Atmadharma magazine - Ank 079
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: १२६ : आत्मधर्म : वैशाख : २००६ :
स्वभावनी द्रष्टि थया पछी साधकदशामां वच्चे राग आवे, छतां ते समये पण धर्मी जीव ते रागमां व्याप्यो
नथी, पण द्रव्यना आश्रये थयेला वीतरागी परिणाममां ज व्याप्यो छे. जे रागनो समय छे ते समये ज आत्मा
निर्मळपरिणतिने पकडीने तेमां अभेद थयो छे. पूर्वनी पर्याय आद्यमां हती माटे निर्मळपर्याय थई–एम नथी, पण
द्रव्य ज आद्यमां छे, द्रव्यना आश्रये दरेक पर्याय स्वतंत्र छे. दरेक पर्याय स्वतंत्र छे–निरपेक्ष छे–एम मानवामां द्रव्यनो
ज आश्रय आवे छे. (अहीं, निर्मळपर्यायनी आदिमां द्रव्य ज छे–एम कह्युं तेथी, पहेलांं द्रव्य अने पछी निर्मळपर्याय–
एम समयभेद न समजवो. द्रव्यने अने निर्मळपर्यायने समयभेद नथी, पण निर्मळ पर्याय द्रव्यना ज आश्रये थाय
छे–एम बताववा तेने आद्यमां छे–एम कह्युं छे.)
आत्मा स्वभावसन्मुख रहीने पोताना वीतरागी श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र परिणामरूपे ऊपज्यो, ते वीतरागी
परिणामने प्राप्त कर्या तथा पूर्व पर्याय पलटावीने ते नवा परिणाम कर्या, –ए रीते एक ज परिणामने निर्वर्त्य, प्राप्य
अने विकार्य एवा त्रण प्रकारथी समजाव्या छे, कांई त्रण परिणाम जुदा नथी. भगवान आत्मा पोते ज स्वसन्मुख
वीतरागी श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र पर्याय प्रगट करीने तेमां पोते व्यापे छे. अनंतशक्तिनो पिंड आत्मा पोते विकास पामीने
निर्मळ पर्याय थाय छे.
जेम गुलाबनुं फूल खीले छे तेनी आद्यमां गुलाबनी कळी छे, सूर्य नहि. सूर्य विकसीने गुलाबनुं फूल थतुं नथी
पण गुलाबनी कळी ज विकसीने गुलाबनुं फूल थाय छे. तेम भगवान चैतन्यस्वभावनी पहेलांं हीणी–संकोचायेली दशा
हती, ते स्वभावनी द्रष्टि थतां खीले छे–विकास पामे छे, तेनुं कारण द्रव्य छे; कोई निमित्तिने कारणे अवस्थानो विकास
थतो नथी. द्रव्य पोते ज फेलाईने जे निर्मळ अवस्था थाय तेने ग्रहे छे. ‘द्रव्य’ अवस्थाने ग्रहे छे–एवो भेद तो
समजाववा माटे कथन छे. कांई आत्मा अने निर्मळपरिणाम जुदा नथी, अभेद छे. आत्मा पोते ते परिणामरूपे
परिणमी गयो एटले आत्माए ते परिणामने ग्रह्या–एम कहेवाय छे. पहेलांं परिणाम थया अने पछी आत्माए तेने
ग्रहण कर्या–एम नथी.
रागादि विकार थाय ते आत्मा नथी अने खरेखर आत्मा ते रागादिने ग्रहतो नथी. नवतत्त्वमां पुण्य–पाप
तत्त्व भिन्न छे ने जीवतत्त्व भिन्न छे. जीवतत्त्वमां पुण्य–पाप तत्त्वनो अभाव छे. जीवद्रव्यनी सन्मुख थईने जे
सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान अने अंशे वीतरागी परिणाम थाय छे तेनो आत्मा कर्ता छे, ए सिवाय बीजानो कर्ता आत्मा नथी.
आत्माए परनुं काम कर्युं के शरीरनी क्रिया करी के आहारनुं ग्रहण–त्याग कर्युं–एम कहेवुं ते बधा बोलवाना कथन छे,
खरेखर वस्तुनुं स्वरूप एम नथी एटले ते व्यभिचारी वाणी छे. एकबीजानो संबंध बतावीने ते वाणी कथन करे छे
माटे ते व्यभिचारी वाणी छे.
धर्मी आत्मावडे कयुं काम करवामां आवे छे? ते वात थई. शरीरनां के परनां काम तो कोई आत्मा करतो ज
नथी. राग–द्वेषरूपी कर्मने धर्मी जीव करतो नथी; सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना परिणामस्वरूप जे कर्म छे ते आत्मावडे
करवामां आवे छे. अहीं ‘आत्मा’ कहेतां निर्मळपर्यायरूपे परिणमेलो आत्मा लेवो. कोई निमित्तो वडे के रागना
विकल्पवडे ते निर्मळदशारूपी कर्म करवामां आवतुं नथी, केमके तेओ आत्मा नथी. सर्वज्ञता प्रगट करवानी ताकात
आत्मामां पडी छे, तेना उपर द्रष्टि पडतां ज्ञाताद्रष्टानी वीतरागीदशा खीलवा मांडे छे ने निर्मळता वधतां वधतां
केवळज्ञान खीले छे. ए रीते धर्मरूपी निर्मळकार्य वस्तुनी द्रष्टिए प्रगटे छे अने ते कार्य आत्मावडे करवामां आवे छे.
धर्मी जीव समये समये एवा कार्यने करे छे.
कल्याणनी मूर्ति
हे जीवो! जो तमे आत्मकल्याणने चाहता हो तो स्वतःशुद्ध अने समस्त प्रकारे परिपूर्ण आत्मस्वभावनी रुचि
अने विश्वास करो, तेनुं ज लक्ष अने आश्रय करो. ए सिवाय बीजुं जे कांई छे ते सर्वनी रुचि, लक्ष अने आश्रय
छोडो. केमके सुख स्वाधीन स्वभावमां छे, परद्रव्यो तमने सुख के दुःख करवा समर्थ नथी. तमे तमारा स्वाधीन
स्वभावनो आश्रय छोडीने पोताना दोषथी ज पराश्रयवडे अनादिथी पोतानुं अमर्यादित अकल्याण करी रह्या छो. माटे
हवे सर्व पर द्रव्योनुं लक्ष अने आश्रय छोडीने स्व द्रव्यनुं ज्ञान, श्रद्धान तथा स्थिरता करो. स्व द्रव्यमां बे पडखां छे–
एक तो त्रिकाळ शुद्ध स्वत: परिपूर्ण निरपेक्ष स्वभाव छे अने बीजुं क्षणिक वर्तमान वर्तती विकारी हालत छे. पर्याय
पोते अस्थिर छे तेथी तेना लक्षे पूर्णतानी प्रतीतरूप सम्यग्दर्शन नहि प्रगटे, पण जे त्रिकाळी स्वभाव छे ते सदा शुद्ध
छे, परिपूर्ण छे अने वर्तमान पण ते प्रकाशमान छे, तेथी तेना आश्रये, लक्षे पूर्णतानी प्रतीतरूप सम्यग्दर्शन प्रगट
थशे. ए सम्यग्दर्शन पोते कल्याणरूप छे अने ते ज सर्व कल्याणनुं मूळ छे. ज्ञानीओ सम्यग्दर्शनने ‘कल्याणनी मूर्ति’
कहे छे. माटे हे जीवो, तमे सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करवानो अभ्यास करो.