(३) व्यवहारनो आश्रय छोडीने निश्चयनो आश्रय करवो.
(४) पर्यायनो आश्रय छोडीने द्रव्यनो आश्रय करवो.
वच्चे राग–निमित्त के व्यवहार भले हो, पण धर्मीनुं वलण तो शरूआतथी ज सम्यक् एकांत एवा
वलण होय छे. वच्चे रागादि व्यवहार अने भंगभेद आवे ते जाणवा माटे छे, पण तेमां रुचि करीने अटकवा
माटे ते नथी. आ प्रमाणे नित्य–अनित्य, एक–अनेक, अभेद–भेद वगेरे बधा बोलमां समजी लेवुं. पूर्ण
परमात्मपद प्रगटी गया पछी एक तरफ ढळवानुं रहेतुं नथी, तेम ज तेमने नय पण होतो नथी.
‘मूळमार्ग’ मां कहे छे के–
लोको बहारमां जिननो मार्ग मानी बेठा छे, पण जिननो मार्ग बहारमां नथी, पोतानुं आत्मस्वरूप ते ज
जिननो मार्ग छे.
२–पर निमित्तनुं लक्ष थवा छतां स्वद्रव्यनो आश्रय,
३–व्यवहार होवा छतां निश्चयनुं अवलंबन,
४–क्षणिक पर्यायना भेदो होवा छतां अभेद द्रव्य उपर द्रष्टि अथवा पर्यायोनी अनेकता होवा छतां
मिथ्या एकांत छे. निश्चयना आश्रये धर्म थाय ने व्यवहारना आश्रये धर्म न थाय–एवो अनेकांत छे, अने ते
जाणीने निश्चय तरफ ढळवुं तेनुं नाम सम्यक् एकांत छे. मोक्षमार्गमां वच्चे क्यांय व्यवहारनुं अवलंबन छे ज
नहीं. वच्चे व्यवहार होवा छतां तेना अवलंबने धर्म टकतो नथी, मोक्षमार्ग तो निश्चयना अवलंबने ज टक्यो छे.
ए ज सर्वनो सार छे. ए बधुं जाणीने जो स्वभाव तरफ न वळे तो जीवने सम्यग्दर्शन प्रगटे नहि ने कल्याण थाय
नहि. जो स्वभावनी रुचि न करे अने भेदनी–व्यवहारनी–निमित्तनी के पर्यायनी रुचि करे तो मिथ्या एकांत थई
पर मने रखडावतुं नथी अने कोई पर मने समजाववानी ताकातवाळुं नथी. हुं मारी भूले रखडयो छुं, ने मारा
पुरुषार्थे साची समजण करीने मुक्ति पामुं छुं. अनंत सर्वज्ञो–संतो पूर्वे थई गया, पण हुं मारी पात्रताना
अभावे न समज्यो. मारा निजपदनी प्राप्ति स्वसन्मुख पुरुषार्थथी थाय छे. वर्तमानमां हुं मारा पूर्णानंदमय
स्वपदनी प्राप्ति करवा मांगुं छुं तो तेवो पूर्णानंद प्रगट करनारा अनंत जीवो पूर्वे थई गया छे, अत्यारे विचरे छे
अने भविष्यमां पण अनंत थशे. सर्वज्ञता वगर पूर्णानंद न होय. सर्वज्ञता प्रगट करीने पूर्णानंद पामनारा
जीवो सम्यक् एकांत एवा निजपदनो ज आश्रय लईने पाम्या छे–पामे छे ने पामशे; ए सिवाय राग–निमित्त के