Atmadharma magazine - Ank 076
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २००६ : आत्मधर्म : ६७ :
वंदित्तु सव्वसिद्ध धुवमचलमणोवमं गइं पत्ते।
वोंच्छामि समयपाहुडमिणमो सुयकेवली भणियं।।
१।।
अहीं, समयसारनी शरूआतमां ज आचार्यभगवान अंतरमां सिद्धपणानुं प्रस्थानुं मूके छे. पहेलांं तो
आत्मामां सिद्धभगवानने स्थापे छे ते ज खरी समयसारनी प्रतिष्ठा छे. समयसार एटले शुद्ध आत्मा; पोताना
आत्मामां ‘राग ते हुं’ एवी मिथ्या मान्यताने ऊखेडी नांखीने, ‘सिद्धभगवान जेवो शुद्ध आत्मा हुं छुं’ एवी
प्रतीति करीने शुद्ध आत्माने स्थापवो तेनुं नाम समयसारनी प्रतिष्ठा छे. आ गाथामां आचार्य भगवाननो नाद
छे के हुं सिद्ध छुं, तमे सिद्ध छो. श्रोताओने कहे छे के–हे जीवो! तमे पण सिद्ध छो, तमारा आत्मामां सिद्धपणुं
समाई जाय तेवी ताकात छे, जे ज्ञान सिद्धने जाणीने पोतामां सिद्धपणुं स्थापे छे ते ज्ञानमां सिद्ध जेटली ताकात
छे. पोताना आत्मामां जे सिद्धपणाने स्थापे ते जीव रागनो के अपूर्णतानो आदर न करे, तेम ज परनुं हुं करुं के
पर मने मदद करे एम पण माने नहि. पण पोते पोताना स्वभाव तरफ वळीने अनुक्रमे सिद्धदशा ज प्रगट करे,
पछी तेने भवभ्रमण रहे नहि.
आचार्यभगवान ‘तुं पामर छे’ एम कहीने शरूआत नथी करता, पण श्रोताने पहेलेथी ज कहे छे के तुं
सिद्ध छे. तारा अंतरमां बेसे छे आ वात? जेना अंतरमां आ वात बेठी तेणे पोताना आत्मामां सिद्धपणानी
स्थापना करी, ते अल्पकाळे सिद्ध थया विना रहे नहि. हे भाई! तारे आत्मानुं सारुं करवुं छे ने? तो सारुं
करवानी पराकाष्टा शुं? अर्थात् सौथी उत्कृष्ट सारुं शुं? ते नककी कर. सारुं करवा छेल्ली हद सिद्धदशा छे. ते
सिद्धदशा क्यांथी आवे छे? आत्माना स्वभावमां पूरी ताकात भरी छे तेमांथी ज ते दशा प्रगटे छे. आ प्रमाणे
पूर्णताना लक्षे ज साधकपणानी शरूआत थाय छे. जेम कोईने ५००० पगथिया ऊंचे डुंगर उपर चडवुं होय तो
ते तळेटीनुं लक्ष करीने अटकतो नथी, पण उपरनी टोचना लक्षे वचलो बधो रस्तो कपाई जाय छे. तेम जेणे
पोताना आत्मानी पूर्ण सिद्धदशा प्रगट करवी होय तेणे ते सिद्धदशाने प्रतीतमां लेवी जोईए. अधूरीदशा के
विकारनुं लक्ष करीने अटके तो सिद्धदशा थाय नहि.
चोवीस तीर्थंकरोनी स्तुतिमां आवे छे के :– ‘सिद्धाः सिद्धि मम दीसंतु’–हे सिद्ध भगवंतो! मने सिद्धि
आपो. एम पोते सिद्धपदनी मागणी करे छे. ‘तुं सिद्ध छे’ एम सांभळतां ज जे श्रोताने अंतरमां सिद्धपणाना
भणकार जागे छे तेने सिद्ध थवानी शरूआत थाय छे. ‘सिद्धसमान सदा पद मेरा’ ए वात जेने रुचे तेणे
पोताना आत्मामां समयसार भगवाननी स्थापना करी छे. आ, समयसारनी आध्यात्मिक प्रतिष्ठा छे. हे
भाई! आचार्यभगवान कहे छे के तुं सिद्ध छे. तारा सिद्धपणानी ना पाडीश नहि. हुं सिद्ध छुं. एम उल्लासथी
हा पाडीने सिद्धदशा तरफ चाल्यो आवजे. तारी अवस्थामां राग थाय छे तेनी तो आचार्यदेवने खबर छे, छतां
आचार्यभगवान स्वभावद्रष्टिनी मुख्यताथी तारा आत्मामां पण सिद्धपणुं स्थापे छे. माटे तुं पण स्वभाव
द्रष्टिथी हा ज पाडजे. अत्यारे राग सामे जोईश नहि. जेम कोईने गाम–परगाम जवुं होय ए तिथि–वारनो मेळ
न होय तो पहेलांं प्रस्थानुं मूके छे, ने पछी योग्य तिथिवार आवतां गाम जाय छे. तेम आत्माने सिद्धगतिमां
गमन करवुं छे. पण अत्यारे आ पंचमकाळ छे ते साक्षात् सिद्धदशा माटे कवार (अकाळ) छे. तेथी आचार्यदेवे
अत्यारे सिद्धपणानुं प्रस्थानुं कराव्युं छे. जेणे एवुं प्रस्थानुं कर्युं ते पोताना पुरुषार्थनो स्वकाळ आवतां साक्षात्
सिद्ध थई जशे. हे भाई! जो तारे आ संसारमांथी नीकळीने सिद्धमां जवुं होय तो अत्यारे प्रस्थानुं कर के ‘हुं
सिद्ध छुं.’
हे जीव! ज्ञानदर्शन सिवाय बीजो तारो स्वभाव नथी. शरीरादि पदार्थो ताराथी जुदां जड छे, ते पण
जगतना सत् पदार्थो छे, तेनी हलन–चलनादि क्रियाओ तेनाथी ज थाय छे. छतां, ‘ते पर पदार्थोनी क्रिया मारे
लईने थाय छे, हुं होउं तो तेनी क्रिया थाय, नहितर न थाय’–आवो जे भ्रम छे ते सिद्धदशाए पहोंचवामां वच्चे
मोटी शिलारूप विघ्नकर्ता छे. ए भ्रम टाळीने, आत्माना सिद्धपदना स्वीकार वगर धर्मनी शरूआत थाय नहि,
अने भवभ्रमणनो विसामो मळे नहि.
(५) भवनो अंत अने सिद्धिनो पंथ :– आ काळे आ भरतक्षेत्रना जीवोने प्रत्यक्ष सिद्धदशा नथी, पण कोई
महा भाग्यवंत विरला मुनिने चारित्रदशा प्रगटे छे. अने ‘हुं सिद्ध छुं हुं सिद्ध छुं’ एम आत्मामां प्रस्थानुं करीने
तेना घोलनथी–ध्यानथी एकावतारी थईने के बे–त्रण भवे मुक्ति पामे छे. सम्यग्द्रष्टि