आत्मानी छे ज नहि, तो पछी ‘आम बोलाय ने?’ ए मान्यता ज खोटी छे. तेवी ज रीते लखवानी क्रिया पण जडनी
छे. पण ‘व्यवहारनये अमुक प्रकारे बोलाय’ एम माने तो तेनो अर्थ ए थयो के जड शब्दोनो कर्ता आत्मा
अज्ञानीने आवतो नथी. जेम आकाशनुं फूल अने वंध्यासुत असत् छे, तेथी ते विकल्प ऊठतो नथी, तेम लखवानी क्रिया
आत्मा करी ज शकतो नथी–एम ज्ञानी जाणे छे छतां तेने लखवानो भाव केम थाय छे?
ओळख्या वगर, ज्ञानीनुं अंतर शुं कार्य करी रह्युं छे तेनी खबर अज्ञानीने पडे नहि. माटे पहेलांं ज्ञानस्वभावने अने
रागादिने भेदज्ञानवडे भिन्न जाणवा जोईए. ए जाण्या पछी ‘ज्ञानीने लखवा वगेरेनो विकल्प केम ऊठे छे’ ए प्रश्न ज
नहि रहे. ज्ञानीनी द्रष्टि ज पर उपरथी अने राग उपरथी छूटी गई छे, तेथी तेमने अस्थिरताना अल्प रागमां एवुंं जोर
नथी आवतुं के जेथी कर्तृत्वबुद्धि थाय. खरेखर ‘हुं आम करुं’ एवी भावना नथी पण ‘हुं जाणुं’ एवी ज भावना छे.
विकल्पना अने परनी क्रियाना जाणनार ज छे. रागनो विकल्प थाय छे ते पराश्रये थाय छे, अने रागना अनेक प्रकार छे.
भिन्न भिन्न प्रकारना राग वखते भिन्न भिन्न परद्रव्यनो आश्रय होय छे. ज्यारे बोलवा के लखवाना लक्षे राग थयो त्यारे
एवो विकल्प थयो के ‘हुं बोलुं, हुं लखुं.’ पराश्रित रागमां ए प्रमाणे विकल्प ऊठे छे, पण ज्ञानमां एवी मान्यता नथी के
हुं बोली के लखी शकुं छुं. आमां तो एम सिद्ध थाय छे के राग ते आत्मानो स्वभाव नथी; ज्ञानीने ज्ञान अने विकल्प बंने
भिन्न भिन्न छे.
राग थाय तेने अने क्रियाने ज्ञान जाणे छे. ए रीते ज्ञान सळंगपणे जाणनार रही गयुं, पण परनी क्रियामां के रागमां
अटकनार न रह्युं. राग पण ज्ञाननुं ज्ञेय छे. परनुं करवानी वात तो ज्ञानमां छे ज नहि, पण परने जाणवुं ते पण व्यवहार
छे. रागने जाणवुं ते पण व्यवहार छे. ज्ञेय–ज्ञायकना भेद कहेवा ते पण व्यवहार छे. मने राग थाय छे तेने कारणे बहारनी
क्रियाओ (–बोलावुं, लखावुं वगेरे) थाय छे एम ज्ञानी मानता नथी, अने राग थाय छे तेनी साथे ज्ञानने एकमेक
मानता नथी; तेथी खरेखर ज्ञानीने परनुं करवानो विकल्प थतो नथी, पण रागनुं तेम ज परनुं ज्ञान ज थाय छे. ज्ञानी
ज्ञान ज करे छे, रागादि क्रिया करता ज नथी. पोताने राग अने ज्ञाननुं भेदविज्ञान थया वगर ‘ज्ञानी शुं करे छे अने शुं
नथी करता’ तेनी खबर शी रीते पडशे?
कोण जाणे?
आचार्यदेव एम जणावे छे के हे जीव! तुं पोते तारा आत्मामां अज्ञान छोडीने ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान कर, तो तने
बधा समाधान थई जशे. पोते राग अने ज्ञानने जुदा अनुभव्या विना ‘ज्ञानी ज्ञान करे छे के ज्ञानी राग करे छे’ तेनी
खबर शी रीते पडी शके?