: चैत्र : २००६ : आत्मधर्म : ११७ :
द्वारा जगतना भव्य जीवोने माटे मोक्षमार्गनां दरवाजा खूल्लां करो...ईत्यादि.’
त्यारबाद दीक्षा कल्याणक ऊजववा माटे ईन्द्रो पालखी लईने आवे छे अने वैराग्यनी साक्षात् मूर्ति
भगवान चंद्रप्रभु दीक्षा लेवा माटे तपोवनमां जई रह्या छे. (तपोवन अने दीक्षानुं द्रश्य राजमहेलना
चोगानमां थयुं हतुं.) भगवान दीक्षा लेवा माटे तपोवनमां जई रह्या हता ते वखतना दीक्षायात्राना वरघोडानुं
द्रश्य घणुं भावना भरेलुं हतुं. भगवाननी साथे साथे वैराग्य भावनामां मग्न भक्तजनो तप कल्याणकनुं
स्तवन गातां गातां जई रह्या हता के–
वंदो वंदो परम वीरागी त्यागी जिनने रे.
थाये जिन दिगंबर मुद्राधारी देव... श्री चंद्रप्रभुजी तपोवनमां संचरे रे...
दीक्षावनमां जईने प्रभुजी एक वृक्ष नीचे बिराजमान थया. थोडी वारमां एक पछी एक राजवस्त्रो
त्यागीने नग्न जिनमुद्रा धारण करी. पू. गुरुदेवश्रीए प्रभुश्रीनो केशलोच कर्यो. दीक्षा बाद प्रभुश्री आत्मध्यानमां
लीन थया अने तरत ज मनःपर्ययज्ञान प्रगट्युं. पछी ए मुनिराज तो वनमां विहार करी गया...
प्रभुश्रीनो दीक्षाविधि पूरो थया बाद त्यां दीक्षावनमां ज पू. गुरुदेवश्रीए दीक्षा कल्याणक प्रसंगने शोभतुं
प्रवचन कर्युं हतुं. ए प्रवचनमां वैराग्यभावनाने खूब मलावी हती.
व्याख्यान बाद ए तपोवनमां ज भाई श्री धीरजलाल नाथालालभाई तथा मरघाबेने सजोडे ब्रह्यचर्य
प्रतिज्ञा अंगीकार करीने ए वैराग्य प्रसंगने दीपाव्यो हतो.
ए प्रमाणे प्रभुश्रीनो दीक्षा कल्याणक विधि थई हती.
बपोरे लगभग ११ वागे प्रभुश्री चंद्रप्रभ मुनिराज आहार माटे शहेरमां पधार्या. प्रभुश्रीने प्रथम
आहारदाननो महामंगळ प्रसंग शेठश्री नानालालभाईने त्यां थयो हतो.
अंकन्यास विधि
बपोरे बे वागे श्री जिन प्रतिमाओ उपर अंकन्यास विधि करवा माटे पू. गुरुदेवश्री पधार्या. अने महा
पवित्र जिन प्रतिमाओ उपर, महा पवित्र भावथी, पवित्र हस्ते अंकन्यास विधि करी अने त्यारथी ते श्री जिन
प्रतिमाओ पूजनिक बन्या. ए रीते अंकन्यास विधि प्रतिष्ठा विधानमां घणी महत्त्वनी छे. ते अंकन्यास विधि
बाद सर्वे प्रतिमाओ उपर नेत्रोन्मिलन विधि पू. गुरुदेवश्रीए करी हती.
केवळज्ञान कल्याणक महोत्सव
फागण सुद १२ नी सवारे प्रथम केवळज्ञान कल्याणक उत्सव थयो हतो. प्रभुश्री क्षपकश्रेणी पर आरूढ
थईने, कर्मक्षय करी केवळज्ञान प्रगट करे छे. अने ईन्द्रो समवसरणनी रचना करे छे. तथा प्रभुजीनुं पूजन करे
छे. आ प्रसंगे समवसरणनी सुंदर रचना थई हती. समवसरणमां भगवानना दिव्यध्वनि तरीकेनुं खास
प्रवचन फागण सुद ११ ना रोज पू. गुरुदेवश्रीए कर्युं हतुं.
निर्वाण कल्याणक महोत्सव
त्यारबाद केटलोक काळ विहार करीने प्रभुश्री सम्मेदशेखरजी सिद्धक्षेत्र पर आवीने योग निरोध करे छे.
आ प्रसंगे सम्मेदशिखरजीनी भव्य रचना थई हती. श्री सम्मेदशिखरजी उपरथी भगवान निर्वाण पधारे छे.
अने अग्निकुमार वगेरे देवो आवीने निर्वाण कल्याणक विधि करे छे. ईत्यादि द्रश्यो थया हता.
अहीं प्रभुश्रीना पंचकल्याणक पूर्ण थया.
त्यारबाद पू. गुरुदेवश्रीना पुनित प्रतापे प्रतिष्ठित थयेला श्री सीमंधर भगवान वगेरे जिनबिंबोनी श्री
जिनमंदिरमां पधरामणी थई. अने पू. गुरुदेवश्रीए पवित्र भावे प्रभुजीनुं स्वागत करीने तेओश्रीने वेदी उपर
बिराजमान कर्या. ए वखते मंगळ जयनादथी मंदिर गाजी ऊठयुं हतुं. मूळनायक भगवानश्री सीमंधर प्रभुजी
छे. तेओश्रीनी जमणी बाजु श्री आदिनाथ प्रभु अने डाबी बाजु श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी बिराजमान छे. ए
उपरांत श्री चंद्रप्रभ भगवान (चांदीना), श्री महावीर भगवान, श्री अरनाथ भगवान तेम ज श्री सिद्ध
भगवानना प्रतिमाजी छे. अने उपरना भागमां श्री नेमनाथ प्रभुजी छे तथा तेओश्रीनी जमणी बाजु श्री
पद्मप्रभुजी अने चंद्रप्रभुजी छे. तथा डाबी बाजु श्री शांतिनाथ प्रभु अने कुंथुनाथ प्रभु बिराजमान छे.