Atmadharma magazine - Ank 076
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: ७६ : आत्मधर्म : महा : २००६ :
कहे के आजे भगवाने द्रव्यानुयोगनो अपूर्व उपदेश कर्यो, करणानुयोग समजनार कहे के करणानुयोग कह्यो, ने
चरणानुयोग समजनार कहे के चरणानुयोग कह्यो. त्यां एक साथेे ते बधाने निमित्त थाय तेवी खास योग्यता
भगवाननी दिव्य वाणीमां ज छे. जे जीव केवळी भगवानना उपदेशने समजे तेने केवळज्ञान थया विना रहे नहि.
भगवानना दिव्यध्वनिमां एक साथे अनंतु रहस्य आवे छे; वाणी द्वारा कहेवामां तेनो पार आवे नहि,
भगवाननो आशय समजी जाय ते पार पामे.
आत्मानी साची समजण
[महा सुद १२ गुरूवारना रोज उमराळामां पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन : श्री पद्मनंदी पंचविंशती]

आत्मा ज्ञानस्वरूपी वस्तु छे, तेनी कदी शरूआत थई नथी एटले ते अनादि छे अने कदी तेनो नाश
थतो नथी एटले ते अनंत छे. आत्मा पोतानी जातने भूलीने अनादि काळथी रखडे छे. आ शरीर जड
परमाणुओनुं बनेलुं छे, तेनाथी आत्मा जुदो छे. आ शरीर तो नवुं उत्पन्न थयुं छे, पण आत्मा कांई नवो
उत्पन्न थयो नथी. शरीर थया पहेलांं पण आत्मा तो क्यांक बीजा भवमां हतो. अने शरीरनो तो नाश थई
जाय छे पण आत्मानो नाश थतो नथी. शरीरना नाश पछी पण आत्मा रहेशे. शरीरथी जुदां, चैतन्यस्वरूप
आत्मानुं अज्ञान छे तेथी जीव नवा नवा भव धारण करीने संसारमां रखडे छे. ते अज्ञान टाळवानो उपाय
सत्समागमे साचुं ज्ञान करवुं ते ज छे. जेम घणां काळनुं अंधारुं होय ते टाळवानो उपाय दीवो ज छे. ए
सिवाय पावडा के कोदाळाथी ते टळे नहि. तेम आत्मानी ओळखाण करीने सम्यग्ज्ञानरूपी प्रकाश प्रगट करवो ते
ज अनादिना अज्ञान–अंधकारने टाळवानो उपाय छे. ए सिवाय जड शरीरनी कोई क्रियाथी के पुण्य परिणामथी
अज्ञान अंधकार टळतो नथी. अंधारुं टाळवा माटे प्रकाश न करे अने बीजी गमे तेटली महेनत करे तो अंधारुं
टळे नहि. प्रकाश प्रगट करवो ते ज अंधारुं टाळवानो उपाय छे. तेम चिदानंद स्वरूप भगवान आत्माना ज्ञान
वगर दया, दान, व्रत, पूजा, त्याग वगेरे गमे तेटलुं करे तोपण अज्ञान टळे नहि अने जन्म–मरणनो अंत
आवे नहि. अनंत अनंतकाळमां जीव बधुं करी चूक्यो छे पण आत्मानी साची समजण कदी करी नथी.
आत्माना अज्ञानने लीधे ज जीव अनंतकाळथी संसारमां रखडे छे. जो एक सेकंड पण आत्मानी रुचि करीने
तेनी ओळखाण करे तो तेना जन्म–मरणनो अंत आव्या विना रहे नहि. तेथी सौथी पहेलांं आत्मानी साची
समजणनो ज उपदेश छे.
सिंहण सिंहथी डरती नथी, केमके तेने भान छे के आ प्राणी मारी जातनुं ज छे. तेम, ‘हुं आत्मा विकार
वगरनो ज्ञानमूर्ति छुं, सिद्ध भगवाननी अने मारी एक जात छे’–आवुं भान करे ते जीव निर्भय थाय छे. जो
विकार वगरना परिपूर्ण आत्मस्वभावनुं भान करे तो भवनो भय टळी जाय छे, ‘हुं अनंत भवमां रखडीश’
एवी शंका तेने रहेती नथी. पण सिद्ध जेवी पोताना आत्मानी जात छे तेने जे ओळखे नहि तेने भवनो भय
टळे नहि.
जेम कोई माणस दरजी पासे कापडनो ताको लईने लूगडां सीवडाववा जाय, त्यां ते माणसने जे जातनां
लूगडां कराववा होय तेनी जात अने तेनुं माप जाण्यां वगर ते ताको वेतरवा मांडे तो ताको नकामो जाय.
लूगडांनी जात अने माप नककी करवामां जे वखत जाय ते पण लूगडां माटे ज छे. तेम पहेलांं आत्मानी जातने
ओळख्या वगर पुण्यमां ने शरीरनी क्रियामां धर्म माने तो तेनो काळ नकामो जाय. आत्मानुं साचुं ज्ञान कर्या
वगर व्रत–उपवासादिथी धर्म थवानुं मानी ल्ये तेने धर्म तो न थाय पण मनुष्यभव नकामो चाल्यो जाय. दरजी
पण पहेलांं लूगडांनी जात अने माप जाण्यां पछी कापड वेतरे छे तेम धर्म करनारे पहेलांं आत्मानुं साचुं ज्ञान
करवुं जोईए. साची समजण माटेना प्रयत्नमां जे वखत जाय ते पण धर्मनुं कारण छे. पहेलांं आत्मानी साची
समजण कर्या पछी तेमां ठरवानी क्रिया करे तो मोक्षदशा तैयार थाय.
आत्मानी मूळ वात तो सूक्ष्म छे, आ तो आत्माना