Atmadharma magazine - Ank 079
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २००६ : आत्मधर्म : १३१ :
–पछी महावीर मोटा थया. –शेमां? शरीरनी पर्यायमां नहि पण आत्मानी पर्यायमां. शरीरनी पर्याय जडने कारणे पुष्ट
थवा मांडी, तेनो कर्ता महावीरनो आत्मा न हतो, अने आत्माना प्रदेशत्वगुणनी योग्यताथी आत्मानुं क्षेत्र पहोळुं
थवा मांड्युं, ते व्यंजनपर्याय सन्मुख पण तेनी द्रष्टि न हती. पण वीतरागी स्वभावनी सन्मुख द्रष्टि हती; एटले
स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञानरूप पर्यायमां भगवान मोटा थया.
कर्तानुं ईष्ट ते कर्म; शरीरनी पुष्ट अवस्था थई ते आत्मानुं कर्म नथी, पण ते तो जड पुद्गलनुं कर्म छे. शरीर
मोटुं थतुं त्यारे पण भगवानने भान हतुं के शुद्ध चिदानंद ज्ञानस्वभावे परिणमनार हुं छुं अने जे वीतरागी श्रद्धा–
ज्ञान–आनंद परिणाम प्रगटे ते मारुं कर्म छे. शरीरनी दशा वधे ते मारुं कर्म नथी. हुं–आत्मा विद्यमान छुं तो जड
शरीरनी दशा थाय छे–एम नथी. स्वसन्मुख द्रष्टिथी जे निर्मळ–दशा प्रगटे ते ज धर्मीनुं ईष्ट–कर्म छे. विकार मारुं कार्य
अने हुं तेनो कर्ता–एम मिथ्याद्रष्टि विकारने ईष्टपणे स्वीकारे छे. चैतन्य तत्त्वनुं जेने भान नथी ते जीव पुण्य–पाप
वगेरे विकारी परिणामने पोतानुं ईष्ट कार्य माने छे, अने ते विकारनो कर्ता थाय छे. परंतु जडनी अवस्थाने तो
अज्ञानी पण करी शकतो नथी. –आवा भानसहित भगवान मोटा थया.
–पछी महावीर भगवाने दीक्षा लीधी. ते वखते पण भगवानना आत्मामां पंचमहाव्रतनो जे शुभविकल्प
ऊठ्यो ते विकल्पने भगवाने कर्ता थईने कर्यो नथी. शुद्ध चिदानंद स्वभावनी द्रष्टिए अने एकाग्रताए जे निर्मळ
श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र परिणाम थया तेना ज भगवान कर्ता छे. परसन्मुख द्रष्टि रहित धु्रवस्वभावनी सन्मुख द्रष्टिथी
क्षणे क्षणे वीतरागी परिणामने ज भगवान करता हता. राग थाय तेने आत्माना कार्य तरीके स्वीकारता नहि.
–दीक्षा पछी लगभग साडाबार वर्ष सुधी भगवान छद्मस्थपणे मुनिदशामां रह्या. ते साडाबार वर्ष सुधी भगवाने
शुं कर्युं? आत्माना स्वभावसन्मुख द्रष्टि अने लीनताथी भगवानने अरागी परिणाम क्षणे क्षणे वधता हता ने राग तूटतो
हतो. आ कार्य भगवाने कर्युं छे. ए सिवाय आहारने लेवो के छोडवो–ते भगवाने कांई कर्युं नथी. लोको कहे छे के महावीर
भगवाने बहु प्रतिकूळ संयोग सहन कर्या अने आहार छोड्यो. परंतु खरेखर भगवानना आत्माए ते कांई कर्युं नथी.
स्वभावना आनंदनी लीनतामां रहेतां आहारनी लागणी ज न थाय, त्यारे बहारमां पण आहारनो संयोग जडना कारणे
थवानो ज न हतो तेथी न थयो; त्यारे भगवाने आहार छोड्यो–एम उपचारथी कहेवायुं. परंतु खरेखर भगवानना
आत्माए पोताना निर्मळ परिणाम सिवाय बीजुं कांई कर्युं नथी. भगवान साडाबार वर्ष मुनिपणामां रह्यां त्यारे सर्वज्ञ
न हता, पण अल्पज्ञ हता. परंतु त्यारे पण शुद्ध चैतन्य तरफना वलणमां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रना शुद्ध परिणामने ज तेओ
करता हता. पंचमहाव्रतनो शुभराग पण खरेखर भगवाने कर्यो न हतो. ते रागनुं स्वामीपणुं भगवान मानता न हता.
