वर्तमानमां सौराष्ट्र देशमां श्री जिनेन्द्र शासननी प्रभावनानो महान सुअवसर प्रवर्ती रह्यो छे. परम
श्रुतगंगानो प्रवाह रेलावी रह्या छे, अने पोतानुं ऊंडुं आध्यात्मिक ज्ञान भव्य जीवोने आपी रह्या छे; तेथी
आजे सौराष्ट्रमां ठेर ठेर तत्त्वचर्चा चाले छे. अने अनेक पात्र जीवो साचुं तत्त्वज्ञान समजता थया छे. जेम जेम
लोको सत्य तत्त्वज्ञान समजता जाय छे तेम तेम श्री वीतराग शासनना देव–गुरु–शास्त्र प्रत्ये तेमने बहुमान
अने भक्ति जागता जाय छे. अने श्री वीतरागी देव–गुरु–शास्त्रनी प्रभावना दिन दिन वधती जाय छे. एना
परिणामे सौराष्ट्रमां अनेक स्थळे श्री वीतरागी जिनबिंबनी स्थापना थई छे. ए रीते सौराष्ट्र देशमांथी श्री
जिनेन्द्र शासनना जयनाद गाजी रह्या छे.
एकमना रोज पू. गुरुदेवश्री राजकोट पधार्या. ते वखते समस्त मुमुक्षु संघे भावभर्युं भव्य स्वागत कर्युं हतुं. पू.
गुरुदेवश्री मंडपमां पधार्या त्यारे शेठ श्री नानालालभाई वगेरे ए पोतानी खास भक्ति व्यक्त करी हती.
मूळनायक तरीके भगवान श्री सीमंधर प्रभु हता. अने पंचकल्याणकमां विधिनायक तरीके श्री चंद्रप्रभ भगवान
हता. महत्त्वशाळी अंकन्यास विधि (के जे विधि थया बाद प्रतिमाओ पूजनीक बने छे ते) परम पूज्य
सद्गुरुदेवश्री कानजी स्वामीना शुभहस्ते थयो हतो. प्रतिष्ठा करावनार तरीके मुख्य शेठश्री नानालालभाई
तेमज अन्य मुमुक्षु गृहस्थो हता. अने प्रतिष्ठानी विधि कराववा माटे ईंदोरथी प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री मुन्नालालजी
साहेब पधार्या हता. तेमणे शास्त्रविधि अनुसार प्रतिष्ठाविधि सारी रीते करावी हती. देशोदेशना मुमुक्षु जनोए
उत्साह वडे आ अमूल्य अवसरने दीपाव्यो हतो. अने अजमेरनी भजनमंडळीए भक्तिनी रमझट द्वारा ए
उत्सवने विशेष दीपाव्यो हतो. प्रतिष्ठाविधि दरमियान थयेला कार्यक्रमनी टूंक यादी अहीं आपी छे.
छठ्ठ सुधी चाल्युं हतुं.
फागण सुद पांचमने दिवसे बपोरे नंदि विधान थयुं. ते प्रसंगे सौधर्म वगेरे ईन्द्रोने पू. गुरुदेवश्रीना
व्यक्त करतां जणाव्युं हतुं के–......
द्रृढतापूर्वक कहता हूं कि यदि आत्माका ज्ञान और ध्यान करना हो तो तुम्हारा मुख सोनगढकी सन्मुख
फेरना पडेगा।