Atmadharma magazine - Ank 079
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: १२८ : आत्मधर्म : वैशाख : २००६ :
महिमा कर. अने देखेला, सांभळेला के अनुभवेला एवा सर्व भोगनी ईच्छारूप बधाय विभावपरिणामने छोडीने
पोताना शुद्धात्मानी अनुभूतिमां स्थिर था.
[] त् जा व्, िथ् : आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे,
ते ज्ञान परने जाणे छे एम कहेवुं ते पण व्यवहारनय छे. पर साथे जाणवानो सबंध ते व्यवहारनय छे, तो पछी पर
साथे कर्तापणुं मानवुं ते तो क्यां रह्युं? आत्माने परनो कर्ता मानवो ते तो मिथ्यानय छे. कोई कहे के–व्यवहारनये एम
बोलाय तो खरुं ने? तेनुं समाधान :– पहेली ज वात तो ए छे के बोलवानी क्रिया जडनी छे, बोलवानी क्रिया
आत्मानी छे ज नहि, तो पछी ‘आम बोलाय ने?’ ए मान्यता ज खोटी छे. तेवी ज रीते लखवानी क्रिया पण जडनी
छे. पण ज्यारे ते बोलवानी के लखवानी क्रिया थई ते वखते आत्माने केवो राग हतो तेनुं ज्ञान करवुं ते व्यवहारनय
छे. पण ‘व्यवहारनये अमुक प्रकारे बोलाय’ एम माने तो तेनो अर्थ ए थयो के जड शब्दोनो कर्ता आत्मा
व्यवहारनये छे, –ए मान्यता ते मिथ्यानय ज छे.
[] ज्ञ जा? : आत्मा परनुं करी शकतो नथी एम ज्ञानी जाणे छे, छतां ‘हुं बोलुं’ ईत्यादि
विकल्प ज्ञानीने पण केम थाय छे–एवो घणाने प्रश्न ऊठे छे. आ प्रश्न अने तेनुं समाधान बराबर समजवानी जरूर छे.
प्रश्न :– एम छे के आत्मा लखी शकतो नथी एवुं ज्ञानीने भान होवा छतां ‘हुं लखुं’ एवो विकल्प तेने केम ऊठे
छे? जे थतुं ज न होय तेनो विकल्प केम ऊठे? आकाशना फूलने चूंटवानो के वंध्यासुतने मारवानो भाव कदी ज्ञानी के
अज्ञानीने आवतो नथी. जेम आकाशनुं फूल अने वंध्यासुत असत् छे, तेथी ते विकल्प ऊठतो नथी, तेम लखवानी क्रिया
आत्मा करी ज शकतो नथी–एम ज्ञानी जाणे छे छतां तेने लखवानो भाव केम थाय छे?
समाधान :– आ प्रमाणे छे–ज्ञानीना अंतरमां ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान वर्ते छे. तेमने रागनी पण कर्तृत्वबुद्धि
नथी, तो पछी देहादिनी क्रिया के लखवुं वगेरे क्रियानी कर्तृत्वबुद्धि तेमने होय ज क्यांथी? ज्ञानने अने रागने जुदा
ओळख्या वगर, ज्ञानीनुं अंतर शुं कार्य करी रह्युं छे तेनी खबर अज्ञानीने पडे नहि. माटे पहेलांं ज्ञानस्वभावने अने
रागादिने भेदज्ञानवडे भिन्न जाणवा जोईए. ए जाण्या पछी ‘ज्ञानीने लखवा वगेरेनो विकल्प केम ऊठे छे’ ए प्रश्न ज
नहि रहे. ज्ञानीनी द्रष्टि ज पर उपरथी अने राग उपरथी छूटी गई छे, तेथी तेमने अस्थिरताना अल्प रागमां एवुंं जोर
नथी आवतुं के जेथी कर्तृत्वबुद्धि थाय. खरेखर ‘हुं आम करुं’ एवी भावना नथी पण ‘हुं जाणुं’ एवी ज भावना छे.
