विश्वास करीने तेमां एकाग्र थवुं तेनुं नाम धर्म छे, अने ते मोक्षनुं मंगळ छे. मंग एटले पवित्रता, तेने जे लावे
ते मंगळ छे. मंगळनो आ अर्थ अस्तिथी छे. अने मम एटले अहंकार, तेने जे गाळे ते मंगळ छे. आ अर्थ
नास्तिथी छे. जे भावथी आत्मामां पवित्रता पमाय अने अपवित्रता टळे ते भावने मंगळ कहेवाय छे.
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्र ते मंगळ छे, ते ज अहिंसा छे, ने ते ज उत्कृष्ट धर्म छे.
हवे श्री पद्मनंदी पंचविंशतीना एकत्व अधिकारनी ५६मी गाथा वंचाय छे; तेमां श्री आचार्यदेव कहे छे
आसाद्यात्मन्निदं तत्त्वं शान्तो भव सुखी भव।।
पोताना आत्माने शिक्षा दे छे.
जे निर्मळ भाव प्रगटे छे ते प्रगटो आत्मस्वभाव सिवाय बीजी चीजोनी चिंताथी तारे आ जगतमां शुं प्रयोजन
छे? अहीं कह्युं के...‘जे थाय छे ते थाओ’ एटले शुं? बीजुं कांई थतुं नथी पण आत्माना एकत्व स्वभावना–
चिंतवनथी तो निर्मळ निर्मळदशा प्रगटीने आत्मामां अभेद थती जाय छे. स्वभावना लक्षे निर्मळ पर्याय थती
जाय छे खरी, पण ते पर्यायो उपर धर्मीनी द्रष्टि नथी. तेथी कह्युं के एकत्व स्वभावना चिंतवनथी जे थाय ते
थाओ एटले के मारो जे निर्मळानंद स्वभाव छे ते प्रगटो, ते सिवाय बीजा कोईनी मारे जरूर नथी.
एकाग्रताथी स्वभावनी दशा प्रगटे तो प्रगटो, ए सिवाय मारे बीजाथी शुं प्रयोजन छे. अहीं ‘स्वभावनी दशा
प्रगटे तो प्रगटो’ एम कहेवामां निर्मळदशा प्रगटवानी शंका नथी, स्वभाव द्रष्टिना जोरे निर्मळदशा तो थाय ज
छे, परंतु ते अवस्था उपर द्रष्टिनी मुख्यता नथी माटे ‘ते दशा प्रगटे तो प्रगटो’ एम कहीने तेनी गौणता करी
छे. जे निर्मळ दशा प्रगटे छे ते पण स्वभाव साथे ज एकता करे छे.
नथी लाग्या? अनादिथी स्वभावने चूकीने पर साथे एकत्वपणुं मान्युं. हवे परथी भिन्नपणुं समजीने आत्मा
तरफ वळ, आत्मा साथे एकता कर. हवे मारे आत्मा जोईए छे, हवे मारे आत्माना चिदानंदमां एकाग्र थवुं
छे.–आवी आत्मानी साची विचारणा पण पूर्वे अनंतकाळमां कदी जागी नथी. सत्समागमे श्रवणनो अवसर
मळ्यो त्यारे पण आत्मानी रुचिथी सांभळ्युं नथी.
छे, एटले दरेक आत्माने सदाय पर वस्तु वगर ज चाले छे. दरेक आत्मा पर पदार्थना अभावे ज नभी रह्यो
छे. राग अने विकार वगर न चाले एम पण अज्ञानी माने छे. खरेखर आत्माना स्वभावमां तो राग अने
विकारनो पण अभाव छे. तेथी धर्मी कहे छे के अहो, चिदानंदी भगवान आत्मा सिवाय बीजाथी मारे शुं
प्रयोजन छे? दरेक तत्त्व अनादि अनंत परना अभावे ज नभी रह्युं छे. पण मारे पर वगर न चाले एवी
मिथ्या मान्यता अने राग–द्वेष वगर जीवे अनादिथी अवस्थामां चलाव्युं नथी. पण