Atmadharma magazine - Ank 077
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 17

background image
: फागण : २००६ : आत्मधर्म : ८९ :
विकार रहित जे त्रिकाळ स्वभाव छे तेनो अनादर कर्यो, ने विकारनो आदर कर्यो, ते मोटो अधर्मी छे. अज्ञानीने
आत्मानुं भान नथी तेथी ते विकारनो कर्ता थाय छे, अने राग द्वारा आत्मानी समजण थशे एम ते माने छे.
खरेखर आत्माना सत् स्वभावमां रागनो अभाव छे. सत्नी शरूआत सत्थी थाय; असत्थी सत्नी शरूआत
न थाय. धर्मनी शरूआत साची समजणथी थाय पण रागथी धर्मनी शरूआत थाय नहि.
आत्माए शुं करवुं जोईए?
आत्मा शुं करी शके छे?
अने आत्मामां शुं थई रह्युं छे? तेनुं अज्ञानीने भान नथी. तावडीनी किनारमांथी पूर्णिमा न थाय, पण
बीजमांथी थाय, तेम शरीरनी क्रिया, राग के पुण्यमांथी केवळज्ञान न थाय, पण सम्यग्ज्ञान रूपी चंद्रमांथी
केवळज्ञान थाय छे. साचुं भान थया पछी ज्ञानीने राग थाय पण अंतरमांथी आत्मभान खसतुं नथी, ने
रागने कर्तव्य मानता नथी.
सर्वज्ञ भगवाननी वाणीमां पूर्ण उपदेश आवे छे, छद्मस्थ जीव तेवो पूर्ण उपदेश करी शके नहि, छतां
सम्यग्ज्ञानी होय ते सम्यक् उपदेश आपी शके. केवळी भगवाननी सभामां जईने जीवे उपदेश सांभळ्‌यो पण
अंतरमां पात्र थईने समज्यो नहि. जेम कंदोईनी दुकाने झेर न मळे, तेम ज्ञानी पासेथी जेना वडे संसार वधे
एवो उपदेश होय नहि. पण जीवनी पोतानी पात्रता वगर कल्याण थाय नहि.
आत्मा पोतानी भूले रखडयो छे, ने पोते भूल भांगीने भगवान थाय छे. ए सिवाय कोई भगवाने
आत्माने रखडाव्यो नथी ने भगवान तारता पण नथी. ‘हे भगवान! तुं मने तार!’ एम माने तो तेना
पेटामां एम आव्युं के ‘हे भगवान! अत्यार सुधी तें मने रखडावी मार्यो.’ कोईक मने डुबाडे ने कोईक मने
तारे एवी पराधीन द्रष्टि ज जीवने रखडावे छे.
अहीं शिष्य प्रश्न करे छे के प्रभो!
आत्मा शरीरथी–वाणीथी के रागथी जणातो नथी, शुं आत्मा आकाशना फूलनी जेम अवस्तु छे? के सत्
वस्तु छे? जेम आकाशनुं फूल आंखथी–मनथी कोई रीते जणातुं नथी, तेम शुं आत्मा कोई रीते जणातो नथी?
श्रीगुरु उत्तर कहे छे के हे शिष्य! आत्मा पुण्य–पापना विकारथी के जडथी जणातो नथी, पण तेथी तेनुं
नास्तिपणुं थई जतुं नथी. केमके आत्मा स्वानुभूतिथी जणाय तेवो छे. मननुं अवलंबन अने विकार टळी जतां
जे एकलुं ज्ञान रही गयुं तेनाथी आत्मा जणाय छे. चैतन्यतत्त्व स्वानुभवथी जणाय छे, ए सिवाय बीजी रीते
जणातुं नथी. रागरहित चैतन्यस्वभावनुं सत्समागमे माहात्म्य करतां ते स्वानुभवथी जाणी शकाय छे, ए
सिवाय बीजा उपाय निरर्थक छे. आकाशनुं फूल तो वस्तु ज नथी तेथी ते क्यांथी जणाय? आत्मा तो सत् वस्तु
छे. आत्माने स्वसंवेदन वडे जाणी शकाय छे, पण तेने वाणीद्वारा पूरो वर्णवी शकाय नहि. छतां ज्ञानीना
उपदेशना निमित्तथी पात्र जीव अंतरमां पोतानी लायकातथी समजी जाय छे. जे चैतन्यस्वभाव ने जाणवा
तैयार थयो तेने चैतन्य जणाय तेवो छे. जे चैतन्यस्वभावने जाणे तेने एम थई जाय के अहो! में मारा
स्वभावनुं माहात्म्य अनंतकाळमां कदी जाण्युं न हतुं. मारा स्वभावनुं परिपूर्ण माहात्म्य मारामां छे, ते मन–
वाणीथी पार छे, रागथी पार छे. आवा आत्माने जाणवानो प्रयत्न करे तेने ते जणाय तेवो छे. अनंत
आत्माओ आवा आत्माने जाणीने मुक्त थया छे, ने जेओ मुक्त थशे ते आत्मस्वभावने जाणीने ज थशे.
वर्तमानमां एवा आत्माने जाणीने जीवो मुक्त थाय छे. अंतरमां चैतन्यनी बादशाही छे तेनो नकार करीने, जड
पैसाथी पोतानी मोटाई माने छे ते संसारमां रखडवानुं मूळ छे. आत्मस्वभावने जेम छे तेम स्वानुभवथी
जाणवो ते ज मुक्तिनो उपाय छे. तेथी आचार्यदेव कहे छे के तारी चैतन्य जातने तुं स्वानुभवथी जाण तो ते
जणाय तेम छे.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
पू. गुरुदेवश्री हाल सौराष्ट्रमां विचरी रह्या छे. तेओश्री मोरबी पधार्या ते दरमियान महा सुद १५
ने गुरुवार ता. २–२–५० ना रोज वैदराज भाईश्री हीराचंद कृपाशंकर तथा तेमना धर्मपत्नी शारदाबेन–
ए बंनेए सजोडे पू. गुरुदेवश्री पासे आजीवन ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा अंगीकार करी छे. ते बदल तेमने धन्यवाद.