पोताने त्रणकाळनुं ज्ञान वर्तमानमां नथी अने हजी रागनी लायकात टळी नथी तेथी विकल्प ऊठ्यो छे, पण ज्ञानी ते
विकल्पना अने परनी क्रियाना जाणनार ज छे. रागनो विकल्प थाय छे ते पराश्रये थाय छे, अने रागना अनेक प्रकार छे.
भिन्न भिन्न प्रकारना राग वखते भिन्न भिन्न परद्रव्यनो आश्रय होय छे. ज्यारे बोलवा के लखवाना लक्षे राग थयो त्यारे
एवो विकल्प थयो के ‘हुं बोलुं, हुं लखुं.’ पराश्रित रागमां ए प्रमाणे विकल्प ऊठे छे, पण ज्ञानमां एवी मान्यता नथी के
हुं बोली के लखी शकुं छुं. आमां तो एम सिद्ध थाय छे के राग ते आत्मानो स्वभाव नथी; ज्ञानीने ज्ञान अने विकल्प बंने
भिन्न भिन्न छे.
लखवा वगेरेनी क्रिया थवानी छे तेने कारणे विकल्प थतो नथी, तेम ज विकल्पना कारणे लखवा वगेरेनी क्रिया
थती नथी. ए रीते परनी क्रिया साथेनो संबंध तूटी गयो. हवे जे राग थाय छे ते पोताना पर्यायना कारणे थाय छे, –ए
राग थाय तेने अने क्रियाने ज्ञान जाणे छे. ए रीते ज्ञान सळंगपणे जाणनार रही गयुं, पण परनी क्रियामां के रागमां
अटकनार न रह्युं. राग पण ज्ञाननुं ज्ञेय छे. परनुं करवानी वात तो ज्ञानमां छे ज नहि, पण परने जाणवुं ते पण व्यवहार
छे. रागने जाणवुं ते पण व्यवहार छे. ज्ञेय–ज्ञायकना भेद कहेवा ते पण व्यवहार छे. मने राग थाय छे तेने कारणे बहारनी
क्रियाओ (–बोलावुं, लखावुं वगेरे) थाय छे एम ज्ञानी मानता नथी, अने राग थाय छे तेनी साथे ज्ञानने एकमेक
मानता नथी; तेथी खरेखर ज्ञानीने परनुं करवानो विकल्प थतो नथी, पण रागनुं तेम ज परनुं ज्ञान ज थाय छे. ज्ञानी
ज्ञान ज करे छे, रागादि क्रिया करता ज नथी. पोताने राग अने ज्ञाननुं भेदविज्ञान थया वगर ‘ज्ञानी शुं करे छे अने शुं
नथी करता’ तेनी खबर शी रीते पडशे?
समयसारना १५३मा कलशमां श्रीमान् अमृतचंद्राचार्यदेव कहे छे के– ‘जेणे कर्मनुं फळ छोड्युं छे ते कर्म करे एम तो
अमे प्रतीति करी शकता नथी. ××× ××× जे अकंप परमज्ञानस्वभावमां स्थित छे एवां ज्ञानी कर्म करे छे के नथी करता ते
कोण जाणे?
ज्ञानीओ ज्ञानथी अचलायमान छे तेथी ज्ञानथी भिन्न एवुं कोई कर्म तेओ करता ज नथी. ज्ञानीनी वात ज्ञानी ज
जाणे, अज्ञानी जीवमां ज्ञानीना अंतरपरिणामने जाणवानुं सामर्थ्य नथी. ‘अज्ञानीमां सामर्थ्य नथी’ एम कहीने श्री
आचार्यदेव एम जणावे छे के हे जीव! तुं पोते तारा आत्मामां अज्ञान छोडीने ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान कर, तो तने
बधा समाधान थई जशे. पोते राग अने ज्ञानने जुदा अनुभव्या विना ‘ज्ञानी ज्ञान करे छे के ज्ञानी राग करे छे’ तेनी
खबर शी रीते पडी शके?