Atmadharma magazine - Ank 079
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: १३० : आत्मधर्म : वैशाख : २००६ :
श्री महावीर प्रभुना आत्मानुं जीवन
राजकोट: वीर सं. २४७६ चैत्र सुद १३ ना रोज महावीरप्रभुना जन्मकल्याणक प्रसंगे महावीर भगवाना जीवन उपर
पू. गुरुदेवश्रीनुं खास प्रवचन. [श्री समयसारजी गाथा ७]
आजे भगवान महावीरना जन्मकल्याणकनो दिवस छे. भगवाननो जन्म तो अढी हजार वर्ष पहेलांं थयो
त्यारे थयो हतो, पण वर्तमान ज्ञानमां तेने याद करीने ‘आजे भगवाननो जन्म थयो’ एम आरोपथी कहेवाय छे.
भगवान महावीर एटले शुं? अने तेनुं जीवन शुं? ते कहेवाय छे.
भगवान महावीर एक आत्मा हता; अने ते पण पहेलांं बधा जीवोनी जेम संसारी हता. पछी आत्मानुं
अंतरमां भान कर्युं. पहेलांं ते भान न हतुं, पण महावीर थया पहेलाना अमुक भवमां ते भान कर्युं. आत्मस्वभावनी
अंर्तद्रष्टिवडे, पहेलांं जे पुण्य–पापनी सन्मुख द्रष्टि हती तेने भेदीने, स्वभाव–सन्मुखनी अभेदद्रष्टि करतां प्रथम
आत्मज्ञान थयुं; त्यारथी महावीरना आत्माने धर्मनी भूमिका शरू थई.
आ भगवानना आत्मानुं जीवन कहेवाय छे. भगवाने कोईनुं कर्युं नथी. भगवाने पोताना आत्मामां
धर्मजीवननी दशा कई रीते प्रथमथी शरू करीने पूरी करी? –ते ज भगवान महावीरनुं जीवनचरित्र छे. भगवान
महावीर अने दरेक आत्मा अनादिअनंत छे. महावीर भगवानना जीवे अनादिथी संसारमां रखडतां रखडतां, महावीर
थया पहेलाना भवोमां आत्मानुं केवुं भान कर्युं हतुं, ते वातनो आ अधिकार चाले छे.
शरीर–मन–वाणी तेम ज कर्मो जड छे, तेनो हुं कर्ता नथी; हुं अखंडानंद चैतन्यकंद छुं. –एम परसन्मुखद्रष्टि
तोडीने स्वभावसन्मुख एकत्वबुद्धि प्रगट करी त्यारे भगवानना आत्माने धर्मजीवननी शरूआत थई.
भगवान महावीर स्वर्गमांथी आवीने त्रिशलामातानी कूंखे अवतर्या–एम कहेवुं ते
संयोगनुं कथन छे. खरेखर भगवाननो आत्मा शरीरपणे जन्म्यो नथी. भगवाननो आत्मा
सम्यग्द्रष्टि हतो, आत्माना स्वभावनी अंर्तद्रष्टि वडे क्षणे क्षणे ते निर्मळ पर्यायनी उत्पति करतो
हतो. स्वर्गमां हता त्यारे पण भगवाननो आत्मा निर्मळपर्यायपणे ज ऊपजतो हतो; अने
माताना पेटमां आव्या त्यारे पण ते स्थानरूपे आत्मा ऊपज्यो नथी पण निर्मळपर्यायनी
उत्पत्तिना स्थानमां ज ऊपज्यो छे. ज्यारथी भगवान आत्मानी द्रष्टि थई त्यारथी क्षणे क्षणे
वीतरागी निर्मळदशापणे ज आत्मानो जन्म (–उत्पाद) थया करे छे.
वर्तमान अवस्थाए स्वभावसन्मुख थईने एकत्व कर्युं त्यारथी आत्मा समये समये वीतरागीदशामां उत्पन्न
थया ज करे छे, –जन्म्या ज करे छे. आवो धर्मीनो जन्म छे. अज्ञानी जीव क्षणे क्षणे रागनी उत्पत्ति करीने रागपणे
जन्मे छे. शरीरपणे तो कोई जीव थई जतो नथी. भगवान महावीर त्रिशला माताना पेटमां जन्म्या–एम कहेवुं ते
उपचारनुं कथन छे. भगवाननो आत्मा माताना पेटमां आव्यो त्यारथी ज्ञानी हतो, ते क्षणे पण सम्यग्दर्शन अने
ज्ञाननी नवीन पर्यायपणे ज ते आत्मा उत्पन्न थया करतो हतो. जे क्षणे शरीरनी पर्याप्तिना परमाणुओ बंधाता हता
ते क्षणे पण ‘शरीरनी पर्यायनो हुं कर्ता, ने ते मारुं कार्य’ –एम भगवान मानता न हता.
ज्यां सम्यक् आत्मानुं वेदन थयुं के हुं वर्तमान अंश जेटलो नथी, रागादि ते मारुं स्वरूप नथी, हुं अखंड
चैतन्यमूर्ति छुं; त्यां ते आत्मामां, स्वभाव कर्ता थईने वीतरागी परिणामरूप कार्य शरू थयुं. पछी ते जीव माताना
पेटमां के जन्म वखते पण आत्मामां निर्मळ श्रद्धा–ज्ञानरूप वीतरागी परिणामपणे ज ऊपजे छे. खरेखर आत्मा तो
आत्मामां ज हतो, आत्मा सवा नव महिना माताना पेटमां रह्यो–एम कहेवुं ते संयोगनुं कथन छे, स्वभावनुं कथन
नथी. जेटलुं संयोगनुं कथन आवे तेनो आशय एम समजवो के खरेखर एम वस्तुनुं स्वरूप नथी, पण संयोगी बीजी
चीजनुं ज्ञान कराववा माटे ते कथन छे.
धर्मी आत्मा कर्ता थईने पोतानी निर्मळपर्यायनुं कार्य करे छे; जीव शरीरनी पर्याप्तिने बांधे–ए वात खोटी छे.
शरीरनुं कार्य थाय तेनो कर्ता सम्यग्द्रष्टि आत्मा छे ज नहि, मिथ्याद्रष्टि पण तेनो कर्ता नथी, फक्त ते अज्ञानभावथी
कर्तापणुं माने छे. शरीरनी जन्मक्षणे पण शुद्ध चिदानंद स्वभावनी द्रष्टिना वलणमां भगवानना आत्मावडे वीतरागी
दशा ज करवामां आवती हती, अने तेनो ज ते आत्मा कर्ता हतो. पण शरीर थयुं के जन्म थयो तेनो कर्ता ते आत्मा न
हतो, अने ते वखतना विकल्पनो पण कर्ता ते आत्मा थतो न हतो. जुओ, आ भगवान महावीरना आत्मानो जन्म
कहेवाय छे. आ रीते ओळखे तेणे भगवानने ओळख्या कहेवाय.
पर्यायबुद्धि टाळीने स्वभावसन्मुख द्रष्टिथी आत्मा वीतरागी श्रद्धा–ज्ञानपरिणामनो कर्ता थयो, ते कर्तव्य कोई
क्षणे–कोई पळे खसतुं नथी, अने जे विकल्प थाय ते विकल्पना कर्ता थवा सन्मुख ज्ञानीनी द्रष्टि कदी होती नथी.
भगवाननो आत्मा जन्म्यो त्यारथी तेनी आवी दशा हती. –आवुं महावीर भगवाननुं जन्मजीवन हतुं.