शरीर आत्मानुं नथी. मरण टाणे पथारीमां सूतो होय अने अंदर रहेलो आत्मा श्वास लेवानी घणी ईच्छा
करे, छतां श्वास पण सरखो लई शकातो नथी. केमके श्वास लेवानी क्रिया आत्मानी नथी. लोको पण घणी वार
बोले छे के श्वास पण सगो नथी. श्वास पण ज्यां आत्मानो नथी तो शरीर अने बायडी छोकरां तो आत्माना
कयाथी होय? प्रभो! तारो आत्मा शरीर वगरनो चैतन्य मूर्ति छे, तेनी ओळखाण सिवाय तने कोई शरण
नथी. आत्मानुं भान थतां अनंतकाळना अज्ञाननो एक क्षणमां नाश थई जाय छे. जेम सूर्यनुं एक किरण
प्रगटतां ज आखी रातना अंधारानो नाश थई जाय छे तेम एक सेकंड पण आत्मानी यथार्थ समजण करतां
अनादिना अज्ञाननो नाश थई जाय छे. अनादिना अज्ञानने नाश करवा माटे अनंतकाळनी जरूर पडती
नथी, पण एक क्षणमां ज साची समजणवडे तेनो नाश थई जाय छे. साची समजण सिवाय बीजा अनंत
उपाय करवामां आवे तोपण ते बधा व्यर्थ छे. साची समजणथी ज मोक्षमार्गनी एटले के धर्मनी शरूआत
थाय छे.
नथी अने ते विना मुक्ति थती नथी.
अंधकारनो नाश करे छे अने संसारमां भवभ्रमणनो उकळाट मटाडीने आत्मानुं सुख प्रगट करे छे. माटे
आत्मानुं साचुं ज्ञान प्रगट करो ने अज्ञान टाळो–एवो आचार्यदेवनो उपदेश छे.
करे तो ‘आत्मा शुं अने तेनी मुक्ति केम थाय?’ तेनुं भान थई जाय, अने अल्पकाळे मारी मुक्ति छे–एम
आत्मामां निःसंदेहता थई जाय. पुण्य अने पाप तो जीवे अनंतवार कर्यां छे अने तेना फळमां स्वर्ग–नरकमां
अनंतवार गयो छे. ज्यां गयो त्यां देहने अने पुण्य–पापने ज पोतानुं स्वरूप मानी लीधुं छे, पण देहथी अने
पुण्य–पापथी जुदो पोतानो आत्मा कोण तेनी कदी क्षणमात्र समजण करी नथी. बापु! आत्मा कोण छे? तेनी
समजण करो; आ जाणवा जेवी वात छे, तेने जाणजो.
पण छे नित्य–अनित्यरूप आत्मस्वभाव छे. हुं दुःख टाळीने सुखी थाउं, अधर्म टाळीने धर्म करुं–एवी भावना
जीवने थाय छे. जो आत्मा पलटतो ज न होय ने तद्न कूटस्थ ज होय तो दुःख टाळीने सुखी थई शके नहि;
अने दुःखना नाश भेगो आत्मानो ज नाश करवा मांगतो नथी पण दुःख टाळीने पोते सुखरूपे कायम रहेवा
मागे छे. जो आत्मा कायम टकनार–ध्रुव न होय ने क्षणिक ज होय तो दुःखना नाश भेगो आत्मानो पण नाश
थई जाय, अने दुःख टाळीने सुखनो अनुभव करनार कोई रहे नहि. माटे आचार्यदेव कहे छे के आत्मा नित्य
तेमज अनित्य छे, एटले ते वस्तु कायम टकीने बदले छे. आवा आत्मस्वभावने जाणे तो अनित्यनो आश्रय
छोडीने ध्रुव नित्य स्वभावना आश्रये अज्ञान टळीने सम्यग्ज्ञान रूपी धर्म थया विना रहे नहि.
मागे छे. एक क्षणिक बजरनी छींकणी मळे त्यां आनंद मानी बेसे छे. अरे जीव! तारी वृत्तिनी केटली
तुच्छता!