त्यारे ए पवित्र आत्माओद्वारा थती पवित्र धामनी शुद्धिना उल्लासमां मंदिरनुं वातावरण गूंजी रह्युं हतुं.
द्वारा मातानी सेवा वगेरे द्रश्य हतुं.
जवाब आपे छे–ए वगेरे द्रश्यो थया हता.
देवीओ भगवानना जन्मनी वधाई आपे छे, मंगळ गीत गाय छे, चारे बाजु मंगळ नाद गाजी ऊठे छे.
प्रभुजन्मना उत्साहमां देवांगनाओ नृत्य करे छे. ईन्द्र–ईन्द्राणी जन्मोत्सव करवा आवे छे, अने बाळ भगवान
चंद्रप्रभुने मेरु पर्वत उपर लई जाय छे. जन्माभिषेक करवा माटे भगवानने मेरु उपर लई जती वखतनो
महान भव्य वरघोडो नीकळ्यो हतो. एक सुंदर हाथी उपर बाल–प्रभुजी बिराजता हता, चारे बाजु ईन्द्र–
ईन्द्राणी भक्ति करता हता. अने साथे हजारो मुमुक्षुओनो संघ आनंदथी पांडुक शीला तरफ जई रह्यो हतो. आ
प्रसंगे अजमेरनी भजन मंडळीए प्रभु सन्मुख भक्ति अने नृत्य द्वारा साराय शहेरमां श्री जिनेन्द्र जन्म
कल्याणकानो महिमा फेलावी दीधो हतो. ज्युबीली बागमां एक ऊंचा मेरु पर्वतनी रचना करवामां आवी हती.
भगवानने ते मेरुपर्वत उपर बिराजमान करीने ईन्द्रोए जन्माभिषेक शरू कर्यो. अभिषेक करवा माटे भक्तोनां
टोळां उल्लसी रह्यां हतां, ए द्रश्य सुंदर हतुं. भगवानना आत्माए जन्म पूरा करी लीधा, हवे एने फरीथी आ
संसारमां जन्म नहि थाय. एक छेल्लो जन्म हतो ते पूरो करी भगवान जन्मरहित थई गया. अपूर्व
आत्मदर्शनना प्रतापे तेमने जन्ममरणनो अंत आव्यो. एवा भगवानना भवरहितपणानो आ महोत्सव
उजवाय छे. जन्माभिषेक बाद ईन्द्राणीए बालप्रभुने वस्त्रालंकार पहेराव्या अने रथयात्रा पाछी फरी.
हतुं के अहा! आ पारणे झूलता बाळकनो आत्मा ज्ञानी छे, ए मोटो थईने मुनि थशे ने आत्माना आनंदमां
झूलतां झूलतां संसारथी मुक्त थशे.
राज्य दरबार भरायो. राजदरबारमां देशोदेशना महाराजाओ आव्या हता अने उत्तम उत्तम वस्तुओ लावीने
भक्तिपूर्वक भेट करता हता.
लौकांतिक देवो आवीने प्रभुनी स्तुति करे छे अने तेमना वैराग्यनी पुष्टि करे छे के ‘अहो वैराग्यमूर्ति भगवान!
आ भव, तन अने भोगने अनित्य जाणीने आत्माना चिदानंद स्वभावमां पूर्णपणे समाई जवा माटे आप श्री
जे पवित्र भावना भावी रह्या छो तेने शीघ्र अमलमां मूको....भगवती जिनदिक्षा धारण करीने अप्र्रमत्त अने
प्रमत्त भावमां झूलती पवित्र दशा प्रगट करो...अने अप्रतिहत भावे केवळज्ञान प्रगटावी आपना दिव्यध्वनि