Atmadharma magazine - Ank 078
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २००६ : आत्मधर्म : ११३ :
तेम आत्मानो विकार रहित चिदानंद स्वभाव छे, तेनो विश्वास छोडीने बाह्यमां भमे छे. अंतरना स्वभावनो
विश्वास करीने तेमां एकाग्र थवुं तेनुं नाम धर्म छे, अने ते मोक्षनुं मंगळ छे. मंग एटले पवित्रता, तेने जे लावे
ते मंगळ छे. मंगळनो आ अर्थ अस्तिथी छे. अने मम एटले अहंकार, तेने जे गाळे ते मंगळ छे. आ अर्थ
नास्तिथी छे. जे भावथी आत्मामां पवित्रता पमाय अने अपवित्रता टळे ते भावने मंगळ कहेवाय छे.
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ते मंगळ छे, ते ज अहिंसा छे, ने ते ज उत्कृष्ट धर्म छे.
–आ प्रमाणे मांगळिक कर्युं
हवे श्री पद्मनंदी पंचविंशतीना एकत्व अधिकारनी ५६मी गाथा वंचाय छे; तेमां श्री आचार्यदेव कहे छे
के आत्मामां एकत्व थाय ते ज प्रयोजन छे अने ए ज शांत तथा सुखी थवानो उपाय छे–
एवं सति यदेवास्ति तदस्तु किमिहापरेः।
आसाद्यात्मन्निदं तत्त्वं शान्तो भव सुखी भव।।
५६।।
ए प्रमाणे आत्माना एकत्व स्वभावना चिंतवनथी जे थाय छे ते थाओ, ए सिवाय बीजा विचारोथी
शुं प्रयोजन छे?–ए रीते वास्तविक स्वरूपने पामीने अरे आत्मा! तुं शांत था, तथा सुखी था.–एम ज्ञान
पोताना आत्माने शिक्षा दे छे.
जेम पिता पुत्रने शिखामण आपे के हे भाई! तुं स्व घर छोडीने बहार पर घरमां न जा. तेम अहीं
सम्यग्ज्ञान पोताना आत्माने शिखामण आपे छे के हे आत्मा! पुण्य–पाप रहित एकत्व स्वभावना चिंतवनथी
जे निर्मळ भाव प्रगटे छे ते प्रगटो आत्मस्वभाव सिवाय बीजी चीजोनी चिंताथी तारे आ जगतमां शुं प्रयोजन
छे? अहीं कह्युं के...‘जे थाय छे ते थाओ’ एटले शुं? बीजुं कांई थतुं नथी पण आत्माना एकत्व स्वभावना–
चिंतवनथी तो निर्मळ निर्मळदशा प्रगटीने आत्मामां अभेद थती जाय छे. स्वभावना लक्षे निर्मळ पर्याय थती
जाय छे खरी, पण ते पर्यायो उपर धर्मीनी द्रष्टि नथी. तेथी कह्युं के एकत्व स्वभावना चिंतवनथी जे थाय ते
थाओ एटले के मारो जे निर्मळानंद स्वभाव छे ते प्रगटो, ते सिवाय बीजा कोईनी मारे जरूर नथी.
आत्मा शरीरादिथी भिन्न छे, अने अवस्थामां जे रागादि विकारीभावो अनेक प्रकारना थाय ते पण
आत्माना स्वभावमां नथी. अनंत गुण–पर्यायोथी अभेद एकाकार ज्ञानानंद स्वभाव छे, तेनी श्रद्धा–ज्ञान अने
एकाग्रताथी स्वभावनी दशा प्रगटे तो प्रगटो, ए सिवाय मारे बीजाथी शुं प्रयोजन छे. अहीं ‘स्वभावनी दशा
प्रगटे तो प्रगटो’ एम कहेवामां निर्मळदशा प्रगटवानी शंका नथी, स्वभाव द्रष्टिना जोरे निर्मळदशा तो थाय ज
छे, परंतु ते अवस्था उपर द्रष्टिनी मुख्यता नथी माटे ‘ते दशा प्रगटे तो प्रगटो’ एम कहीने तेनी गौणता करी
छे. जे निर्मळ दशा प्रगटे छे ते पण स्वभाव साथे ज एकता करे छे.
जे ज्ञान जागृत थयुं छे ते पोते पोताना आत्माने अंतरमां समजावे छे के अरे प्रभो! हवे क्यां सुधी
रखडवुं छे? पराश्रय भावे अनादि काळथी रखडी रह्यो छे. शुं हजी चोराशीना अवतारनी रखडपटीना थाक तने
नथी लाग्या? अनादिथी स्वभावने चूकीने पर साथे एकत्वपणुं मान्युं. हवे परथी भिन्नपणुं समजीने आत्मा
तरफ वळ, आत्मा साथे एकता कर. हवे मारे आत्मा जोईए छे, हवे मारे आत्माना चिदानंदमां एकाग्र थवुं
छे.–आवी आत्मानी साची विचारणा पण पूर्वे अनंतकाळमां कदी जागी नथी. सत्समागमे श्रवणनो अवसर
मळ्‌यो त्यारे पण आत्मानी रुचिथी सांभळ्‌युं नथी.
माणसो कहे छे के अमारे पैसा वगर ने अनाज वगर न चाले. अहीं तो आचार्य भगवान कहे छे के हे
जीव! आत्मा सिवाय पर पदार्थोथी तारे शुं प्रयोजन छे? एक आत्माने विषे पर वस्तुओनो सदाय अभाव ज
छे, एटले दरेक आत्माने सदाय पर वस्तु वगर ज चाले छे. दरेक आत्मा पर पदार्थना अभावे ज नभी रह्यो
छे. राग अने विकार वगर न चाले एम पण अज्ञानी माने छे. खरेखर आत्माना स्वभावमां तो राग अने
विकारनो पण अभाव छे. तेथी धर्मी कहे छे के अहो, चिदानंदी भगवान आत्मा सिवाय बीजाथी मारे शुं
प्रयोजन छे? दरेक तत्त्व अनादि अनंत परना अभावे ज नभी रह्युं छे. पण मारे पर वगर न चाले एवी
मिथ्या मान्यता अने राग–द्वेष वगर जीवे अनादिथी अवस्थामां चलाव्युं नथी. पण