Atmadharma magazine - Ank 076
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २००६ : आत्मधर्म : ७९ :
ज्ञानस्वभावनी द्रष्टि करे तो ते अनादिना विकारनो नाश करी नाखे छे. आवा आत्मस्वभावनी द्रष्टि करवी ते
ज संवर–निर्जरारूप धर्म छे.
आत्मा पोताना स्वभाव तरफ वळतां विकारनी उत्पत्ति थती नथी, अने कर्मोनो नाश स्वयं थई जाय
छे; त्यां आत्माए विकारनो नाश कर्यो ने आत्माए कर्मोनो नाश कर्यो एम उपचारथी कहेवाय छे. ‘लोगस्स’
स्तुतिमां आवे छे के ‘विहुचरयमला’ एनो अर्थ एम छे के हे भगवान! आपे रज अने मळने धोई नाख्या
छे; रज एटले कर्मनी झीणी धूळ अने मळ एटले राग–द्वेष–अज्ञान. आत्माना भान वडे भगवाने ते रज अने
मळ बंनेने धोई नाख्या छे एटले के भगवानने तेनो नाश थई गयो छे.
हे भाई! तारा आत्मानी अत्यंत गहनता छे. तुं साची समजणनो प्रयत्न न करे तो तारी गहनतानो
महिमा तने केम समजाय? तुं तारा आत्मानी साची समजणनी वात न पूछे, ने बीजी वातो पूछे, तो तने तारुं
स्वरूप केम समजाय? जो सत्समागमे परिचय करीने आत्माने समज, तो तने पुण्य–पापनी गुरुता टळीने
केवळज्ञानरूपी लघुता प्रगटे.
अनादिकाळथी पोते पोताना स्वभावने भूल्यो छे, ने ते भूलने लीधे ज रखडे छे; पण अज्ञानी जीवो
पोतानी भूलने ओळखता नथी अने कर्मनो वांक काढे छे. आ संबंधमां एक द्रष्टांत आवे छे. एक हतो वांदरो,
तेणे बोर लेवा माटे माटलामां हाथ नाख्यो. अने बोरनी मूठी भरीने हाथ बहार काढवा मांडयो, पण बोरनी
मोटी मूठी वाळेल होवाथी माटलामांथी हाथ बहार नीकळ्‌यो नहि. एटले वांदरो समज्यो के “अरे, मारो हाथ
भूते पकड्यो”. एम मानीने ते रोवा मांडयो! पोते मूठी पकडी छे तेथी ज पकडायो छे, भूते पकड्यो नथी. पण
पोते मूठी वाळी छे तेनुं भान नथी तेथी भूते पकड्यो छे एम माने छे. जो पोते मूठी छोडे तो पोते छूटो ज छे.
तेम आ अज्ञानी जीवे ‘शरीर मारुं, मकान मारुं, पैसा मारां’ एम ममतानी पकड करी छे, ने पोते ममतानी
पकडमां पकडाणो छे. पण पोते पोताना स्वभावने भूलीने ममतानी पकडमां पकडायो छे एम न समजतां,
अज्ञानथी एम माने छे के मने बीजाए पकड्यो, अने बीजा मने सुख–दुःख करे. जो स्वभावनी साची
ओळखाण करीने परनी ममतानी पकड छोडे तो संसारटळीने मुक्ति थई जाय. पण बीजाए मने पकड्यो एम
माने तो कदी मुक्ति थाय नहि.
वळी हे जीव! तारुं तत्त्व एक छे ने अनेक पण छे. ‘जगतमां बधा थईने एक ज आत्मा छे’ एम न
समजवुं, पण दरेक आत्मा पोताना अनंतगुणपर्यायोथी अभेदरूप होवाथी ‘एक’ छे. आ जगतमां अनंतजीवो–
अनंत आत्माओ छे, ते दरेक आत्मा भिन्न भिन्न छे; आत्मानी जात तरीके बधा सरखा छे, पण संख्याथी बधा
भिन्न भिन्न छे. एकेक आत्मामां स्वभावथी एक–अनेकपणुं छे; दरेक आत्मामां पदार्थ तरीके ‘एकपणुं’ छे,
तेनामां अनंतगुणो होवा छतां पदार्थना अनंतभाग पडता नथी, तेथी पदार्थ तरीके एक छे; अने ज्ञान, दर्शन,
आनंद, वीर्य, अस्तित्व वगेरे अनेक गुणो होवाथी, तेम ज भिन्न भिन्न अनेक पर्यायो होवाथी, गुण–
पर्यायअपेक्षाए अनेकपणुं पण छे.
नवतत्त्वोमां पहेलुं जीवतत्त्व छे, तेनी आ वात चाले छे. बधा आत्माओ आवा ज स्वरूपे छे. वस्तु
तरीके आत्मा नित्य टके छे, ने पर्यायअपेक्षाए क्षणेक्षणे बदले पण छे; वळी ते ज आत्मा मिथ्यात्वादि पापना
भारथी ‘गुरु’ कहेवाय छे, ने साचुं ज्ञान करतां ते हळवो ‘लघु’ थाय छे; ते ज आत्मा वस्तु तरीके एक छे ने
ज्ञानादि शक्तिओ तथा दशाओथी ते अनेक छे. आत्मस्वभावनो आवो गहन महिमा छे; आवा आत्माने
जाण्यां विना साचुं ज्ञान थाय नहि. साचुं ज्ञान न होय तेने सम्यग्दर्शन पण होय नहि. सम्यग्दर्शन वगर व्रत,
तप के चारित्र होय नहि; माटे प्रथम सत्समागमे श्रवण–मनन करीने आत्मानुं साचुं भान करवुं जोईए.
आ ‘सद्बोधचंद्रोदय अधिकार छे. अनादिनुं अज्ञान टळीने आत्मामां सम्यग्ज्ञानरूपी चंद्र प्रगटे तेनुं
नाम ‘सद्बोध चंद्रोदय’ छे, जेम बीज ऊग्या पछी ते क्रमे क्रमे वधीने पूर्णिमा थाय छे. तेम आत्मामां चोथे
गुणस्थाने सम्यग्ज्ञानरूपी चंद्र ऊग्यो ते क्रमेक्रमे वधीने पूर्ण केळवज्ञान थाय छे. आत्मानुं साचुं ज्ञान करवुं तेने
सद्बोध–चंद्रमा कहेवाय छे, ने पछी क्रमे क्रमे आगळ वधतां राग–द्वेष टाळीने पूर्ण केळवज्ञान प्रगटे छे, त्यारे ते
आत्माने परमात्मा कहेवाय छे. पहेलांं आत्मानी साची समजण करवी ते ज परमात्मा थवानो उपाय छे. *
मुद्रक : – चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय: मोटा आंकडिया : सौराष्ट्र ता. १४ – १ – ५०
प्रकाशक : – श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया : सौराष्ट्र