Atmadharma magazine - Ank 076
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २००६ : आत्मधर्म : ७५ :
नाग आवे, अने अंदर ठरी जाय के अहा! अमे तो अमृतस्वरूप छीए. दाढमां झेर भर्युं होय पण भान छे के
आ शरीर ते हुं नथी, हुं तो अमृतमय चैतन्य भगवान छुं. –आवो भगवाननो प्रताप छे एम निमित्तथी
कहेवाय छे, खरेखर तो ते दरेक जीवोनी पोतानी लायकातनो ज प्रताप छे.
(१०) जैनशासन अने तेमां कहेलो राग टाळवानो उपाय
भगवानने पूर्वे छद्मस्थदशामां पूर्ण थवानो विकल्प हतो त्यारे वाणी बंधाणी, अने भगवान पूर्ण सर्वज्ञ
थया त्यारे सहजपणे राग वगर अभेद वाणी छूटी, तेमां अभेद स्वभाव तरफ वळवानो उपदेश छे. जे जीव
अभेद स्वभावने पकडी ल्ये ते जीव भगवाननी वाणीने समज्यो छे. अभेद स्वभावने श्रद्धा–ज्ञानमां लईने
तेमां ठरवुं ते ज जैनशासन छे, वच्चे भेद पडे ने राग थाय ते जैनशासन नथी. साधकदशामां रागनो निषेध
करीने स्वभाव तरफ वळवा माटे रागनुं ज्ञान होय छे, पण जे राग थाय छे ते जैनशासन नथी, ने ते राग
करवानो उपदेश नथी, रागरहित अखंड ज्ञानस्वभावनी द्रष्टि करीने रागरहितपणे ठर्यो ते ज जिनशासन छे.
खरेखर तो रागनो निषेध पण करवो नथी पडतो, स्वभाव तरफ एकाग्र थतां रागनो निषेध थई जाय छे.
‘रागनो निषेध करुं’ एम विकल्प करवा जाय त्यां तो ऊलटी रागनी उत्पत्ति थाय छे, अने ते रागनी उत्पत्तिने
राग टाळवानो उपाय माने त्यां मिथ्यात्व थाय छे. तेथी अखंडानंद स्वभावनी द्रष्टि करीने तेमां एकाग्र थवुं ते
एक ज राग टाळवानो उपाय छे. अंदरमां आत्मानी तैयारी अने पात्रता होय तो नानुं देडकुं पण आवो
स्वभाव समजी जाय छे. अने जो आत्मानी पोतानी पात्रता न होय तो मोटा मोटा शास्त्र भणेला विद्वानो पण
समजता नथी; कांई भगवान कोईने समजावी शकता नथी. भगवाने तो दरेक आत्मानी स्वतंत्रतानो ढंढेरो
जाहेर कर्यो छे. जो भगवानने लीधे कोई समजतुं होय तो, भगवाने पोते कहेली स्वतंत्रता ज रहेती नथी. जे
जीवो पोतानी अंतरनी पात्रताथी जागीने समजे छे ते जीवो विनयथी भगवानमां आरोप करीने कहे छे के
अहो, नाथ! आपे परम उपकार करीने, अमने तार्या, आपे अमने आत्मा समजाव्यो. पण यथार्थ
वस्तुस्थितिनुं ते वखते अंतरमां भान छे.
(१) श्रोताजनोनी पात्रता अने दिव्यध्वनिुं निमित्तपणुं
‘तारो ज्ञानस्वभाव छे, जगतना बधा पदार्थो पोतपोताना स्वकाळ प्रमाणे परिणमी रह्यां छे, तेमां
फेरफार करवा कोई समर्थ नथी. तारा वर्तमान परिणाम तारा द्रव्यमांथी क्रमबद्ध आवे छे. तुं तारा वर्तमान
परिणामने स्व तरफ वाळीने स्व द्रव्यने नककी करी ले.’ आवो अरिहंत भगवाननो उपदेश सांभळीने पोताना
परिणामने स्वभावमां वाळतां कोई जीवो गणधर थया, कोई मुनि थया, कोई अर्जिका थया, कोई सम्यग्दर्शन
सहित व्रतधारी श्रावक–श्राविका थया. अने कोई सम्यग्द्रष्टि थया. तेम ज केटलाक जीवो मात्र शुभराग करीने
पण बहार नीकळ्‌या. जेने पूर्वनां महाभाग्य होय तेने भगवानना समवसरणमां ध्वनि सांभळवानो योग मळे,
अने जेने वर्तमान अपूर्व पात्रतानो पुरुषार्थ होय तेने ज तेनी रुचि थाय अने समजाय. भगवाननी वाणी तो
अभेद छे पण दरेक जीव पोतानी पात्रता अनुसार समजी जाय छे. भगवाननो उपदेश सांभळतां कोई एम
समजे के ‘भगवाननी वाणीमां मारा माटे एम आव्युं के ‘तुं एकावतारी छे’, ‘तुं भविष्यमां केवळज्ञान पामीने
मोक्ष जईश’, ‘तुं त्रीजा भवे क्षायिक सम्यग्दर्शन पामीश,’ ‘तुं आ ज भवे मोक्ष जईश,’ ‘तुं भविष्यमां तीर्थंकर
थईश. ’ –ईत्यादि प्रकारे सांभळनारा पोतपोतानी लायकात प्रमाणे समजी जाय छे, अने ‘भगवाने आजे आ
प्रमाणे कह्युं’ एम, पोतानी समजणनो निमित्तमां आरोप करीने कहे छे. वाणीमां तो एक साथे बधुंय आवे छे,
पण जे श्रोता पोतानी लायकातथी जेटलुं समजे छे तेने माटे तेटलुं निमित्त कहेवाय छे. ज्यारे श्री कृष्णनो पुत्र
प्रद्युम्न खोवाई गयो त्यारे ते संबंधी पूछवा माटे नारदजी अहींथी सींमधरभगवान पासे गया हता, तेमने
वाणी सांभळतां प्रद्युम्नचरित्र समजायुं, ते ज वखते बीजा श्रोताओमां कोईने द्रव्यानुयोग, कोईने करणानुयोग
अने कोईने चरणानुयोग समजायो. त्यां पोतानी पात्रताथी सौ जे जे समज्या ते ते प्रकारे भगवाननी वाणीने
निमित्त कहे छे. नारदजी कहे के आजे भगवाने प्रद्युम्नचरित्र कह्युं, द्रव्यानुयोग समजनार