Atmadharma magazine - Ank 079
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: १३२ : आत्मधर्म : वैशाख : २००६ :
तमारा स्वतंत्र आत्मद्रव्य सन्मुख थईने सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान प्रगट करो, त्यारे तमने तमारा स्वतंत्र कर्मथी धर्म थाय छे.
जीव पोते पोतानी लायकातथी धर्म पामे त्यारे उपचारथी–विनयथी एम कहेवाय के हे भगवान! तीथ्थयराणं–तमे
धर्मतीर्थना कर्ता छो. खरेखर आ आत्मानी धर्मपर्यायमां भगवाननो अभाव छे. एक वस्तुनो बीजामां अत्यंत अभाव
छे, ते एकबीजाने कांई करे एम त्रणकाळमां बनतुं नथी. भगवाने घणा जीवोनो उद्धार कर्यो–एम उपचारनुं कथन छे,
उपचार एटले के खरेखर एम छे नहि. जे जीवोए आत्मभान पामीने उद्धार कर्यो तेमणे पोताना पुरुषार्थथी ज कर्यो छे.
जुओ, आवुं महावीर भगवाननुं जीवनचरित्र छे. महावीर भगवाने आटला वर्ष व्रत पाळ्‌यां, ने आटला वर्ष
तप कर्या, ने आटला उपवास कर्या–एवुं तो कांई आ महावीर–जीवनमां न आव्युं! त्यारे भगवाने शुं कर्युं? महावीर
भगवाने अंर्तस्वभावनी सन्मुख थईने अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन कर्युं, अने अवस्थामां व्रतादिनो शुभराग थाय तेनुं
कर्तापणुं छोड्युं. आत्मा अनादिअनंत सच्चिदानंदस्वभावनी मूर्ति छे, विकार तेनुं स्वरूप नथी. अथस्थामां जे
विकारनो अंश छे ते मारुं कार्य ने हुं तेनो कर्ता–एवी अंशबुद्धि–विकारबुद्धि ते पाखंड छे–अधर्म छे. अने पर पदार्थोनुं
कार्य हुं करुं–एम मानवुं ते तो मोटो अधर्म छे.
भगवाननुं जीवन बधुं अंतरमां शमाय छे, बहारमां परनुं कांई भगवाने कर्युं नथी. मिथ्याद्रष्टिनुं जीवन शुं? –
ते कहे छे. मिथ्याद्रष्टि पण परमां तो कांई करी शकतो नथी. पण में परनुं कर्युं ने विकारनो हुं कर्ता–एम ते माने छे.
एटले ते क्षणे क्षणे विकारपणे ऊपजे छे–ए तेनुं जीवन छे. मिथ्याद्रष्टिने पोतामां स्वतंत्र कार्यनो स्वीकार नथी एटले
ते विकारनो कर्ता थाय छे अने परनुं कार्य माराथी थाय एम माने छे. पण वस्तुनी अवस्था बीजो करे एम कदी बने
नहि. जो बीजाने लईने वस्तुनुं काम थाय तो ते वस्तुना स्वतंत्र अस्तित्वनो ज अभाव थाय छे. अज्ञानी पण
बीजाना जीवनमां कांई करे–एम त्रणकाळ त्रणलोकमां बनतुं नथी. अज्ञानी पोताना जीवनमां–पोतानी अवस्थामां
विकार करीने तेनो कर्ता थाय छे, अने धर्मी जीव पोताना जीवनमां–पोतानी अवस्थामां निर्मळ श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप
वीतरागी परिणाम करीने तेनो कर्ता थाय छे.
