आबरू ते गुण नथी; काळु–कूबडुं शरीर होय ते अवगुण नथी ने रूपाळुं शरीर होय ते गुण नथी. आ प्रमाणे कोई परने
लईने आत्माने सुख–दुःख के गुण–अवगुण नथी. पण क्षुधा, तृषा वगेरे अवस्था शरीरमां थतां ‘आ मने थाय छे’ एवी
मिथ्याद्रष्टिनी मान्यता ते ज अवगुण छे अने ते ज दुःख छे.
पोतापणानी मान्यता ऊभी करे छे ते अधर्म अने दुःख छे. धर्मी जीवने ते मान्यता टळी गई छे. आत्माना स्वभावनी
शांतिमां धर्मीने कष्ट छे एम मानवुं ते भगवाने कहेला धर्मनो अनादर छे, एटले पोताना शांतिस्वभावनो पण अनादर
छे. धर्मीजीव आत्मस्वभावनी द्रष्टिथी क्षणे क्षणे शांतिनो अनुभव करे छे. कष्ट अने कलेश भोगववा पडे एवुं धर्मीनुं
भान नथी एटले बहारथी भगवाननुं माप काढे छे. भगवान जंगलमां एकला रह्या, ने रोटला न खाधा तथा भगवान
नग्न रह्या माटे भगवान दुःखी हता, –आम कहेवुं ते वस्तुना स्वभावने विकृत करीने सर्वज्ञनो अनादर करवा जेवुं छे. शुं
जंगलमां रह्या के रोटला न खाधा तेथी भगवानने दुःख हतुं? ना. ते क्षणे भगवान तो पोताना अतीन्द्रिय आनंदना
धु्रवस्वभावना आश्रये सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रना अंशो प्रगटावीने रोकडीओ धर्म लेवो छे, तो तेनी परीक्षा करीने
साचा–खोटानी ओळखाण करवी जोईए.
भगवाने आवुं जीवन कर्युं हतुं. भगवाननो आत्मा अने मारो आत्मा स्वभावे सरखा छे, हुं पण मारी जाते स्वसन्मुख
श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र प्रगट करीने भगवान थई शकुं छुं. आ आत्मा सिवाय देव–गुरु–शास्त्र पर छे, तेनामां आ आत्मानुं
कल्याण करवानी ताकात नथी. तेम ज तेमनी सन्मुख भक्तिनो जे शुभराग थाय ते शुभरागमां पण आत्मानुं कल्याण
करवानी ताकात नथी. पोताना स्वभावनी सन्मुखताथी ज कल्याण प्रगटे छे. महावीर भगवाने आम कर्युं छे ने आम कह्युं छे.
जे आनाथी विरुद्ध मार्ग कहे ते भगवानने, भगवानना कहेला शास्त्रोने के संतोने जाणतो नथी. आत्मा–सन्मुख जेनी द्रष्टि
नथी एवा अज्ञानीनो एक अक्षर पण साचो होय नहि; भगवानना समवसरणमां बेठो होय ने दिव्यध्वनि सांभळतो होय ते
वखते पण तेनुं वलण परसन्मुख छे. अज्ञानीनो वेलो ज आखो कडवो छे अर्थात् तेनी द्रष्टि ऊंधी होवाथी क्षणे क्षणे विकारनी
ज उत्पत्ति थाय छे. ने ज्ञानीने स्वसन्मुख अमृतनी वेल छे एटले स्वभावसन्मुखद्रष्टिथी तेने क्षणे क्षणे पर्यायनी निर्मळता
वधे छे. मिथ्याद्रष्टिने मूळमां ज परने लीधे ज्ञानादि थवानी मान्यता छे ते ज भूल छे.
भावेन्द्रियनो अभाव छे. भावेन्द्रिय तो आत्माना अनंतज्ञाननो एक अंश छे, ते अंश जेटलो ज आखा आत्माने माने
तेने स्वभावसन्मुखद्रष्टिनो अभाव छे. जेवा महावीर भगवान छे तेवी ज जातना बधा आत्मा छे, स्वभाव सामर्थ्यमां
कांई फेर नथी; भगवानने सर्वज्ञ–परमात्मदशा प्रगटी छे ने आ जीवने अधूरुं ज्ञान छे–एम वर्तमान अवस्थामां फेर छे. ते
अवस्थाने गौण करीने स्वभावसन्मुखबुद्धि करवी ते मोक्षनुं कारण छे ने परसन्मुखबुद्धि ते संसारनुं कारण छे.
वीतरागी परिणामने ज करे छे, पण परने के विकारने करतो नथी.
अंतर्व्यापक थईने तेने ज करे छे.