: वैशाख : २००६ : आत्मधर्म : १२७ :
श्री परमात्म – प्रकाश – प्रवचनो
(लेखांक १५ मो) (अंक ७८ थी चालु)
वीर सं. २४७३ भादरवा सुद १ दसलक्षणी पर्वनो उत्तम तप दिन (७)
[१४२] अात्मानो िनरंजनस्वभाव केवो छे? : – हवे आत्माना निरंजन स्वभावनुं वर्णन करे छे–
(गाथा १९ – २० – २१)
जासु ण वण्णु ण गंधु रसु जासु ण सद्दु ण फासु।
जासु ण जम्मणु मरणु ण वि णाउ णिरंजणु तासु।। १९।।
जासु ण कोहु ण मोहु मउ जासु ण माय ण माणु।
जासु ण ठाणु ण झाणु जिय सो जि णिरंजणु जाणु।। २०।।
अत्थि ण पुण्णु ण पाउ जसु अत्थि ण हरिसु विसाउ।
अत्थि ण एक्कु वि दोसु जसु सो जि णिरंजणु भाउ।। २१।।
भावार्थ :– अहीं सिद्धभगवान समान बधा आत्मानो स्वभाव छे तेनुं वर्णन छे. एकला सिद्धभगवाननी वात
नथी पण पोताना स्वभावनी वात छे. केवो छे आ आत्मानो स्वभाव? –जेने लाल, सफेद वगेरे रंग नथी, गंध नथी,
शब्द नथी, स्पर्श नथी, जन्म के मरण नथी, एवा शुद्ध चिदानंदमय परमात्माने निरंजन कहेवाय छे. वळी तेने क्रोध, मोह
तथा मद पण नथी, माया के मान नथी; वळी जेने स्थान पण नथी एटले के नाभि, हृदय, मस्तक वगेरे ध्यानना स्थानो
कहेवाय छे ते स्वभावमां नथी, अने ध्यान पण नथी–एवा निज शुद्धात्माने हे जीव! तुं जाण. वळी तेने पुण्य–पापना
परिणाम के कर्म पण नथी, हर्ष के विषाद पण नथी अने बीजा पण कोई दोष नथी–क्षुधादि दोष नथी; ते ज शुद्धात्मा
निरंजन छे, एम तुं जाण अने तेनी भावना तथा अनुभव कर.
[१४३] अात्मध्यानमां शुं देखाय छे? : – जेओ सिद्धभगवान थई गया छे तेमने आ वात समजावता नथी, पण जेणे
आत्मस्वभाव जाण्यो नथी तेने समजावे छे के आत्मानो स्वभाव सिद्ध जेवो छे. अज्ञानीओ एम माने छे के आत्मानुं
ध्यान करती वखते ध्यानमां रातो–धोळो वगेरे रंग देखाय अथवा प्रकाश देखाय; तेनी वात खोटी छे. आत्मा तो पांचे
प्रकारना रंगरहित छे. आत्मध्यानमां रंग देखातो नथी पण ज्ञानवडे ज्ञानस्वभाव ज देखाय छे.
[१४] सत्य अेटले शुं? : – आत्मा वाणी वगरनो छे. सत्य बोलवुं ते धर्म–एम कोई वार शास्त्रमां कहे, त्यां परमसत्य
ज्ञायकमूर्तिमां ज्ञान रोकाई जाय ते ज परमार्थे सत्यधर्म छे. पण सत्य बोलवानो विकल्प ते राग छे, अने वाणी तो जड छे,
तेनो कर्ता आत्मा नथी. आत्मा तो वाणी अने वाणीना विकल्प रहित छे.
[१४५] अात्मा जन्म – मरण रिहत छे : – आत्माने जन्म–मरण नथी. सिद्धभगवान जन्म–मरणरहित छे, ने आ
आत्मानो स्वभाव पण सिद्ध जेवो छे, तेथी आत्माना स्वभावने जन्म–मरण नथी. जेम सिद्ध भगवानने मृत्यु के जन्म
नथी, तथा सूर्य–चंद्र कदी नाश पामता नथी, तेम आत्मानो स्वभाव कदी जन्मतो के मरतो नथी, ते त्रिकाळ टकनार छे.
[१४६] स्वत: प्रकाशमान शाश्वत चैतन्यस्वभाव : – कोई एम पूछे छे के आकाशमां जे सूर्य छे ते सूर्य न होय तो
कोण प्रकाशे? त्यारे उत्तर आपे छे के चंद्र तो छे ने! वळी पूछे छे के चंद्र न होय तो? उत्तर आपे छे के दीपकादिनो
प्रकाश तो छे ने! त्यारे वळी फरी पूछे छे के ए दीपकादिनो प्रकाश पण न होय तो? तेनो उत्तर–तो हुं शाश्वत
चैतन्यमय छुं, मारो चैतन्यस्वभाव स्वत: प्रकाशवानो छे. ते कदी मरतो नथी. चैतन्यप्रकाश शाश्वत छे, अने ते परनी
अपेक्षा वगर स्वत: जाणनार छे. स्व–पर प्रकाशक चैतन्य स्वभावने प्रकाशवा माटे भिन्न कोई प्रकारनी अपेक्षा नथी.
[१४७] अात्मानो स्वभाव ते ज िजनशासन : – वळी क्रोध, मोह के मद पण आत्माना स्वभावमां नथी. जेम सिद्ध
भगवानने ध्यान नथी तेम आत्माने पण ध्यान नथी. सिद्धप्रभुने चित्त ज नथी–चिंता ज नथी तो कोने रोके? तेम आ
आत्माना स्वरूपमां पण चित्तनुं अवलंबन नथी तो कोने रोकवुं? माटे आत्माना स्वभावमां ध्यान नथी. आवा
सिद्धसमान तारा स्वभावने हे जीव! तुं जाण. तुं ज्ञानमूर्ति ज छो, ‘विकल्प छे ने ते टाळुं’ एवा भेद तारामां नथी.
पर्यायद्रष्टिना भंग–भेद आत्माना निश्चयशासनमां नथी. आत्मानो निश्चय–स्वभाव ते ज जिनशासन छे एम
समयसार गा. १५मां कुंदकुंद भगवाने कह्युं छे.
[१४८] मिहमावंत पदाथर् पोतानो अात्मा ज छे : – अहीं आचार्यदेवना कथननो सार ए छे के हे शिष्य! पोतानो
स्वभाव ज संपूर्ण महिमावंत छे, माटे तेनुं ज ध्यान कर. ते सिवाय कोई बीजानो महिमा के प्रशंसा मूकी दे. जगतनी
कोई वस्तुनो संयोग थाय ते अपूर्व नथी, माटे मान, ख्याति, पूजा, लाभ वगेरेनी बडाईने छोडीने स्वभावनो ज