: वैशाख : २००६ : आत्मधर्म : १३५ :
भगवाननो आत्मा जड शरीरादिनी कोई अवस्थाने तो ग्रहतो नथी, तेने परिणमावतो नथी अने ते–रूपे
ऊपजतो नथी, पण तेना लक्षे पोतानी पर्यायमां जे खंडज्ञान थाय तेना उपर पण धर्मीनी द्रष्टि नथी एटले खरेखर
ते–रूपे पण ऊपजतो नथी. पण अतीन्द्रिय ज्ञानस्वभावना आश्रये ज ऊपजे छे. अतीन्द्रिय ज्ञानस्वभावना आश्रये
ज केवळज्ञान थाय छे, ते केवळज्ञानरूपी कार्यने भगवान करे छे.
अहो, भगवाने आवो आत्मस्वभाव सम्यग्दर्शनथी मांडीने केवळज्ञान सुधी साध्यो. अज्ञानी परलक्षे विकार
करीने तेने वेदे छे, तेनुं नाम संसार छे. अने चिदानंद स्वभावना आश्रये ते विकारनो व्यय थईने पूर्णानंददशा प्रगटे
ते मोक्ष छे. सिद्धशिलाना क्षेत्रमां मोक्ष नथी पण आत्मामां जे पूर्ण ज्ञान–आनंदमय शुद्धदशा प्रगटी ते ज मोक्ष छे.
आत्मसिद्धिमां कह्युं छे के–
मोक्ष कह्यो निज शुद्धता, ते पामे ते पंथ, समजाव्यो संक्षेपमां सकळ मार्ग निर्गं्रथ.
रागद्वेष वगरनो आत्मानो ज्ञानस्वभाव
आ आत्मा अनादिथी छे. अनादिथी आत्मा पोताना स्वभावने भूलीने संसारमां रखडी रह्यो छे. आत्मानी
आदि नथी तेम तेनी भूलनी पण आदि नथी. पहेलांं अवस्थाए पण आत्मा तद्रन शुद्ध हतो अने पछी भूल थई–एम
नथी. आत्मा अनादि छे अने तेनी अवस्थामां भूल पण अनादिनी छे. जेम शेरडीमां रस अने कूचो मूळथी भेगां छे
पण बंनेनो स्वभाव एक नथी; रस पेटमां ऊतरे छे ने कूचो बहार नीकळी जाय छे. तेम आत्मामां भूल अनादिथी छे,
पण ते तेनो स्वभाव नथी; तेथी आत्मस्वभावनी ओळखाण वडे ते भूल टळीने भूलवगरनो आत्मा निर्मळ पणे रही
शके छे. जेम अफीणनो कडवो स्वभाव छे, गोळनो गळ्यो स्वभाव छे, तेम आत्मानो ज्ञान स्वभाव छे. दया के हिंसाना
जे परिणाम थाय ते आत्मानो स्वभाव नथी. ज्ञानस्वभावी आत्माना भानथी प्रथम अनादिनी भूल (मिथ्यात्व)
टळे छे अने त्यार पछी स्वरूपमां एकाग्र थतां क्रमेक्रमे रागद्वेषनो अभाव थईने पूरुं ज्ञान रही जाय छे. त्यां राग–
द्वेषनो अभाव थतां चैतन्यनो अभाव थई जतो नथी. केमके रागद्वेष ते चैतन्यना स्वभावनी चीज नथी पण कृत्रिम
उपाधि छे. जे वस्तुनो स्वभाव होय तेनो कदी नाश थाय नहि. ज्ञान आत्मानो स्वभाव छे, तेनो कदी नाश थतो नथी.
आत्मानी अवस्थामां कोई वार दया, दान, पूजा, भक्ति वगेरे शुभ लागणीओ थाय छे, अने कोई वार हिंसा,
चोरी वगेरे अशुभ लागणीओ थाय छे; ते शुभ अने अशुभ लागणीओ आत्माना स्वभावमां नथी पण नवी उत्पन्न
थाय छे. आत्मा कांई नवो उत्पन्न थतो नथी. पहेलांं क्रोधनी लागणी न होय ने पछी थाय, त्यां एम कहे छे के ‘मने
आ क्रोधनी लागणी थई आवी.’ पण ‘मारो आत्मा थई आव्यो’ –एम कोई कहेतुं नथी. तेनो अर्थ ए थयो के
आत्मा तो नित्य छे अने तेनी अवस्थामां क्रोधादि भावो नवा उत्पन्न थाय छे. ते क्रोधादि भावो आत्माना कायमी
स्वभावमां नथी. क्रोधादि विकार रहित आत्मानो कायमी स्वभाव शुं छै? ते जीवे अनादिथी जाण्युं नथी.
आत्मा अनादि अनंत ज्ञानमूर्ति छे, आ शरीर देखाय छे ते जड रजकणोनुं ढींगलुं छे. ते जडनी हालतो जडना
स्वभावथी बदलाय छे, आत्मा तेनो करनार नथी. देहादि जड पदार्थोथी आत्मा त्रिकाळ जुदो छे; पोतानी क्षणिक
अवस्थामां शुभाशुभ भाव जो आत्मा करे तो नवा नवा थाय छे, अने जो न करे तो थता नथी. एटले ते शुभाशुभ
भावो आत्मानो स्वभाव नथी.
रागद्वेष रहित ज्ञानस्वभावी आत्मानुं भान करीने, जो राग–द्वेष न करे तो एकलो ज्ञानस्वभाव रही जाय छे.
राग–द्वेष वखते ज्ञान अटकतुं एटले के पूरुं जाणी शकतुं न हतुं. हवे स्वभावना आश्रये रागद्वेषनो अभाव थईने
जाणनार स्वभाव पूरो प्रगट्यो ते कोने न जाणे? एक समयमां ते बधाने जाणे छे. एनुं नाम सर्वज्ञपद छे. एवुं
सर्वज्ञपद प्रगट करीने अनंत जीवो मुक्त थई गया छे. अत्यारे आ भरतक्षेत्रमां एवा सर्वज्ञ नथी, पण महाविदेह
क्षेत्रमां श्री सीमंधरभगवान वगेरे सर्वज्ञपणे अरिहंतदशामां अत्यारे विचरे छे. सर्वज्ञ भगवान जेवो ज दरेक
आत्मानो परिपूर्ण ज्ञानस्वभाव छे. एवा पोताना स्वभावनी ओळखाण करीने तेना ज आश्रयथी आत्मा मुक्ति
पामे छे. ए सिवाय कोई भगवाननी कृपाथी आत्मा तरतो नथी, तेम ज कोईनी अकृपाथी आत्मा रखडतो नथी. पोते
पोतानी भूलथी रखडे छे, अने पोते ज ते भूल भांगीने भगवान थाय छे. हे जीव! तारा तत्त्वनो महिमा तें न जाण्यो
एटले ते महिमा क्यांक बीजे आपी दीधो. पोते पोताथी स्वतंत्र अने परिपूर्ण छे, ते भूलीने, कोईक बीजो मने तारशे–
एम परनो आधार मानी लीधो; पण भाई! तारी मुक्ति बीजाना आधारे नथी. तारा स्वभावना आधारे ज तारी
मुक्ति छे, माटे तेने ओळख.
– चूडा शहेरमां पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनमांथी. पद्म. एकत्व अधिकार गा. २६ मागसर वद १३.