Atmadharma magazine - Ank 078
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 25

background image
: ११४ : आत्मधर्म : चैत्र : २००६ :
ते मिथ्यामान्यता अने राग–द्वेष एक समय पूरता ज छे. ते एक समयना विकारनो त्रिकाळी स्वभावमां
अभाव छे. जो त्रिकाळी स्वभावमां तेनो अभाव न होय तो ते कदी टळी शके नहि. माटे विकार वगर पण
आत्माना स्वभावने नभी रह्युं छे. आम परथी भिन्न अने विकार रहित स्वभावनी प्रतीत तथा भावना करवी
तेने भगवान धर्म कहे छे.
पहेलांं जेम छे तेम यथार्थ वस्तु स्वरूप जाणवुं जोईए. आत्मानो स्वभाव शुं? अने विकार शुं? तथा ते
विकारनी मर्यादा केटली छे? लोको एम माने छे के आपणे ईच्छाशक्तिथी पर पदार्थोनां कार्य करी शकीए. ए
मान्यता तद्न भ्रम छे. आत्मा पोतानी अवस्थामां ईच्छा करी शके, परंतु ते ईच्छा वडे परमां कांई पण फेरफार
करवा आत्मा समर्थ नथी. तेम ज ईच्छा ते दोष छे–विकार छे, तेनाथी आत्माने किंचित् लाभ थतो नथी. हजी
जेने परनां कार्य करवानुं अभिमान छे तेणे तो परथी भिन्न पण आत्माने मान्यो नथी, तो पछी ईच्छाथी पण
पार आत्माने ते क्यांथी जाणे? पर पदार्थोथी त्रिकाळ जुदो तेम ज क्षण पूरती ईच्छाथी पण रहित चिदानंद
स्वभाव छे, ते स्वभावनी समजण करो, श्रद्धा करो, रुचि करो, विश्वास करो. ए स्वभावनी भावनाथी ज
निर्मळ दशा प्रगटे छे. माटे ते स्वभावनी भावना सिवाय अन्य कोई पदार्थोनुं शुं प्रयोजन छे?
आ एकत्व अधिकार छे. वर्तमान अवस्थानुं स्वभाव साथे एकत्व थाय ते ज धर्म छे. पर साथे अने
विकार साथे एकत्व मानीने अनादिथी भटकी रह्यो छे. हे आत्मा! हवे बस थई. हवे अंतरमां ठर रे ठर.
अंतरना एकत्वनो विचार कर. बहारना विचार तो अनंतकाळ कर्या. हवे समजणना घरमां आव. चैतन्यनी
साची समजणना रस्ता ले. हे आत्मा! तारी ऊंधी मान्यतामां तें अनंत अवतारो कर्या, पण क्यांय तारो आरो
आव्यो नहि. हवे तुं आत्मानी श्रद्धा, ज्ञान अने एकाग्रतानो रस्तो लईने शांत था, सुखी था. –आ प्रमाणे
आत्मानुं ज्ञान आत्माने वारंवार शिक्षा दई रह्युं छे. अहीं ‘ज्ञान आत्माने शिक्षा दई रह्युं छे’ –एम कहेवामां
एवो आशय आवी जाय छे के आत्मा ज्यारे सत्य समजे छे त्यारे ते पोताना ज्ञानथी ज समजे छे. कोई बीजा
संभळावनार वगेरे परथी समजतो नथी. तीर्थंकर वगेरे पर तो अनंतकाळमां मळ्‌या, साक्षात् तीर्थंकर
भगवाननो उपदेश सांभळ्‌यो, छतां पोते न समज्यो. समजनार पोते पोताना ज्ञानथी न समजे तो पर
निमित्तो तेने शुं करे? माटे हे जीव! हवे तुं तारा ज्ञानथी समज. अत्यार सुधी पोते समजणनी लायकात प्रगट
न करी तेथी न समज्यो. कोई निमित्त न मळ्‌या तेथी न समज्यो–एम नथी. हवे तुं पोते तारा ज्ञानथी समजे
तो समजाय तेवुं छे. आत्माना एकत्व स्वभावना आश्रये ज शांत अने सुखी थवाय छे. माटे हे जीव! तुं
आत्मानी समजण करीने सुखी अने शांत थवानो रस्तो अंतरमां ले.
ब्रह्यचर्य – प्रतिज्ञा
(१) सौराष्ट्रमां पू. गुरुदेवश्रीना विहार दरमियान तेओश्री ववाणिया पधार्या ते प्रसंगे माह वद ३ ने
रविवारना रोज ववाणियाना भाईश्री प्राणजीवन जसराज दोशी तथा तेमना धर्मपत्नी समजुबेन–ए बंनेए
सजोडे आजीवन ब्रह्यचर्य प्रतिज्ञा–पू. गुरुदेवश्री पासे ‘श्रीमद् राजचंद्र जन्मस्थानभुवन’मां अंगीकार करी छे.
आ माटे तेमने धन्यवाद.
(२) सौराष्ट्रमां पू. गुरुदेवश्रीना विहार दरमियान तेओश्री मोरबी पधार्या ते प्रसंगे महा वद ५ ने
मंगळवारना रोज भाईश्री रतिलाल माणेकचंद संघवी तथा तेमना धर्मपत्नी कस्तुरबेन–ए बंनेए सजोडे
आजीवन ब्रह्यचर्य प्रतिज्ञा पू. गुरुदेवश्री पासे अंगीकार करी छे. ते माटे तेमने धन्यवाद.
[उपरना बंने समाचार गया अंकमां छापवा रही गया ते माटे वांचको क्षमा करे.]
(३) राजकोट शहेरमां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव दरमियान फागण सुद ११ ना रोज दीक्षा
कल्याणक प्रसंगे राजकोटना भाईश्री धीरजलाल नाथालाल शाह तथा तेमना धर्मपत्नी मरघाबेन–ए बंनेए
सजोडे पू. गुरुदेवश्री पासे आजीवन ब्रह्यचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे. ते माटे तेमने धन्यवाद! ए सिवाय
एक वीरमगामना भाई तथा बीजा एक मारवाडीभाई–ए बंनेए पण सजोडे ब्रह्यचर्य प्रतिज्ञा पू. गुरुदेवश्री
पासे लीधी छे. तेमने पण धन्यवाद.