Atmadharma magazine - Ank 076
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 21

background image
: महा : २००६ : आत्मधर्म : ६५ :
• भव कलांत जीवोनो विसामो •
वीर सं. २४७५ ना फागण सुद सातमना मंगळ दिवसे वींछीयामां भगवानश्री चंद्रप्रभस्वामी वगेरे
जिनबिोंनी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा थई, तेम ज त्यांना श्री जैन स्वाध्याय मंदिरमां समयसारजीनी प्रतिष्ठा
थई, ते प्रसंगे पू. गुरुदेवश्रीनुं मांगळिक प्रवचन.
(१) भवभ्रमणनुं कारण : स्वरूपनी अणसमजण :– आत्मा अनादि अनंत स्वाभाविक जाणनार–
देखनार पदार्थ छे. तेने कोईए नवो बनाव्यो नथी तेमज तेनो कदी नाश थतो नथी. आ शरीर वगेरे पदार्थो
देखाय छे ते जड छे. आत्मा देह–मन–वाणीथी अतीत छे. अनादिकाळथी आत्मा क्यां रह्यो? तेणे अनादिथी
पोताना स्वरूपने भूलीने अज्ञानभावे जन्म मरणमां रखडवामां ज काळ वीताव्यो छे. अनादिकाळथी संसारमां
रखडतां जीव एक सेकंडमात्र पण धर्मने समज्यो नथी. जो सत्समागमे पोताना आत्माने समजीने धर्म प्रगट
करे तो जन्म–मरणनो नाश थया विना रहे नहि. जीवे अनंतकाळमां दया, दान, पूजा, व्रत, तप, त्याग वगेरे
बधुं कर्युं छे, पण पोतानुं स्वरूप ते रागथी जुदुं छे ते कदी समज्यो नथी. अनंतकाळथी पोतानुं स्वरूप समज्या
वगर एक पछी एक जन्म–मरणमां अनंत दुःख भोगवी रह्यो छे. श्रीमद् राजचंद्र आत्मसिद्धिनी पहेली ज
गाथामां कहे छे के–
“जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनंत,
समजाव्यु ते पद नमुं श्री सद्गुरु भगवंत.”
आत्मानी अणसमजण ते ज अनंत दुःखनुं कारण छे, ने आत्मानी समजण वडे ज ते अनंत दुःख टळे छे.
आत्मा पोताना स्वरूपने समज्या वगर ज अनंतकाळथी संसारमां रखडी रह्यो छे. हे भाई! हवे तुं तारी दया कर,
दया कर. सत्समागमे आत्माने ओळखीने तारा आत्माने चोराशीना अवतारनी रखडपट्टीथी हवे बचाव.
(२) भवभ्रमणथी थाकेलो जीव चैतन्यना शरणने शोधे :– आ चोराशीना अवतारनो जेने भय लाग्यो
होय ते आत्माना शरणने शोधे. ते अंतरमां एम विचारे के अरेरे! शुं भव ज करवानो मारो स्वभाव हशे! के
भवरहित शांति क्यांय हशे! आ अज्ञानपणे पुण्यपाप करीने भवभ्रमणनां दुःख भोगववा एवुं मारुं स्वरूप न
होय. आम जेने भवभ्रमणनो अंतरमां त्रास लागतो होय ते जीव अंतरमां चैतन्यना शरणने शोधे. भव एक
प्रकारना नथी पण स्वर्ग, नरक, तिर्यंच तेम ज मनुष्य ए चारे गतिमां जीवे अनंतवार अवतार कर्यो छे. आ
लोकमां एवुं कोई स्थान नथी के ज्यां जीव जन्म्यो ने मर्यो न होय. ज्यां आत्माना सहज–आनंदमां सिद्ध
भगवंतो बिराजी रह्या छे ते क्षेत्रमां पण जीव अनंतवार एकेन्द्रियपणे जन्म्यो–मर्यो छे. हे भाई! हवे तने
जन्म–मरणनो थाक लाग्यो छे? जो थाक लाग्यो होय तो ते जन्म–मरणथी छूटवा माटे चैतन्य शरणने
ओळखीने तेना आश्रये विश्राम कर. विसामो कोने न गमे? जेने थाक न लाग्यो होय ते विसामाने न शोधे.
पण जेने अंतरमां थाक लाग्यो होय ते विसामो शोधे.
अहीं श्री गुरुदेव परम करुणाथी कहे छे के बापु! जो भवभ्रमणथी तुं थाक्यो हो तो तारा आत्मामां
शरणने शोध. तारा आत्माने ओळखीने तेनुं ज शरण कर, ए सिवाय बहारमां बीजुं कोई तने शरणरूप थाय
तेम नथी. आत्मस्वरूपने समज्या वगर पुण्य पण तें अनंतवार कर्यां, ते पुण्य पण तने शरणरूप थयां नथी.
माटे हवे सत्समागमे आत्मस्वरूपने समज. जे आत्मस्वरूप अनंतकाळमां तुं समज्यो नथी ते आत्मस्वरूप
सत्समागम वगर समजाय तेम नथी, तेेमज पोतानी मेळे एकला शास्त्र अभ्यासथी, स्वच्छंदे समजाय तेम
नथी, शुभरागथी के बाह्य क्रियाथी पण ते समजाय तेम नथी. हे भाई! भवथी तुं थाक्यो छे? तने कांई
आत्मानी जिज्ञासा जागी छे? भवथी डरीने अने आत्मानी रुचि करीने पात्रताथी जो एक वार पण
सत्समागम करे तो धर्म न समजाय एम बने नहि. एक सेकंड पण धर्म समजे तेने भवभ्रमणनो अवश्य नाश
थई जाय छे.
(३) हे जीव! सुख अंतरमां छे :– आजे श्री जिनमंदिरमां श्री चंद्रप्रभस्वामी अने श्री सीमंधरस्वामी वगेरे
भगवंतोनी प्रतिष्ठा थई; तेमांथी