Atmadharma magazine - Ank 078
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 25

background image
: ११६ : आत्मधर्म : चैत्र : २००६ :
ईन्द्र–ईन्द्राणीए तथा देवीओए वेदीनी शुद्धि कर्या बाद, पू. पवित्र बेनोना शुभ हस्ते ज्यारे वेदीनी शुद्धि थई
त्यारे ए पवित्र आत्माओद्वारा थती पवित्र धामनी शुद्धिना उल्लासमां मंदिरनुं वातावरण गूंजी रह्युं हतुं.
फागण सुद सातमने दिवसे सवारे आचार्यनिमंत्रण थयुं तथा ईन्द्राभिषेक अने ईन्द्रप्रतिष्ठा थई.
त्यारबाद ईन्द्रोनुं भव्य सरघस नीकळ्‌युं. बपोरे नंदिश्वर–विधान पूर्ण थईने श्री जिनेन्द्र अभिषेक थयो.
फागण सुद आठमना रोज याग्मंडल विधान थयुं. अने रात्रे श्री चंद्रप्रभ भगवानना गर्भकल्याणकनी
पूर्वक्रियानुं द्रश्य थयुं हतुं. तेमां प्रभुजी माताना गर्भमां आव्या पहेलांं छ महिना सुधी रत्नवर्षा अने देवीओ
द्वारा मातानी सेवा वगेरे द्रश्य हतुं.
फागण सुद नोमने दिवसे सवारे गर्भकल्याणकनुं द्रश्य हतुं. तेमां माताजीने सोळ स्वप्नो आवे छे,
दिग्कुमारी देवीओ माताजीनी सेवा करे छे, माताने तत्त्वचर्चाना प्र्रश्रो पूछे छे, ने माता तेना विद्वता भरेला
जवाब आपे छे–ए वगेरे द्रश्यो थया हता.
जन्म कल्यणक महत्सव
फागण सुद १० ना रोज सवारे ७ थी १२ सुधी जन्मकल्याणक महोत्सव थयो हतो. ए प्रसंग घणा
उत्साहथी भव्य रीते उजवायो हतो. लक्ष्मणादेवी माताजीनी कुंखे भगवान श्री चंद्रप्रभस्वामीनो जन्म थाय छे,
देवीओ भगवानना जन्मनी वधाई आपे छे, मंगळ गीत गाय छे, चारे बाजु मंगळ नाद गाजी ऊठे छे.
प्रभुजन्मना उत्साहमां देवांगनाओ नृत्य करे छे. ईन्द्र–ईन्द्राणी जन्मोत्सव करवा आवे छे, अने बाळ भगवान
चंद्रप्रभुने मेरु पर्वत उपर लई जाय छे. जन्माभिषेक करवा माटे भगवानने मेरु उपर लई जती वखतनो
महान भव्य वरघोडो नीकळ्‌यो हतो. एक सुंदर हाथी उपर बाल–प्रभुजी बिराजता हता, चारे बाजु ईन्द्र–
ईन्द्राणी भक्ति करता हता. अने साथे हजारो मुमुक्षुओनो संघ आनंदथी पांडुक शीला तरफ जई रह्यो हतो. आ
प्रसंगे अजमेरनी भजन मंडळीए प्रभु सन्मुख भक्ति अने नृत्य द्वारा साराय शहेरमां श्री जिनेन्द्र जन्म
कल्याणकानो महिमा फेलावी दीधो हतो. ज्युबीली बागमां एक ऊंचा मेरु पर्वतनी रचना करवामां आवी हती.
भगवानने ते मेरुपर्वत उपर बिराजमान करीने ईन्द्रोए जन्माभिषेक शरू कर्यो. अभिषेक करवा माटे भक्तोनां
टोळां उल्लसी रह्यां हतां, ए द्रश्य सुंदर हतुं. भगवानना आत्माए जन्म पूरा करी लीधा, हवे एने फरीथी आ
संसारमां जन्म नहि थाय. एक छेल्लो जन्म हतो ते पूरो करी भगवान जन्मरहित थई गया. अपूर्व
आत्मदर्शनना प्रतापे तेमने जन्ममरणनो अंत आव्यो. एवा भगवानना भवरहितपणानो आ महोत्सव
उजवाय छे. जन्माभिषेक बाद ईन्द्राणीए बालप्रभुने वस्त्रालंकार पहेराव्या अने रथयात्रा पाछी फरी.
बपोरे १ाा थी २ाा भगवान श्री चंद्रकुंवरनुं पारणुं झुलाववानी क्रिया थई. माताजी अने देवीओ
भक्तिपूर्वक भगवानने झूलावी रही हती. सोना–चांदीना पारणीये झूली रहेला ए भगवानने जोतां एम थतुं
हतुं के अहा! आ पारणे झूलता बाळकनो आत्मा ज्ञानी छे, ए मोटो थईने मुनि थशे ने आत्माना आनंदमां
झूलतां झूलतां संसारथी मुक्त थशे.
रात्रे युवराजश्री चंद्रप्रभकुमारनो राज्याभिषेक थयो. ईन्द्रोए राज्याभिषेक कर्यो अने महासेन
महाराजाए पोतानो राजमुकुट उतारीने श्री चंद्रप्रभकुमारने पहेराव्यो. त्यारबाद महाराजा श्री चंद्रप्रभकुमारनो
राज्य दरबार भरायो. राजदरबारमां देशोदेशना महाराजाओ आव्या हता अने उत्तम उत्तम वस्तुओ लावीने
भक्तिपूर्वक भेट करता हता.
दीक्षा कल्याणक महोत्सव
फागण सुद अगीयारसना दिवसे भगवानना वैराग्यनो अने दीक्षा कल्याणकनो पवित्र उत्सव हतो.
भगवानने वैराग्य थतां अंतरमां बार भावनाओनुं चिंतवन करे छे. भगवानना वैराग्यनी खबर पडतां ज
लौकांतिक देवो आवीने प्रभुनी स्तुति करे छे अने तेमना वैराग्यनी पुष्टि करे छे के ‘अहो वैराग्यमूर्ति भगवान!
आ भव, तन अने भोगने अनित्य जाणीने आत्माना चिदानंद स्वभावमां पूर्णपणे समाई जवा माटे आप श्री
जे पवित्र भावना भावी रह्या छो तेने शीघ्र अमलमां मूको....भगवती जिनदिक्षा धारण करीने अप्र्रमत्त अने
प्रमत्त भावमां झूलती पवित्र दशा प्रगट करो...अने अप्रतिहत भावे केवळज्ञान प्रगटावी आपना दिव्यध्वनि