वगरनो तारो स्वभाव छे, तेनी प्रतीत अने रुचि करीने तेने विकारथी बचाववो ते अहिंसा छे. आवी अहिंसा
ते धर्म छे, धर्म ते मंगळ छे, ने तेवा धर्मवंत जीवोने देवो पण वंदन करे छे.
शरीरथी भिन्न तत्त्व छे, तेना मूळ स्वभावमां पुण्य–पापनी झांई नथी. पर संयोगना लक्षे जे पुण्य–पापना
परिणाम थाय छे ते आत्मानो स्वभाव नथी. नीचली दशामां धर्मीने ईच्छा थाय खरी, पण धर्मी जाणे छे के
ईच्छा ते विकार छे, ते मारो स्वभाव नथी. हुं जाणनार–देखनार छुं. स्फटिकना स्वच्छ स्वभावनी जेम आत्मा
निर्मळ श्रद्धा–ज्ञान स्वरूप छे, ईच्छा तेना स्वभावमां नथी. जे ईच्छा थाय तेनाथी स्वभावमां लाभ नथी, तेम
ज ते ईच्छा वडे परमां पण कांई काम थई शकतुं नथी; ए रीते ईच्छा ते स्वभावमां तेम ज परमां निरर्थक छे.
एम जो ईच्छाने निरर्थक जाणे तो ते ईच्छाथी भिन्न पोताना स्वभावने ओळखीने ते तरफ वळे. जेटली शुभ
के अशुभ ईच्छानी उत्त्पत्ति थाय ते हिंसा छे. अने स्वभाव तरफना वलणमां रहेता ईच्छानी उत्पत्ति ज न थाय
ते अहिंसा छे. वहालामां वहालो पुत्र मरतो होय तेने बचाववानी ईच्छा करे छतां ते ईच्छाने लीधे पुत्र बचतो
नथी. ए रीते ईच्छाने लीधे परनुं कार्य थतुं नथी, तेम ज ते ईच्छा आत्मानो स्वभाव पण नथी. आम ईच्छा
रहित ज्ञान स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान करीने तेमां रागरहितपणे ठरवुं तेने भगवान सर्वज्ञदेव अहिंसा कहे छे.
एवी अहिंसा ते मुक्तिनुं कारण छे. नजीकमां रहेलुं आ शरीर पण आत्मानी ईच्छाने आधीन काम करतुं नथी
तो वळी बीजा पदार्थोमां तो आत्मा शुं करे? दया वगेरे शुभ ईच्छा करीने हुं परने मददगार थई शकुं छुं अने
हिंसादि पापभावनी ईच्छाथी हुं परने नुकसान करी शकुं छुं–एम अज्ञानी माने छे. हुं परनो जाणनार नहि पण
हुं परने लाभ–नुकसान करनार छुं–एम जेणे मान्युं तेणे पोताना ज्ञानस्वभावनी हिंसा करी छे. जेम स्वच्छ
स्फटिकमां वर्तमान पूरती काळी–राती झांई देखीने मूर्ख माणस ते स्फटिकने ज आखो काळो–रातो मानी ले छे,
पण डाह्यो माणस तो जाणे छे के स्फटिकमां काळी–राती झांई ते क्षणिक छे. स्फटिकनुं मूळ स्वरूप काळुं रातुं नथी.
तेम आत्मानी अवस्थामां क्षणिक पाप के पुण्यना भाव देखीने अधर्मी जीव तो आखा आत्माने ज पुण्य–
पापमय मानी ले छे. पण धर्मी जीव तो जाणे छे के आ पुण्य–पाप वर्तमान पूरता छे, ते पुण्य–पाप जेटलुं
आत्मानुं स्वरूप नथी. आवी श्रद्धा–ज्ञान करीने आत्माना स्वरूपमां एकाग्र थतां विकारनी उत्पत्ति ज थती
नथी. एटले तेणे पोताना आत्माने विकारथी उगारी लीधो, ते परमार्थे अहिंसा धर्म छे. आवा आत्मस्वभावनुं
भान करवुं ते अपूर्व छे. आत्माना भान वगर शुभरागरूप अहिंसा तो जीवे अनंतवार करी, तेमां आत्मानुं
कल्याण नथी. आत्मभान वगर शुभ तेम ज अशुभ भाव करीने अनंतकाळथी जीव चार गतिमां रखडी रह्यो
छे. पापभाव करीने नरक–तिर्यंचगतिमां गयो छे, तेम ज पुण्य भाव करीने मोटो राजा के देव पण अनंतवार
थयो छे, ते कांई अपूर्व नथी. पूर्वे अनंतकाळमां जेटलुं करी चूक्यो छे ते कांई अपूर्व नथी अने तेमां आत्मानुं
कल्याण नथी.
तेने अज्ञानी धर्मनुं कारण मानी बेसे छे, पण भगवान तो कहे छे के अशुभरागनी जेम शुभरागवडे पण
आत्मानी हिंसा थाय छे, अने ते रागथी धर्म माने तेमां तो मिथ्यात्वरूप महा हिंसा, अने ए ज आत्मानुं
भावमरण छे. अनादि काळथी क्षणे क्षणे एवा भावमरणमां जीव मरी रह्यो छे.
कस्तुरियामृगनी डूंटीमां सुगंधी कस्तूरी भरी छे पण तेने तेनो विश्वास नथी, तेथी बाह्यमां भटके छे.