Atmadharma magazine - Ank 078
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 16 of 25

background image
: चैत्र : २००६ : आत्मधर्म : १११ :
थाय छे अने भवनो वास (जन्म–मरण) जलदी टळी जाय छे, एम श्री बनारसीदासजी कहे छे.
() िक्तरू त् प्ररू त् : मुक्त अवस्था प्रगटे त्यारे तो प्रगटरूप
परमात्मदशा छे, पण शुद्ध द्रव्यार्थिकनयथी आत्मा त्रिकाळ शिवस्वरूप परमात्मा ज छे. कह्युं छे के–‘परमार्थनये
सदा परमात्मस्वरूप छे एवा आत्माने नमस्कार.’ आत्मा द्रव्यथी सदा मुक्तरूप छे. परंतु पर्यायथी अनादिथी
संसार छे, परमात्मदशा अनादिथी प्रगट नथी; त्रिकाळ शक्तिरूप शुद्धपरमात्मा छे तेनी द्रष्टि अने एकाग्रतावडे
परमात्मदशा प्रगटे छे. शक्तिरूप परमात्मा बधा ज आत्माओ छे, अने ए निजशक्तिनुं भान करीने तेमां
जेओ लीन थाय छे तेओ प्रगटरूप परमात्मा थाय छे.
।। १८।।
अहिंस धम
– वांकानेरमां पूज्य गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन –
पद्मनंदी पंचविंशती–एकत्व अधिकार गाथा ५६ संवत २००६ महा वद ७

आत्मा अनादिथी छे. तेने कोईए बनाव्यो नथी; ने तेनो कदी नाश थतो नथी. पोताना मूळ स्वरूपने
भूलीने जीव अनादिथी संसारमां रखडे छे. आत्मानो अनादिथी नहि जाणेलो स्वभाव शुं छे? –सर्वज्ञ भगवाने
आत्माने केवो कह्यो छे? तेनी आ वात छे. आ शरीर, मन अने वाणी तो जड छे, तेनाथी आत्मा तद्न भिन्न
छे. अने आत्मानी अवस्थामां वर्तमान पूरता जे कृत्रिम पुण्य–पापना भावो थाय छे तेनाथी पण आत्मानो
मूळ स्वभाव भिन्न छे. शरीरथी जुदो अने पुण्य–पापनी विकारी लागणीओथी रहित, सदाय ज्ञानमूर्ति आत्मा
छे; एवा त्रिकाळी आत्मस्वभावनी श्रद्धा तथा ज्ञान करीने तेमां एकाग्र थवुं ते मंगळ छे. कह्युं छे के–
धम्मे, मंगलं उक्किठ्ठं अहिंसा संजमो तओ।
देवावि तं णमं संति जस्स धम्मे सया मणो।।
धर्म ते उत्कृष्ट मंगळ छे, अने ते अहिंसा, संयम, तप छे. जेनुं मन सदा धर्मने विषे रहे छे तेने देवो पण
नमे छे. जगतमां पुत्र जन्मे, लक्ष्मी मळे के पुत्र परणे ते कांई खरेखर मंगळ नथी, पण धर्म ते ज उत्कृष्ट मंगळ
छे. ते धर्म कोने कहेवो? अहिंसा ते धर्म छे. पण अहिंसा कोने कहेवी? अहिंसानुं साचुं स्वरूप शुं छे? पर
जीवनी दया वगेरे शुभ परिणामने लोको अहिंसा माने छे, पण खरेखर ते अहिंसा धर्म नथी. आत्मा ज्ञाता–
द्रष्टा साक्षी स्वरूप छे, पर जीवोने मारवानी के बचाववानी क्रिया तेने आधीन नथी. अने तेनी अवस्थामां जे
दया के हिंंसानी पुण्य–पापनी लागणीओ थाय ते विकार छे, ते विकारने आत्मानुं स्वरूप मानवुं ते आत्माना
स्वभावनी महान हिंसा छे. अने ते विकार रहित आत्माना ज्ञाता स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान करीने जेटले अंशे
रागरहित दशा उत्पन्न थाय तेने भगवान अहिंसा कहे छे. एवी अहिंसा ते धर्म छे, अने धर्म ते उत्कृष्ट मंगळ
छे. एक सेंकड पण एवो धर्म प्रगट करे तेनी मुक्ति थया विना रहे नहि.
आत्मा जाणनार देखनार चैतन्यमूर्ति ज्ञाता छे; ते कदी उत्पन्न थयो नथी, तेमज तेनो कदी नाश थतो
नथी. दरेक आत्मा ज्ञानदर्शनथी भरेलो परिपूर्ण पदार्थ छे. अनंतकाळमां सत्समागमे पात्रताथी कदी पोताना
आत्मानी श्रद्धा–ज्ञान करीने साची अहिंसा जीवे प्रगट करी नथी. पर प्राणीने न मारवो तेने लोको अहिंसा कहे
छे, पण भगवान तेने अहिंसा कहेता नथी. ‘परने हुं मारी के बचावी शकुं अने परनी दयाना शुभ परिणामथी
मने धर्म थाय’ –एवी मिथ्या मान्यताथी पोताना आत्माने हणे छे ते हिंसा छे. पर जीवनुं मरवुं के बचवुं तेम
ज सुखी–दुःखी थवुं ते आ जीवने आधीन नथी. पर जीवने बचाववाना भाव ते दया छे, शुभभाव छे, तेनाथी
पाप नथी पण पुण्य छे जीव पोताना रागने लीधे परने बचाववाना भाव करे, पण परने बचाववा कोई समर्थ
नथी;