भगवाने सुखे करीने खाधुं नहि, पीधुं नहि अने घणां कष्ट सहन कर्यां–एम अज्ञानीओ माने छे; परंतु धर्म शुं
कष्टदायक छे? जेमां कष्ट सहन करवा पडे एटले के दुःख वेठवुं पडे–एवो धर्म भगवाने कर्यो न हतो. धर्ममां तो
आत्मानी शांति होय के कष्ट होय? लोको बाह्य संयोगथी कष्ट माने छे, पण एम छे ज नहि. जो धर्ममां कष्ट सहन
करवा पडतां होय तो पछी कष्ट टळे शी रीते? कष्ट एटले दुःख; कष्ट लागे ते आर्त्तध्यान छे; तो तेना फळमां केवळज्ञान
त्रणकाळ त्रणलोकमां होय नहि. जेमां कष्ट लागे तेना फळमां शांति क्यांथी होय? –न ज होय. आत्मानो धर्म तो
शांतिदाता–अनाकुळ आनंदस्वरूप छे. कष्ट ते दुःख छे, ने धर्म तो सुखरूप छे. धर्ममां कष्ट सहन करवा पडे–एनो अर्थ
एम थयो के दुःख वेठवा पडे तो सुख थाय! –एम होय शके नहि. राग–रहित सहज आत्मस्वरूप तरफना वलणमां
अनाकुळ शांति अने वीतरागी आनंदना शेरडा प्रगटे तेनुं नाम धर्म छे. अज्ञानीने पण बाह्य प्रतिकूळ संयोगनुं दुःख
नथी, परंतु पुण्य–पाप मारां, ने जड शरीरनी दशा मारी–एवो तेनो मिथ्यात्वभाव ते ज दुःख छे. दुःख वेठतां वेठतां
धर्म थाय–एनो अर्थ ए थयो के मिथ्यात्व ने रागद्वेष सेवतां सेवतां धर्म थाय. –आम अज्ञानीओ माने छे. मुनिदशामां
महावीर भगवाने कष्ट सहन कर्यां न हता, पण आत्मानी शांतिना शेरडानो अनुभव कर्यो हतो.
महावीरे बार–बार वर्ष सुधी घोर तप कर्यां–एटले के जाणे तेमणे घणुं दुःख भोगव्युं–एम अज्ञानीओ माने छे.
पण ते वखते महावीरना आत्माए अंतरमां शुं कर्युं ते अज्ञानीओ जाणता नथी. चैतन्यस्वभाव सन्मुख लीन थतां
भगवानने तो आनंदकंद आत्मानी शांतिना शेरडा फूटया हता. जेम अत्तरनो मोटो डुंगरो होय, ने तेमां छरो मारतां
सुगंधनो फूवारो वछूटे, तेम भगवान आत्मा आनंदकंद अनाकुळ शांतिनो डुंगर छे; तेनी द्रष्टि करीने लीनता थई त्यां
चैतन्य–अमृतनो डुंगर जे आत्मा तेमांथी शांतिना फूवारा छूटवा लाग्या; तेनुं नाम धर्म छे. धर्मी जीव एवी शांतिनो
अनुभव करे छे. भगवाने एवी शांतिनो अनुभव कर्यो हतो. एने बदले धर्मने कष्टदायक माने छे तेओ धर्मने वगोवे छे.
चारित्रने वेळुना कोळीया जेवुं माने एटले धर्ममां जाणे के घणो कलेश हशे! –एम मान्युं. परंतु जेनाथी कलेश
थाय एवो धर्म भगवाने कर्यो नथी ने तेवो धर्म भगवाने कह्यो नथी. कलेश ते कारण अने अनाकुळ शांति ते कार्य–एम
होय नहि. आत्मानो धर्म तो अनाकुळ शांतिरूप छे. चैतन्य भगवान महावीरे एवो धर्म कर्यो अने एवो धर्म कह्यो.
चिदानंद वस्तु आत्मा छे, तेनो स्वभाव दुःखरूप नथी. दुःख तो विकृति छे, क्षणिक उपाधि छे. वस्तुने पोताना
स्वभावथी दुःख नथी तेम ज परने लीधे पण दुःख नथी; अनाकुळ आनंद–स्वरूप स्वतःसिद्ध आत्मानुं लक्ष चूकीने पोते
जेटली विकृतदशा उत्पन्न करे ते ज दुःख छे. स्वभाव ते दुःख नथी ने संयोग पण दुःख नथी. शरीरमां क्षुधा–तृषा–रोग
वगेरे थाय ते जडनी अवस्था छे, तेनुं दुःख आत्माने नथी. प्रतिकूळ संयोग ते दुःख नथी ने अनुकूळ संयोग ते सुख
नथी; निर्धनता ते