आत्मानी निर्विकारी शुद्ध दशा छे. सिद्ध भगवान जेवो परमानंदनो अंश छे. लोको बाह्य जडनी क्रियामां के
पुण्यमां धर्म माने छे ते अज्ञान छे, भ्रम छे. तेनाथी जीवनुं परिभ्रमण मटे नहि.
देखनार–आनंद–स्वरूप छुं. मारा त्रिकाळी स्वरूपमां भव नथी. मात्र वर्तमान हालतमां विकार छे ते मारुं खरुं
स्वरूप नथी. तेथी विकार अने तेनुं फळ–भव मारे जोतां नथी.
वळी सामा जीवने दुःख के सुख बाह्य संयोगोने कारणे नथी. पर पदार्थथी मने सुख–दुःख थाय छे एवी अज्ञान
मान्यताथी, परमां सुख–दुःखनी कल्पना करे छे. खरेखर ते कल्पना तेने कल्पित सुख
एवी मान्यता तद्न भ्रम छे. वळी तेने माटे भवनी मागणी जे करे ते पण तद्न मूढ छे. बधा जीवो साचुं
समजवानो पुरुषार्थ न करे. कोई अल्प जीवो सत्य समजवानो पुरुषार्थ करे अने तेमनो भव अंत थाय. माटे
जीवे पोतानुं कल्याण करवा माटे पोतानुं स्वरूप समजीने परिभ्रमणनो अंत करवो. माटे भव ज न जोईए,
भव अंतना आ टाणां आव्यां छे. साचुं समजवाना टाणां आव्यां छे, त्यां अंतर समजवानो पुरुषार्थ करे तो
शीघ्र भवनो अंत थई जाय. वळी लोको माने छे के परनुं कंई भलुं करीए. पण भाई! परनुं भलुं कोण करी शके
छे? सौथी नजीकमां रहेला आ शरीरमां कोढनां चांदणां थया होय तेने पण फेरवी नथी शकतो तो पछी दूर एवा
पर पदार्थोमां ते शुं करे? शुं तेने कोढनां चांदणां राखवानो भाव छे? चांदणा शरीरनी अवस्था छे. शरीरने–ते
परमाणुओने–जे समये जे रूपे परिणमवुं होय तेम परिणमे छे. अचेतन जड शरीर पोतानी अवस्था बदलवाने
स्वतंत्र छे. तेमां बीजा कोईनो हाथ काम न करे एटले के तेने बीजो कोई पदार्थ पलटावी शके नहि, माटे हे
जीव! परना करवापणानी मान्यता ने तुं छोड! ते अज्ञान मान्यता छोडवी ए राग–द्वेष वगेरेने छोडवा ते
निर्ग्रंथनो पंथ–भवना नाशनो उपाय छे.
वळी केटलाक माने छे के, भगवान–ईश्वर भव आपे स्वर्ग आपे, ते वात साची नथी. भगवान तो
कल्पो तो भगवान सर्वना साक्षी–ज्ञाता अने निर्दोष–राग–विकार रहित रहेता नथी, भगवान दोषी थई जाय,
पण एम बनतुं नथी. माटे भगवान सर्वज्ञ, ईच्छा रहित, वीतराग छे. ते कोईने स्वर्ग आदि आपे नहि.
स्वर्गादि गति जीव पोताना शुभादि परिणामथी प्राप्त करे छे.
आवतो के, ‘मारे आ भव–आ परिभ्रमण न जोईए.’ आत्मा पर पदार्थना आश्रय रहित स्वतंत्र