Atmadharma magazine - Ank 077
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २००६ : आत्मधर्म : ८७ :
घेर घेर न होय अने शेरीए शेरीए तेनी दुकान न होय; पण शाकभाजीनी जरूर घेर घेर हंमेशां होय, तथा
शेरीए शेरीए तेनी दुकान होय अने टोपला लईने वेचावा पण आवे. तेम आत्मानो पवित्र ज्ञानानंद स्वभाव
छे; तेने लेनारा पण लाखो करोडोमां कोई थोडा ज होय अने ते मळे पण दुर्लभताथी. साचा तत्त्वनी वात
कहेनारा थोडा अने तेने समजनारा पण थोडा ज होय. अने पुण्यथी धर्म मानवानी वात तो कहेनारा पण घणा
अने तेम माननारा लोको पण त्रणे काळ जगतमां घणा छे.
ज्ञानी कहे के ‘आ आत्मानी वात तुं समज.’ एम कहेतां जीव पोते खोटुं समज्यो छे, पोताथी भिन्न
परमां क्यांक बीजे अस्तित्व कबूल्युं छे, माटे जगतमां परवस्तु पण छे. एटले के जड छे ने आत्मा पण छे.
तेनामां अणसमजण छे, ते टाळवानी अने सत् समजवानी ताकात छे. जीव टकीने पलटे छे. मिथ्या श्रद्धा–ज्ञान–
चारित्र पलटीने सम्यक् थई शके छे, भूल छे अने तेनां निमित्तो पण जगतमां छे. भूल टाळीने साचुं समजाय
छे, साचुं समजवामां निमित्तो सत् देव–गुरु–शास्त्र होय छे. ते सत् निमित्तो कोण छे ते समजवुं पडशे. सत्
समजे नहि अने ऊंटवैदनी जेम अज्ञानी ज्यां त्यां धर्म मनावे छे.
एकवार एक ऊंटने गळे कोठुं रही गयुं तेने एक वैदे पाटु मारतां ते पेटमां ऊतरी गयुं. पछी एकवार
एक माणसने गळामां रतवा थयो त्यां पण पाटु मारवानो उपाय बताव्यो. तेम अज्ञानीओ सत् समज्या
विना पुण्यमां धर्म मनावे छे. अनंत काळथी नहि प्रगटेलो स्वभाव पण जीव प्रगट करवा मागे त्यारे प्रगटी
शके छे.
एकवार एक राजाए प्रसन्न थईने पोताना वैद्यने कह्युं के ईच्छा पडे ते मागो. वैद्ये कह्युं,– ‘गाममां
जेटला वैद्यो होय तेमना उपर एक रूपियानो वार्षिक कर नांखो अने ते रकम मने मळे तेम बंदोबस्त करावो.’
पछी ते वैद्य ढोंग करीने पोताना रोग माटे लोकोने दवा पूछवा लाग्यो. जेने पूछे ते बधाय कोई ने कोई दवा
बताववा लाग्या. पछी ते बधाना नामनी नोंध करीने राजा पासे ते वैद्य आव्यो. अने ते बधा उपर एक
रूपियानो कर नाखवानुं कह्युं. तेथी लोको बधा गभराई गया अने वैद्य तरीकेनुं पोतानुं नाम कढावी नाखवा
लाग्या. तेम जगतमां आत्माने समज्या वगर सौ धर्मनी वातो करे, परंतु आत्माने समजनारा तो लाखो–
करोडोमां कोई वीरला ज होय छे.
जे कोई समजे छे ते पोतानी स्वतंत्रताथी समजे छे. परने लीधे समजता होय तो वळी कोईक बीजो तेने
ऊंधुंं पण समजावी दे; पण तेम नथी.
आत्माना स्वभावने कर्मथी जुदो अने पोताथी एकरूप जाणीने क्रमेक्रमे ते विकारने टाळीने पोताना
स्वरूपमां तन्मय थाय छे ते वीतराग थईने मुक्त थाय छे. आ विधिथी आत्माने जाणे तो ज धर्म थाय, बीजी
रीते धर्म थतो नथी.
सुधारो : (१) ‘आत्मधर्म’ अंक ७६ पृ. ७२ कोलम २ लाईन ३२ मां ‘तेनो स्वभाव छे’ एम छपायुं
छे तेने बदले ‘तेनो स्वभाव नथी’ एम सुधारीने वांचवुं.
(२) पृ. ७३ कोलम १ लाईन ३२–३३ मां चैतन्य प्रकाश खीलतो नथी’ एम छपायुं छे तेने बदले
चैतन्य प्रकाश खीले छे’ एम सुधारीने वांचवुं.
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ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा : सौराष्ट्रमां पू. गुरुदेवश्रीना विहार दरमियान वढवाण केम्पमां पोष वद ११ ने
शनिवारना रोज भाई श्री मगनलाल लेराभाई तथा तेमना धर्मपत्नी भूरीबेन अने तेमज पोष वद
०)) ने बुधवारना रोज भाईश्री लालचंद रूगनाथ तथा तेमना धर्मपत्नी समजुबेन–ए चारेये पू.
गुरुदेवश्री पासे आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी. ते बदल तेमने अभिनंदन.
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सूचना : परम पूज्य गुरुदेवश्री हाल सौराष्ट्रमां विहारमां होवाथी, तेमज आ अंक वहेलो प्रसिद्ध करवानुं
होवाथी, मेटरना अभावे आ अंक १६ पानांनो प्रसिद्ध करवामां आव्यो छे. बाकी रहेता चारपाना हवे
पछीना अंकमां वधारे आपवामां आवशे.