–पछी ज्यारे भगवाननो आत्मा निजस्वरूपमां पूर्णपणे लीन थयो त्यारे पूर्णज्ञानदशा–केवळज्ञानने पाम्यो.
चार घाति–कर्मोनो नाश स्वयं थई गयो ने भगवानने अरिहंतदशा प्रगटी. चार घातिकर्मोनो नाश करवानुं कार्य
भगवाने कर्युं नथी, पूर्णज्ञानदशारूपी कार्यने ज भगवाने कर्युं छे.
केवळज्ञान प्रगट्या पछी त्रीस वर्ष सुधी भगवान अरिहंतपणे रह्या; तेमां भगवाने शुं कर्युं? शुं त्रीस वर्ष सुधी
भगवाने दिव्यवाणी प्ररूपी?–ना. वाणी तो जड परमाणुनुं परिणमन छे, ते वाणीनो कर्ता जड छे. भगवाने ते वाणी करी
नथी. आजे महावीर भगवानना जन्मकल्याणक निमित्ते भाषणमां लोको कहेशे के महावीर भगवाने पर जीवोनो उद्धार
कर्यो, महावीरे यज्ञमां थती हिंसा अटकावी, महावीरे परोपकार अर्थे जीवन विताव्युं;–वगेरे प्रकारे महावीरना नामे गोटा
वाळशे. पण भगवान महावीरे परनुं कांई कर्युं नथी. भगवाननी वाणीनुं निमित्त पामीने ते वखते जे जीवोनी लायकात
हती ते जीवोए पोताना परिणाम फेरव्या. त्यां भगवाने कर्युं–एम उपचारथी बोलाय छे. खरेखर भगवाने परमां कांई
कर्युं नथी; भगवाने तो पोताना केवळज्ञानरूपी कार्य ज कर्युं छे.
चैतन्यतत्त्वमां क्षणे क्षणे शुं थई रह्युं छे, तेनी आ वात छे. कोई आत्मा परनुं तो कांई करी शकतो नथी.
अज्ञानी पण जडनो तो कर्ता नथी. एक परमाणु बीजा परमाणुनी अवस्थाने करतो नथी. ज्यारे महावीर भगवाननी
वाणी छूटी त्यारे पात्र जीवोए पोते पोतानी लायकातथी सवळा परिणाम कर्या. त्यां महावीर भगवानना आत्मानी
हाजरी हती, तेथी ‘महावीरे हिंसा अटकावी’ एम निमित्तनुं कथन छे.
भगवाने त्रीस वर्ष सुधी उपदेश कर्यो–ए पण उपचारनुं कथन छे. उपदेशनी वाणी छूटी ते परमाणुनी पर्याय थई
छे. ते पर्याय वखते भगवाननो आत्मा निमित्तरूपे हाजर हतो. पण वाणीना काळ वखते पण ते आत्मानुं तो क्षणे क्षणे
केवळज्ञानरूपे ज परिणमन थई रह्युं छे. भगवान ते केवळज्ञानना कर्ता छे. भगवाने वाणी करी नथी, तेम ज भगवान त्यां
विद्यमान हता माटे वाणी थई एम पण नथी. वाणी वखते निमित्तरूपे आत्मामां जे जोगनुं कंपन हतुं ते जोगना कंपनरूप
कार्यना कर्ता पण भगवान नथी. भगवान समये समये केवळज्ञानरूपी कार्यना कर्ता छे ने केवळज्ञान तेमनुं कर्म छे.
–आवुं भगवानना आत्मानुं जीवन छे, ए सिवाय भगवाने बीजुं कांई कर्युं नथी. हवे, भगवाननी वाणीमां
कह्युं शुं? भगवाननी वाणीमां आम आव्युं के–
अहो जीवो! तमे तमारा स्वभावथी परिपूर्ण छो. तमे