देखाय छे ते जड छे. आत्मा देह–मन–वाणीथी अतीत छे. अनादिकाळथी आत्मा क्यां रह्यो? तेणे अनादिथी
पोताना स्वरूपने भूलीने अज्ञानभावे जन्म मरणमां रखडवामां ज काळ वीताव्यो छे. अनादिकाळथी संसारमां
रखडतां जीव एक सेकंडमात्र पण धर्मने समज्यो नथी. जो सत्समागमे पोताना आत्माने समजीने धर्म प्रगट
करे तो जन्म–मरणनो नाश थया विना रहे नहि. जीवे अनंतकाळमां दया, दान, पूजा, व्रत, तप, त्याग वगेरे
बधुं कर्युं छे, पण पोतानुं स्वरूप ते रागथी जुदुं छे ते कदी समज्यो नथी. अनंतकाळथी पोतानुं स्वरूप समज्या
वगर एक पछी एक जन्म–मरणमां अनंत दुःख भोगवी रह्यो छे. श्रीमद् राजचंद्र आत्मसिद्धिनी पहेली ज
गाथामां कहे छे के–
दया कर. सत्समागमे आत्माने ओळखीने तारा आत्माने चोराशीना अवतारनी रखडपट्टीथी हवे बचाव.
भवरहित शांति क्यांय हशे! आ अज्ञानपणे पुण्यपाप करीने भवभ्रमणनां दुःख भोगववा एवुं मारुं स्वरूप न
होय. आम जेने भवभ्रमणनो अंतरमां त्रास लागतो होय ते जीव अंतरमां चैतन्यना शरणने शोधे. भव एक
प्रकारना नथी पण स्वर्ग, नरक, तिर्यंच तेम ज मनुष्य ए चारे गतिमां जीवे अनंतवार अवतार कर्यो छे. आ
लोकमां एवुं कोई स्थान नथी के ज्यां जीव जन्म्यो ने मर्यो न होय. ज्यां आत्माना सहज–आनंदमां सिद्ध
भगवंतो बिराजी रह्या छे ते क्षेत्रमां पण जीव अनंतवार एकेन्द्रियपणे जन्म्यो–मर्यो छे. हे भाई! हवे तने
जन्म–मरणनो थाक लाग्यो छे? जो थाक लाग्यो होय तो ते जन्म–मरणथी छूटवा माटे चैतन्य शरणने
ओळखीने तेना आश्रये विश्राम कर. विसामो कोने न गमे? जेने थाक न लाग्यो होय ते विसामाने न शोधे.
तेम नथी. आत्मस्वरूपने समज्या वगर पुण्य पण तें अनंतवार कर्यां, ते पुण्य पण तने शरणरूप थयां नथी.
माटे हवे सत्समागमे आत्मस्वरूपने समज. जे आत्मस्वरूप अनंतकाळमां तुं समज्यो नथी ते आत्मस्वरूप
सत्समागम वगर समजाय तेम नथी, तेेमज पोतानी मेळे एकला शास्त्र अभ्यासथी, स्वच्छंदे समजाय तेम
नथी, शुभरागथी के बाह्य क्रियाथी पण ते समजाय तेम नथी. हे भाई! भवथी तुं थाक्यो छे? तने कांई
आत्मानी जिज्ञासा जागी छे? भवथी डरीने अने आत्मानी रुचि करीने पात्रताथी जो एक वार पण
सत्समागम करे तो धर्म न समजाय एम बने नहि. एक सेकंड पण धर्म समजे तेने भवभ्रमणनो अवश्य नाश
थई जाय छे.