानो केटलो महिमा!! आवी उत्कृष्ट
चारित्रदशा कुंदकुंदाचार्य भगवानने वर्तती हती. वर्तमानमां महा विदेहक्षेत्रना गणधरदेव सर्व साधुने नमस्कार
करे तेमां पंचम काळना साधु पण भेगा आवी जाय छे.
अहीं प्रवचनसारनी ८२ मी गाथामां अरिहंतोने नमस्कार करतां श्री कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के हे नाथ!
आप जे मार्गे पूर्णदशा पाम्या ते ज मार्ग अमने देखाडीने आप निर्वाणदशा पाम्या, आपने हुं नमस्कार करुं छुं;
जेने गणधरदेव नमस्कार करे छे एवा साधुपदनो धारक हुं आपने नमस्कार करुं छुं. कुंदकुंदाचार्यदेवे
प्रवचनसारनां मंगळाचरणमां गणधरादि सर्व संतोने पण नमस्कार कर्यां छे. आ रीते गणधरो अने मुनिओ
अरिहंतभगवानने नमस्कार करे छे. गणधरदेव नमस्कार मंत्र द्वारा मुनिओने नमस्कार करे छे. अने
कुंदकुंदाचार्यदेव गणधरादि संतोने नमस्कार करे छे. शुभ विकल्प ऊठ्यो छे तेथी परने नमस्कारनो भाव छे,
खरेखर तो ते रागनो निषेध करीने अंदर स्वरूपमां ढळता जाय छे ते ज भाव नमस्कार छे.
() स्त्र , : भगवाननो दिव्यध्वनि कहे छे के हे जीवो! तमे स्वतंत्र छो...स्वतंत्र छो...
स्वतंत्र छो, द्रव्यथी स्वतंत्र छो, गुणथी स्वतंत्र छो ने पर्यायथी पण स्वतंत्र छो. पराधीनताने याद करशो
नहि. तमारो वर्तमान समय तमारा हाथमां छे. पूर्वना विकारनो तो व्यय थई जाय छे, हवे वर्तमान समयने–
वर्तमान अवस्थाने स्वभाव तरफ वाळवा तमे स्वतंत्र छो. तमारा केळवज्ञाननी तैयारी तमारा हाथमां छे.
तमे तमारा परिपूर्ण स्वभाव तरफ वाळो. वर्तमाननी अपूर्णतानो आश्रय करशो नहि, पूर्वना विकारी
पर्यायने याद करशो नहि, केमके तेनो तो वर्तमानमां अभाव छे. संयोग सामे जोशो नहि, केमके तेनो
आत्मामां त्रिकाळ अभाव छे.
() िव्ध्ि श्र र्ं? : आवो स्वभाव–आश्रयनो उपदेश सांभळीने घणा पात्र जीवो
पोताना स्वभाव तरफ वळ्‌या ने सम्यग्दर्शन पामी गया. घणा जीवोए स्वरूपमां ठरीने चारित्रदशा प्रगट करी.
जेने त्यां एकेक सेकंडमां करोडो सोनामहोरोनी पेदाश थती होय एवा राजाओनी आठ–आठ वर्षनी
राजकुंवरीओ पण भगवाननो उपदेश सांभळतां, ‘अहो, आवो मारो आत्मा!’ एम स्वभावनी रुचि करतां
सम्यग्दर्शन पामी गई. देडकां पण सम्यग्दर्शन पामी गयां. देडकाने पण अंदर आत्मा छे ने! आत्मा क्यां
देडकाना शरीरपणे थई गयो छे? देडकाने व्यंजन पर्याय नानो छे, पण आत्माना ज्ञानने नाना–मोटा व्यंजन
पर्याय साथे संबंध नथी. एक जीव ५०० धनुष्यना व्यंजन पर्यायवाळो होय अने बीजो जीव ७ धनुष्यना
व्यंजन पर्यायवाळो होय, ते बंने केवळज्ञान पामे तो त्यां बंनेनुं केवळज्ञान सरखुं ज छे. क्षेत्रनी मोटाईथी
(व्यंजनपर्यायथी) आत्मानी महत्ता नथी, पण भावनी मोटाईथी (–अर्थ पर्यायथी) आत्मानी महत्ता छे.
कोईने ५०० धनुष्यनो देह होय छतां ऊंधा भावथी मरीने नरके जाय, अने कोईने नानो देह होय छतां
केवळज्ञान पामीने सिद्ध थाय. माटे हे भाई! तुं शरीरनी आकृतिनुं के आत्माना नाना–मोटा व्यंजनपर्यायनुं
लक्ष छोडीने, आत्मा पोताना ज्ञानस्वभावथी मोटो छे ते स्वभावने जो. जंगलमांथी मोटा मोटा सिंह–वाघ ने
रींछ त्राड पाडता आवे छे ने भगवान पासे आवतां शांत थईने ठरी जाय छे अने वाणी सांभळीने अंतरमां
वळतां ते पण सम्यग्दर्शन पामे छे. मोटा फणीधर फूंफाडा मारता