णमो लोए सव्व उवज्झायाणं।
णमो लोए सव्व साहूणं।।
बोले त्यारे
भूमिकाए होय छे. त्यारपछी वंद्यवंद्यकभावनो विकल्प होतो नथी.
आवा गणधरदेव पण जेने नमस्कार करे एवा साधुपदनो ने चारित्रदशानो केटलो महिमा!! आवी उत्कृष्ट
चारित्रदशा कुंदकुंदाचार्य भगवानने वर्तती हती. वर्तमानमां महा विदेहक्षेत्रना गणधरदेव सर्व साधुने नमस्कार
करे तेमां पंचम काळना साधु पण भेगा आवी जाय छे.
जेने गणधरदेव नमस्कार करे छे एवा साधुपदनो धारक हुं आपने नमस्कार करुं छुं. कुंदकुंदाचार्यदेवे
प्रवचनसारनां मंगळाचरणमां गणधरादि सर्व संतोने पण नमस्कार कर्यां छे. आ रीते गणधरो अने मुनिओ
अरिहंतभगवानने नमस्कार करे छे. गणधरदेव नमस्कार मंत्र द्वारा मुनिओने नमस्कार करे छे. अने
कुंदकुंदाचार्यदेव गणधरादि संतोने नमस्कार करे छे. शुभ विकल्प ऊठ्यो छे तेथी परने नमस्कारनो भाव छे,
खरेखर तो ते रागनो निषेध करीने अंदर स्वरूपमां ढळता जाय छे ते ज भाव नमस्कार छे.
नहि. तमारो वर्तमान समय तमारा हाथमां छे. पूर्वना विकारनो तो व्यय थई जाय छे, हवे वर्तमान समयने–
वर्तमान अवस्थाने स्वभाव तरफ वाळवा तमे स्वतंत्र छो. तमारा केळवज्ञाननी तैयारी तमारा हाथमां छे.
तमे तमारा परिपूर्ण स्वभाव तरफ वाळो. वर्तमाननी अपूर्णतानो आश्रय करशो नहि, पूर्वना विकारी
पर्यायने याद करशो नहि, केमके तेनो तो वर्तमानमां अभाव छे. संयोग सामे जोशो नहि, केमके तेनो
आत्मामां त्रिकाळ अभाव छे.
जेने त्यां एकेक सेकंडमां करोडो सोनामहोरोनी पेदाश थती होय एवा राजाओनी आठ–आठ वर्षनी
राजकुंवरीओ पण भगवाननो उपदेश सांभळतां, ‘अहो, आवो मारो आत्मा!’ एम स्वभावनी रुचि करतां
सम्यग्दर्शन पामी गई. देडकां पण सम्यग्दर्शन पामी गयां. देडकाने पण अंदर आत्मा छे ने! आत्मा क्यां
देडकाना शरीरपणे थई गयो छे? देडकाने व्यंजन पर्याय नानो छे, पण आत्माना ज्ञानने नाना–मोटा व्यंजन
पर्याय साथे संबंध नथी. एक जीव ५०० धनुष्यना व्यंजन पर्यायवाळो होय अने बीजो जीव ७ धनुष्यना
व्यंजन पर्यायवाळो होय, ते बंने केवळज्ञान पामे तो त्यां बंनेनुं केवळज्ञान सरखुं ज छे. क्षेत्रनी मोटाईथी
(व्यंजनपर्यायथी) आत्मानी महत्ता नथी, पण भावनी मोटाईथी (–अर्थ पर्यायथी) आत्मानी महत्ता छे.
कोईने ५०० धनुष्यनो देह होय छतां ऊंधा भावथी मरीने नरके जाय, अने कोईने नानो देह होय छतां
केवळज्ञान पामीने सिद्ध थाय. माटे हे भाई! तुं शरीरनी आकृतिनुं के आत्माना नाना–मोटा व्यंजनपर्यायनुं
लक्ष छोडीने, आत्मा पोताना ज्ञानस्वभावथी मोटो छे ते स्वभावने जो. जंगलमांथी मोटा मोटा सिंह–वाघ ने
रींछ त्राड पाडता आवे छे ने भगवान पासे आवतां शांत थईने ठरी जाय छे अने वाणी सांभळीने अंतरमां
वळतां ते पण सम्यग्दर्शन पामे छे. मोटा फणीधर फूंफाडा मारता