कांईक दया, दान आदि शुभभाव कर्या होय तेना फळरूपे ते देवमां ऊपजे छे. ए प्रमाणे नरक वगेरे गतिओ छे.
अने ते न्यायथी सिद्ध थाय छे. जेमके, प्रतिकूळ जीवोने मारी नाखवाना क्रूर भावनुं फळ नरक छे. खरेखर कोई
जीव कोईने प्रतिकूळ नथी, परंतु जीवे कल्पना करी छे के आ मने प्रतिकूळ छे. सामा जीवोने मारी नाखवाना क्रूर
भावमां जीवोने मारवानी संख्यानुं के काळनुं माप नथी, तेना परिणाममां क्रूरतानुं एटलुं बधुं जोर छे के, सामे
गमे तेटला जीवो होय, अने गमे तेटलो काळ मारवा पडे तोपण बधाने मारी नाखुं. आवा तीव्र क्रूर परिणामनुं
फळ आ मनुष्यभवमां नथी; तेनुं फळ नरकमां छे.
भासे छे. ने तेमां अभिमान करे छे. शास्त्रकार आचार्य भगवान कहे छे के आ एक चैतन्य ज परम रत्न छे.
शास्त्ररूपी समुद्रमांथी ते एक चैतन्य रत्न ज ज्ञानीओए काढ्युं छे. एकत्व चैतन्यस्वभावने ओळखवो ते ज
शास्त्रनो सार छे. ‘शुभ अने अशुभ विकार हुं नथी, ने विकाररहित चैतन्य ज्ञानानंद हुं छुं’ एम स्वभावनुं
जोर थतां विकार टळ्या विना रहे नहि. आ प्रमाणे चैतन्यने ओळख्या वगर जेटलुं करवामां आवे ते बधुं छार
पर लींपण समान छे.
ऊखडवा मंडे. लींपण तो कठण भों उपर चाले, राखना दळ उपर चाले नहि, तेम त्रिकाळी चैतन्यस्वभावना
भान वगर पर लक्षे जे कांई पुण्य करवामां आवे ते छार पर लींपण समान छे. स्वभावनुं भान नथी एटले
थोडा काळमां ते पुण्य पलटीने पाप थई जशे. तेनुं पुण्य लांबो काळ टकशे नहि.
तेनुं नाम धर्म छे. आ चैतन्य रत्ननी प्रतीति कर्या वगर मिथ्याद्रष्टिए चोराशी लाख योनिमां अवतार कर्या छे.
चैतन्यस्वभावनो महिमा न आवता, जेणे पुण्य–पापने अधिकाई आपी, तेणे चैतन्यना जीवतरनुं खून कर्युं छे,
अने ते ज भावमरण छे. चैतन्य स्वभावने समज्या वगर ते भावमरण टळे नहि.
उत्तर :– अनंत काळथी आत्माने समज्यो नथी एटले शुं अत्यारे न समजाय? शुं समजवानी ताकात
छे? चूला उपर पडेलुं ऊनुं पाणी ऊलटुं थतां ते ज अग्निनो नाश करवानी ताकातवाळुं छे. तेम अनंतकाळथी
ऊंधी रुचिना कारणे आत्माने समज्यो नथी. पण हवे जो रुचिमां गुलांट मारे तो क्षणमां समजाय तेवुं छे.
बतावाय. जेमके– कोई एक माणसना नाम संबंधीनुं अज्ञान तेना नामना ज्ञानथी टळे छे, बीजी गमे तेटली
क्रिया करे, खिस्सामांथी कोईने रूपिया आपी दे, तडके ऊभो ऊभो सुकाई जाय, के महिनाना उपवास करीने
रोटला छोडी दे, पण ते बधुं सामा माणसना नामनुं अज्ञान टाळवानो उपाय नथी; तेम आत्मा संबंधी अज्ञान
आत्माना ज्ञाननी क्रियाथी ज टळे छे. सरवाळामां भूल होय ते कोईने रूपिया आपी दीधे न टळे, पण ज्यां
भूल थई होय तेने जाणीने टाळे तो टळे, तेम चैतन्यमां शुभाशुभ विकारने मूळ स्वरूप मान्युं छे, ते
सरवाळामां भूल छे, तेने बदल हुं चैतन्य छुं, पुण्य–पाप मारा स्वभावमां नथी, एम साची समजण करतां ते
भूल टळे छे. अंधारुं टाळवा माटे प्रकाश ज उपाय छे; प्रकाश थतां अंधारुं टळी जाय